गॉल ब्लैडर कैंसर की दवा के ट्रायल का दिया प्रस्ताव:प्रो. पांडेय बोले- गाॅल ब्लैडर कैंसर के लिए ड्राइवर म्यूटेशन जिम्मेदार है

वाराणसी7 महीने पहले
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IMS-BHU - Dainik Bhaskar
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गॉल ब्लैडर का कैंसर अब लाइलाज बीमारी नहीं रह जाएगी। भारत में पहली बार गॉल ब्लैडर कैंसर की दवा ट्रायल करने के लिए प्रस्ताव दिया गया है। यह प्रस्ताव IMS-BHU की ओर से वरिष्ठ आंकोलॉजिस्ट प्रोफेसर मनोज पांडेय ने BHU की एथिकल कमेटी को दिया है।

प्रो. पांडेय ने अपने रिसर्च में पाया है कि गाॅल ब्लैडर कैंसर के लिए ड्राइवर म्यूटेशन जिम्मेदार है। BHU के सर सुंदरलाल अस्पताल में 33 मरीजों पर स्टडी की गई। जिसके परिणाम में म्यूटेशन की रिपोर्ट की बात सामने आ रही है।

रिसर्च में देखा गया कि p53 और KRAS जीन काफी कॉमन है। यह रिसर्च प्रतिष्ठित साइंस रिसर्च जर्नल मॉलिक्युलर बायोलॉजी रिपोर्ट्स के हाल ही के अंक में प्रकाशित हुए हैं। प्रो. पांडेय ने बताया कि यह तो पता लग चुका है कि कैंसर क्यों फैल रहा है। मगर अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ कि यह क्यों इसी गंगा बेल्ट के लोगों को ही होता है। इस बारे में रिसर्च चल रहा है।

पित्त की थैली को गॉल ब्लैडर कहते हैं

प्रो. मनोज पांडेय ने बताया, ह्यूमन बॉडी में गाल ब्लैडर को हिंदी में पित्त की थैली कहा जाता है। इसका काम है पित्त को कलेक्ट कर भोजन के बाद नली के माध्यम से छोटी आंत में भेजना। पित्त की थैली का कैंसर गंगा नदी के बेसिन में रहने वाली आबादी में सबसे अधिक देखने को मिलता है।

BHU स्थित सर सुंदरलाल अस्पताल में आने वाले कैंसर मरीजों में करीब 5% इसी मर्ज से ग्रस्त रहते हैं। यह कैंसर ज्यादातर 45 साल से अधिक आयु वाली महिलाओं में पाया जाता है। पुरुषों की अपेक्षा यह महिलाओं में 5 गुना ज्यादा होता है। शुरुआती स्टेज में कोई लक्षण न होने की वजह से यह कैंसर देरी से पता चलता है। पित्ताशय के कैंसर की सर्वाइवल दर 10-20% ही है। BHU में बीते 25 साल से इस कैंसर पर रिसर्च हो रहा है। '

इस रिसर्च टीम में ये लोग शामिल
इस रिसर्च टीम में डॉ. सत्यविजय चिगुरुपति, डॉ. रोली पुरवर, मोनिका राजपूत और डॉ. मृदुला शुक्ला शामिल हैं। प्रो. पांडेय बताते हैं, यह अध्ययन पित्ताशय के कैंसर के इलाज में एवरोलीमस और टेमसिरोलीमस दवाओं के इस्तेमाल की राह दिखाता है। ये दोनों दवाएं mTOR के असर को कम करती हैं और ट्यूमर कोशिकाओं के विकास और विस्तार को रोकने में असरदार हैं। फिलहाल इनका उपयोग स्तन कैंसर, न्यूरो एंडोक्राइन कैंसर और किडनी के कैंसर में किया जाता है।