नालों में मिलने वाला एक बैक्टीरिया उद्योगों से उत्सर्जित केमिकल प्रदूषकाें को भी नष्ट कर सकते हैं। IIT-BHU के वैज्ञानिकों ने मध्य प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र सिंगरौली के एक नाले पर यह परीक्षण किया है। दावा किया है कि इस पानी में बैक्टीरिया (माइक्रोबैक्टीरियम पैराऑक्सीडैन स्ट्रेन VSVM) पाया गया है जो कि दूषित जल के सबसे नुकसानदेह धातु प्रदूषक (हेक्जावलेंट क्रोमियम) को नष्ट कर देता है। हेक्जावलेंट क्रोमियम एक जीनोटॉक्सिक केमिकल तत्व है। यह मानव शरीर के डीएनए में परिवर्तन कर कैंसर का कारक बनता है। इसके साथ ही इसे भारी धातु आयन भी कहा जाता है जो कि किडनी और लीवर की समस्या और बांझपन के लिए भी जिम्मेदार होता है।
बैक्टीरिया से ट्रीट करने के बाद फिल्टर करने की जरूरत नहीं रह जाती
IIT-BHU में स्कूल ऑफ बायोकेमिकल इंजीनियरिंग के शोधकर्ता डॉ. विशाल मिश्रा और उनके PhD छात्र वीर सिंह ने बताया कि यह बैक्टीरियल स्ट्रेन बड़ी मात्रा क्रोमियम को खत्म करने में सक्षम है। इससे पानी का ट्रीटमेंट करने के बाद किसी और फिल्टर की जरूरत भी नहीं पड़ती। वहीं बैक्टीरिया आधारित यह तकनीक बेहद सस्ती और गैर-टॉक्सिक है। इससे पानी की शुद्धता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। यह शोध कार्य प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल “जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल केमिकल इंजीनियरिंग (इम्पैक्ट फैक्टर 5.9) में पहले ही प्रकाशित हो चुका है।
नदियों के पानी से किया जा सकता है केमिकल का खात्मा
शोधकर्ताओं ने बताया कि सिंगरौली के पास जो नाले बहते हैं, वहां पर हेक्जावलेंट क्रोमियम की मात्रा काफी अधिक हाेती है। औद्योगिक इलाकों के नालों से हेक्जावलेंट क्रोमियम को नदी में मिलने से पहले ही खत्म किया जा सकता है। डॉ. मिश्रा के अनुसार विकासशील देशों में जल जनित रोग सबसे बड़ी समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार हर साल 3 करोड़ लोग केमिकल और दूषित पानी पीने या नहाने से हुई बीमारियों से मर जाते हैं। वहीं बैक्टीरिया से दूषित पानी के सेवन से हर दिन 4000 बच्चे मरते हैं। 26 करोड़ से अधिक लोगों तक पीने योग्य पानी की पहुंच नहीं है और सालाना लगभग 20 मिलियन मौतों के लिए जिम्मेदार है। ऐसे में यह तकनीक जल को शुद्ध करने के साथ ही उसकी कमी को भी रोकेगी।
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