आज विजयदशमी है। हालांकि वाराणसी में इस साल लगातार दूसरी बार भी विजयदशमी पर रावण का दहन नहीं होगा। गौरतलब है कि वाराणसी में बीएलडब्ल्यू, रामनगर, शिवपुर और मलदहिया में प्रत्येक वर्ष दशहरे के दिन रावण दहन होता था। बीएलडब्ल्यू में तो दशानन का दहन देखने के लिए हजारों लोगों का हुजूम उमड़ता था। आयोजन समितियों से जुड़े लोगों का कहना है कि कोरोना महामारी को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। स्थिति सामान्य होगी तो फिर रामलीला का आयोजन भी होगा और रावण दहन भी होगा। वहीं, लंका में लगातार दूसरे साल सांकेतिक रूप से रावण दहन किया जाएगा।
बीएलडब्ल्यू में जलता था 80 फीट का रावण
बनारस रेल इंजन कारखाना (बीएलडब्ल्यू) के खेल मैदान में तकरीबन 65 वर्षों से रावण दहन की परंपरा चली आ रही है। लेकिन, कोरोना की काली छाया के चलते लगातार दूसरे साल यहां दशानन का दहन नहीं किया जाएगा। बीएलडब्ल्यू में रावण के 80 फीट, कुंभकर्ण के 75 फीट और मेघनाद के 60 फीट ऊंचे पुतले का दहन किया जाता था। इन पुतलों की ऊंचाई रामनगर के काशी नरेश परिवार द्वारा आयोजित होने वाली विश्वविख्यात रामलीला के भी पुतलों से ज्यादा होती थी।
हवन-पूजन कर पाठ समाप्त करेंगे
बीएलडब्ल्यू विजयदशमी समिति के निदेशक एसडी सिंह ने बताया कि इस बार नवरात्रि की शुरूआत से ही रोजाना रामायण पाठ किया जा रहा है। आज विजयादशमी के अवसर पर हवन-पूजन कर पाठ समाप्त किया जाएगा। कोरोना की वजह से पिछले साल की तरह इस बार भी रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला नहीं जलेगा।
जब रामलीला ही नहीं हो रही और राम का जन्म भी नहीं होगा तो रावण दहन भला कहां से होगा। हमारी रामलीला की खास बात यह है कि पूरे देश में मोनो एक्टिंग लीला कहीं नहीं होती है। यहां मात्र ढाई घंटे में राम के वन गमन से लेकर रावण वध तक की लीला स्कूलों के विद्यार्थियों द्वारा की जाती हैं। यहां की लीला के लिए 10 हजार कुर्सियां लगाई जाती थी और उसके लिए पास जारी होता था। इसके अलावा बगैर पास के हजारों लोगों का हुजूम उमड़ता था।
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