कालाजार बीमारी को लेकर BHU IIT स्थित स्कूल आफ बाॅयोकेमिकल इंजीनियरिंग के वैज्ञानिक प्रोफेसर विकास कुमार दूबे और उनकी टीम ने कालाजार के वैक्सीन के लिए सफल परीक्षण किया है। यह वैक्सीन कालाजर बीमारी का प्रमुख कारक लीशमैनिया परजीवी के खिलाफ संक्रमण की प्रगति को रोक देता है। चूहों पर किये गए शोध कार्य में शत प्रतिशत प्रो दूबे की टीम सफल हुई है। जल्द ही इसका ह्यूमन ट्रायल भी शुरू होगा।
बीमारी का उपचार कुछ मुट्ठी भर दवाओं पर निर्भर है
वैज्ञानिक प्रोफेसर विकास कुमार दूबे बताया कि दवा प्रॉपर न होने से WHO के पूर्ण उन्मूलन कार्यक्रम के लिए गंभीर चिंता का विषय है। टीकाकरण किसी भी संक्रामक रोगों से लड़ने का सबसे सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। वैक्सीन अणु हमारे रोग प्रतिरोधक तंत्र को रोगों से लड़ने के लिए प्रशिक्षित करता है। यह हमारे शरीर में कई प्रतिरक्षा कोशिकाओं को उत्तेजित करता है जो एंटीबॉडी, साइटोकिन्स और अन्य सक्रिय अणुओं का उत्पादन करते हैं जो सामूहिक रूप से काम करते हैं और हमें संक्रमण से बचाते हैं और दीर्घकालिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।
चूहों के मॉडल में प्री-क्लीनिकल अध्यन
उन्होंने बताया कि इस टीके की रोग निरोधी क्षमता का मूल्यांकन चूहों के मॉडल में प्री-क्लीनिकल अध्ययनों में किया गया था। जिसमें संक्रमित चूहों की तुलना में टीकाकृत संक्रमित चूहों के यकृत और प्लीहा अंगों में परजीवी भार में उल्लेखनीय कमी देखी गई थी। टीका लगाए गए चूहों में परजीवी के बोझ को साफ करने से वैक्सीन के सफलता की संभावना प्रबल हो जाती है। यह एक प्रकार का रक्षा तंत्र है जो टीकाकरण के बाद हमारे शरीर में होता है और रोग की प्रगति को रोकने में सहायक होता है।
कालाजार बीमारी सैंड फ्लाई मक्खी के काटने से फैलता है। पचास हजार मरीज लगभग हार साल हो जाते है। यूपी, बिहार, झारखंड, बंगाल समेत कई राज्यो में इसके मरीज मिलते रहते है। इस बीमारी में बार बार बुखार का आना मुख्य लक्षणों में से एक है। वजन में लगातार कमी होना भी इसका लक्षण है। लीवर का आकर सामान्य से बड़ा हो जाता है।
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