शताब्दियों से बनारसी साड़ी की बादशाहत आज भी पूरी दुनिया में कायम है। मगर, बनारस में उसे बुनने वाला बुनकर एक काल कोठरी की 3 फीट नीचे गड्ढे में बैठकर 18-18 घंटे काम करता है। एक ही तरह का काम करके वह 15-20 दिन में बनारसी साड़ी तैयार कर पाता है। बुनकर बाप की यह बदतर स्थिति देख बेटा बुनकरी में आना ही नहीं चाहता। क्योंकि आज उसे न तो आर्टिस्ट, न बिजनेस मैन और न ही कर्मचारियों वाले अधिकार मिलते हैं।
इसी समस्या को खत्म करने के लिए वाराणसी में बुनकर वेलफेयर और बुनकरों को संगठित करने पर पहली बार काम हुआ है। साथ ही युवा बुनकरों को बनारसी साड़ी उत्पादन में प्रोत्साहित करने के लिए वाराणसी के रामनगर में एक 'वीवरशाला: नई कृति, जिसमें बसे संस्कृति’की शुरूआत हुई है।
बुनकरों को फ्रेम लूम, आरामदेह कुर्सी-बेंच और आकर्षक हॉल की सुविधा दी गई है। उत्तर प्रदेश में पहली बार बनारस ने बुनकर वेलफेयर पर कुछ बेहतर काम किया है। यह एक तरह स्मार्ट ट्रेनिंग रूम भी होगा।
जहां पर कपड़ों में ट्रेंडिंग डिजाइन और मॉडल को बनाने के लिए ट्रेडिशनल बुनकरों को ट्रेनिंग दी जाएगी। टाइटन की कंपनी तनैरा ने रामनगर स्थित दो पार्टनर अंगिका हाथकरघा विकास उद्योग सहकारी समिति लिमिटेड और आदर्श सिल्क बुनकर सहकारी समिति लिमिटेड के साथ मिलकर इस काम को शुरू किया है।
इस तरह के होंगे बदलाव
हैंडलूम सेक्टर होगा ऑर्गेनाइज्ड
अमरेश प्रसाद ने कहा कि बुनकरों के स्वास्थ्य, सुविधा और शिक्षा पर इनवेस्ट करने से हैंडलूम सेक्टर ऑर्गेनाइज्ड हो जाएगा। इसके बाद उनके लिए हर एक योजना आसानी से अमल में लाई जा सकती है। ‘वीवरशाला’ के माध्यम से बुनकरों को काम के लिए सुरक्षित और अनुकूल माहौल होगा।
हैंडलूम से विमुख हो रहे युवा
युवा बुनकरों को भी प्रोत्साहन मिलेगा, जो कई कारणों से बुनाई के व्यवसाय को छोड़ चके हैं। हाथ से बुनी बनारसी साड़ियों को बढ़ावा देने के लिए समिति बुनकरों और उनके बच्चों को शिक्षित कर रही है। आदर्श बुनकर सहकारी समिति लिमिटेड के संस्थापक जगन्नाथ प्रसाद ने बताया कि हाथ से बुनी बनारसी साड़ियों की भव्यता और गुणवत्ता को बनाने के साथ ही उत्पादन को बेहतर करने में वीवरशाला काफी हेल्पफुल रहेगी।
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