महिलाएं भी तरक़्क़ी करें, ऐसा सबके लिए क्यों ज़रूरी है?
तस्वीर बदल रही है
यक़ीन रखिए, बदलाव ज़रूर आता है! दुनियाभर में महिलाओं के सुरक्षित भविष्य, उनकी पहचान, अधिकारों और हित के लिए आवाज़ें उठती रहीं, प्रयास होते रहे हैं। इनकी बदौलत बदलती तस्वीर ने सुकून दिया है और एक नया हौसला भी !
बालिका वधू : कमी आ रही है
दो दशक पहले तक विश्व में प्रति चार लड़कियों में एक अल्पवय में ब्याही जाती थी, आज यह अनुपात बदलकर पांच में से एक का हो गया है। फ़िलहाल भारत में 27 प्रतिशत विवाहिताएं ऐसी हैं, जिनका बाल-विवाह हुआ है।
बाल-विवाह अशिक्षा, मातृ-मृत्युदर और शिशु-मृत्युदर से सीधे जुड़े हैं। बालिकाएं जल्द मां बनती हैं, इसलिए कम उम्र में विवाह न हो, इसके मद्देनज़र देशों ने अपने-अपने स्तर पर कठोर क़ानून भी बनाए हैं। ये नियम मानवाधिकारों की सुरक्षा तो कर ही रहे हैं, बालिकाओं के स्वास्थ्य व शिक्षा की भी हिफ़ाज़त कर रहे हैं।
शिक्षा : शाला में बढ़ी संख्या
वैश्विक स्तर पर 1998 के मुकाबले आज 7.9 करोड़ लड़कियां विद्यालयों में अधिक हैं। भारत में फ़िलहाल 72 प्रतिशत महिलाएं (15-49 आयुवर्ग) शिक्षित हैं। यह पिछले वर्षों की तुलना में बालिका शिक्षा में संतोषजनक वृद्धि का सूचक है।
बीते 25 सालों में विकासशील देशों ने बालिकाओं की शिक्षा के लिए भरपूर प्रयत्न किए हैं जिसका परिणाम ही है कि आज लड़कियों का जीवनस्तर बेहतर हो रहा है। आर्थिक व बौद्धिक स्तर पर वे समाज व देश की उन्नति में योगदान कर पा रही हैं। उनके जीवन को एक सकारात्मक दिशा मिल रही है और वे किसी पर निर्भर नहीं हैं।
राजनीति : अधिक है सहभागिता
136 देशों में क्षेत्रीय राजनीति में 34 प्रतिशत महिलाएं सक्रिय हैं। दो देशों में यह प्रतिशत 50 से अधिक व 20 देशों में 40 से अधिक है। भारत में वर्तमान में तेरह लाख महिलाएं निर्वाचित पंच-सरपंच से लेकर सांसद तक हैं।
महिलाओं का राजनीति में स्थान सुनिश्चित करने का अर्थ है जनता के लिए होने वाले निर्णयों में उनकी बराबर भूमिका। वैश्विक अथवा स्थानीय स्तर पर निर्णयों में महिलाओं की आवश्यकताओं पर बात करने व काम करने का अवसर। महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिए एक बेहतर समाज निर्माण के सतत प्रयत्न, जो कि अब समूचे विश्व में हो रहे हैं।
समानता : ज़मीन पर दिखने लगी
2018 के बाद से आइसलैंड में कंपनियों में महिला-पुरुष कर्मचारियों को समान भुगतान हो रहा है। रवांडा की संसद में महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई हैं। भारत में भी ऐसे नियम क्रियाशील हैं। विश्व में अब लैंगिक समानता पर बातें भर नहीं हो रही हैं बल्कि गम्भीरता से इन पर काम हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन वैश्विक स्तर पर इस दिशा में काम कर रहा है। महिलाओं और लड़कियों को अधिकार देने वाले व उनके पूर्व अधिकारों को सुरक्षित रखने वाले नियमों का अमल में आना निश्चित ही विश्व को, महिलाओं को उम्मीद दे रहा है।
(स्रोत- संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन, इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज़, गर्ल्स नॉट ब्राइड डॉट कॉम, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5)
