पहली बार बनारसी साड़ी की तरह बुना तिरंगा:आजादी का अमृत काल- कभी झुकेगा नहीं ये झंडा; सुधरेगी बुनकरों की माली हालत

वाराणसी7 महीने पहलेलेखक: हिमांशु अस्थाना

आजादी के अमृत महोत्सव और हर घर झंडा अभियान को देखते हुए काशी की हजारों साल प्राचीन बुनकरी परंपरा को नई दिशा मिली है। बनारसी साड़ी बनाने वाले जुलाहे अब अपने ताना-बाना में भारत का राष्ट्रीय तिरंगा झंडा बुन रहे हैं। सोलह आने बनारसी साड़ी के जैसे, मानें कि फैब्रिक का कपड़ा, रेशम के धागे, वही हथकरघा, वही बुनकर और वही कारीगरी आपको इस तिरंगे में दिख जाएगी। तिरंगे में केसरिया, सफेद और हरा के बीच अशोक चक्र को रेशम के धागे से बुना गया है।

बनारसी साड़ी वाला झंडा दिखाते बुनकर समाज के लोग।
बनारसी साड़ी वाला झंडा दिखाते बुनकर समाज के लोग।

खासियत है, फैब्रिक का कपड़ा, जो कि शांत हवा में झंडे को न तो झुकने देगा और न ही कागज की तरह लहराकर फटने। प्लास्टिक के छोटे झंडों को भी यह रिप्लेस कर सकता है। क्योंकि, इसका रेट उसी के आसपास ही जाएगा। सबसे यूनीक यह कि इसे बिल्कुल बनारसी साड़ी की ही तरह सालों साल हिफाजत से रखा जा सकता है।

इस तरह तैयार हुआ बनारसी साड़ी वाला झंडा।
इस तरह तैयार हुआ बनारसी साड़ी वाला झंडा।

यह सब आइडिया है IIT-धनबाद के पूर्व छात्र और वाराणसी के रहने वाले नित्यानंद को आया। जिसे उन्होंने पीलीकोठी के युवा बुनकर जियाउर रहमान और मोहम्मद यासीन के ताने-बाने में महज 3 दिन में बुनकर कर दिखा दिया। नित्यानंद बोले, "नेशनल फ्लैग और बनारसी साड़ी का कांबिनेशन वाकई काफी रोमांचित कर रहा है। इससे बनारसी साड़ी बुनने वाले काशी के लाखों कारीगरों की कंगाली तो कम होगी। नित्या ने कहा, ''जो बुनकर बनारसी साड़ी बनाकर काशी के लोक परंपरा काे हजार साल से जिंदा बनाए हुए थे, अब यह राष्ट्रीय झंडा उन्हें भारत के भरी बाजार में सिर उठाकर जीने देगा।

तिरंगे के तीनों रंगों को इसी धागे से बुना जाता हे।
तिरंगे के तीनों रंगों को इसी धागे से बुना जाता हे।

यह सब इतना जल्दी हुआ डिजिटल पंचकार्ड की वजह से। नित्यानंद ने इस मशीन को खुद ही इन्वेंट किया है। पहले एक हथकरघे से एक साड़ी बनाने महीनो लगते थे, अब दिन भर के 4-5 बनाते हैं। जियाउर रहमान कहते हैं कि इस स्पीड से काम हो तो, एक दिन में लाल किले पर फहराने लायक 10 झंडे बनाकर देंगे। मोहम्मद यासीन ने कहा, '' पूरे भारत में इस तरह का झंडा पहली बार बनाया गया है। हम शुक्रगुजार हैं कि इससे बुनकरों को साड़ी, सूट के अलावा झंडा बनाने का भी काम मिल गया। इनकम बढ़ेगी।

नित्यानंद, युवा वैज्ञानिक, वाराणसी।
नित्यानंद, युवा वैज्ञानिक, वाराणसी।

मिलेगी प्लास्टिक से मुक्ति
जियाउर रहमान ने कहा कि जिस तरह पर्यावरण के बाजार में प्लास्टिक का झंडा बेच रहे, तो उसकी साइज में हम डेली एक हजार बना सकते हैं। यह सब फटाफट पॉसिबल हुआ डिजिटल पंचकार्ड की वजह से। पहले की तरह डिजाइन चेंज करने में ही 15 दिन लगते थे। अब सिस्टम कंप्यूटराइज हो गया है। बुनकर समाज के लोगों ने कहा, ''आम हथकरघा मशीन से तिरंगे की बुनाई करते तो तीनों रंगों और अशोक चक्र की बुनाई अलग से करनी पड़ती। इसमें 2-3 दिन लग सकता है। मगर, डिजिटल पंचकार्ड एक ही बार में पूरी डिजाइन बुन दे रही है।

युवा बुनकर जिया उर रहमान।
युवा बुनकर जिया उर रहमान।

50 रुपए का होगा झंडा
नित्यानंद ने कहा, '' 90 सेंटीमीटर चौड़ा और 60 सेंटीमीटर ऊंचे झंडे को बनाने में कुल खर्च 50 रुपए ही आए हैं। इससे छोटा झंडा तो और भी कम पैसे में हो जाएगा। वाराणसी में रजिस्टर्ड बुनकरों की संख्या डेढ़ लाख है। कोविड के पहले बनारसी बुनकरों का कारोबार 1800 करोड़ का सालाना था।

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