गुंजाइश अब भी हैै
दुनियाभर में हो रहे तमाम प्रयत्नों के बावजूद स्त्रियों के हिस्से का पूरा आसमान उनको नहीं मिल पाया है। कहीं बदलाव धीमे हैं और कहीं ढर्रा पुराना। प्रयास और सुधार, दोनों में तेज़ी अपेक्षित है। यह बात है उन क्षेत्रों की, जहां और काम होना है।
नेतृत्व : पीछे है आधी दुनिया
महिलाओं के लिए काम करने वाली एक संस्था कैटेलिस्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर राजनीति, प्रबंधन इत्यादि की नेतृत्वकारी भूमिकाओं में मात्र 26 प्रतिशत महिलाएं हैं। भारत में यह आंकड़ा आज भी लगभग 10 प्रतिशत है।
घर का कुशल संचालन व बच्चों का पालन-पोषण करने वाली महिला कार्यस्थल पर शीर्ष तक नहीं पहुंच पाती है। दोहरी ज़िम्मेदारी इसका अहम कारण है। घर-दफ़्तर के बीच तालमेल की शर्त, मातृत्व से जुड़े दायित्व, कामकाज में समय को लेकर लचीलेपन का अभाव भी महिलाओं को नेतृत्व के सोपान चढ़ने से रोकता है।
भुगतान : श्रम का कम मान
एनजीओ ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में काम के लिए जहां पुरुषों को 19,779 रुपये मिलते हैं, वहीं महिलाओं को 15,578 रुपये मिलते हैं। यहां यह अंतर 27 प्रतिशत है जबकि वैश्विक स्तर पर यह 16 प्रतिशत है।
मज़दूरी और ऐसे काम जहां शारीरिक श्रम का इस्तेमाल होता है, वहां आज भी महिलाओं को कमतर ही आंका जाता है। ऑक्सफैम की 2022 की रिर्पोट बताती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 100 प्रतिशत महिलाएं रोज़गार के मामले में भेदभाव झेलती हैं। जबकि शहरी क्षेत्रों में यह प्रतिशत 98 है।
हिंसा : एक-तिहाई हैं शिकार
तीन में से एक महिला अपने जीवन में शारीरिक हिंसा का शिकार होती है। इसमें 18 प्रतिशत महिलाएं अपने हमसफ़र द्वारा ही शोषित होती हैं। विश्व में 15 से 49 वर्ष की महिलाओं के साथ सर्वाधिक हिंसा होती है। संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक ने महिलाओं के साथ बढ़ती शारीरिक हिंसा व यौन शोषण को मूक महामारी कहा है। इससे किसी भी देश की महिलाएं अछूती नहीं हैं। लिंग आधारित हिंसा मानव अधिकारों का हनन है। महिलाओं तक शिक्षा को पहुंचाकर, आर्थिक रूप से उन्हें सशक्त बनाकर और अधिकारों व क़ानून के प्रति जागरूक बनाकर ही इसे रोका जा सकता है।
शिक्षा : दूर हैं करोड़ों लड़कियां
विश्व की दो-तिहाई वयस्क महिला आबादी आज भी अशिक्षित ही है। भारत में वर्तमान में 18.6 करोड़ लड़कियां अशिक्षित हैं। इस आंकड़े को एक विकासशील देश तो बिल्कुल नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता है। पढ़े-लिखे बिना महिलाओं के लिए ग़रीबी के चक्र को तोड़ पाना असम्भव है। पिछले सालों की तुलना में पढ़ने-लिखने वाली लड़कियों की संख्या बढ़ी है परंतु यह उस बिंदु को अभी तक नहीं छू पाई है, जहां सामाजिक स्तर पर महिलाओं की दशा में उल्लेखनीय बदलाव दिखें। वहीं 35 पार की अशिक्षित महिलाएं तो जीवन में अब आशा की कोई किरण भी नहीं खोज पाती हैं।
(स्रोत- नेशनल डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट- ऑक्सफैम इंडिया, वर्ल्ड बैंक)
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