साथ में हाथ रहे:स्त्रियों के लिए वरदान सिद्ध हो रहे हैं 'संबल समूह’, इन्हें आप भी तैयार कर सकते हैं

डॉ. काकोली रॉय21 दिन पहले
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  • ‘सपोर्ट ग्रुप’ ज़रूरी हैं। संघर्ष की अंधेरी सुरंगों में एक-दूसरे का हाथ थामकर निकल आना आसान है। इसलिए ये ‘संबल समूह’ स्त्रियों के लिए वरदान सिद्ध हो सकते हैं। आप अपनी-अपनी सोसायटी, मोहल्ले या संस्थान में एक समूह बनाकर देखिए।

दुनिया के कई देशों में ‘सपोर्ट ग्रुप्स’ यानी संबल/सहारा समूह प्रचलन में हैं। इनका गठन कभी-कभी किसी संस्थान से जुड़े विशेषज्ञ या कर्मचारी कर लेते हैं, तो कभी किसी समस्या से पीड़ित व्यक्ति भी इनकी नींव रख लेते हैं। मक़सद होता है, जो परेशान है उसे सहारा यानी सपोर्ट देना।

आमतौर पर इनमें एक-सी समस्याओं से जूझते लोग आते हैं और अपने लिए निदान की राह खोजते हैं। ये एक-दूसरे को भावनात्मक सहारा, सलाह, तथा सूचना देने के लिए नियमित रूप से मिलते हैं। कभी मिलकर राह न निकल रही हो, तो ग्रुप के लोग आपसी सहमति से किसी विशेषज्ञ को आमंत्रित करते हैं, जो राह ढूंढने में मदद करता है।

कैसे मिल सकती है मदद?

जब कोई व्यक्ति अपने परिवेश, निजी जीवन या कामकाज में किसी तनावपूर्ण दौर से गुज़र रहा होता है, तो घर-परिवार के लोग, दोस्त-परिचित उससे सहानुभूति तो जताते हैं, कुछ अच्छा कहने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन सटीक राह नहीं दिखा पाते। जब वह विशेषज्ञों के पास जाने की सोचे तो यह तय कर पाना मुश्किल होता है कि किससे मिलें, कौन मदद कर पाएगा- मनोविद्, समाजविद्, कोई डॉक्टर या थैरेपिस्ट। इसीलिए अस्तित्व में आए हैं सपोर्ट ग्रुप्स, जहां एक जैसी परिस्थितियों से जूझ रहे व्यक्ति समय-समय पर मिलते हैं - जैसे, कोई ख़ुद किसी रोग का सामना कर रहा हो, या किसी परिजन की देखभाल कर रहा हो, जिसे कैंसर, डिमेंशिया जैसा कोई रोग हो, अवसाद, एंग्ज़ायटी या कोई मानसिक कष्ट हो, किसी अपने के चले जाने का गहरा सदमा, या नशे की लत या ऐसी समस्या का सामना कर रहे किसी परिजन की मदद की मंशा हो। समस्या कोई भी हो, वह व्यक्ति मदद करने में सक्षम होता है, जो इन्हीं हालात से गुज़रा हो या गुज़र रहा हो।

ऐसे समूह वो स्थान होते हैं, जहां से पूरी तरह व्यावहारिक जानकारी प्राप्त होने का विश्वास होता है, इसीलिए ये सबसे ज़्यादा मददगार होते हैं। साझे अनुभव चुनौतियों को हल्का कर देते हैं।

इन समूहों के बारे में चंद प्रश्न हैं, जो अमेरिका में भी उठते हैं जहां ऐसे अनगिनत समूह हैं।

क्या उनके पास हर सवाल का जवाब होगा?

यहां कोई जादू की छड़ी नहीं है, लोग हैं हमारे जैसे ही, जिन्होंने मुश्किलों को झेला और हराया है, या अब भी उनसे जूझ रहे हैं। यह हम जानते हैं कि हर समस्या के लिए कोई एक दवा नहीं होती। संघर्ष एक प्रक्रिया के तहत घटित होता है।

क्या मुझे अपनी कहानी बतानी होगी?

आप बोलना चाहें तो बोलें अन्यथा शुरू की मुलाक़ातों में चुप रहकर मीटिंग में शामिल हो सकती हैं।

अन्य प्रतिभागी मेरी समस्या को नकार सकते हैं या मेरी आलोचना कर सकते हैं?

अच्छे समूहों की पहचान होती है कि इनके सदस्य दूसरों के प्रति समानुभूति रखते हैं।

किसी सहायता समूह में जाने पर और डिप्रेशन महूसस होगा?

यह बिलकुल सामान्य है कि आप कहीं भी लोगों के बीच अपनी समस्या को साझा करते हुए थोड़ा शर्मिंदगी या व्यग्रता महसूस करें, लेकिन सबकी बातें सुनकर आप जल्दी ही सामान्य महसूस करेंगी और अपनी बात रख सकेंगी।

कैसे बनते हैं ये समूह?

चूंकि भारत में इस तरह के सपोर्ट ग्रुप्स अधिक प्रचलन में नहीं हैं, इसलिए हो सकता है कि आपको ही पहल करनी पड़े। आप किसी समस्या का सामना कर रही हैं या उससे उबर चुकी हैं तो ख़ुद सहारा और संबल पाने या दूसरों को राह दिखाने के लिए अपने जैसी अन्य महिलाओं और विशेषज्ञों को तलाश करके जोड़ सकती हैं। ध्यान रहे, इसके सदस्य ज़बरदस्ती नहीं बनाए जाते। न ही मदद करने का भाव लिए वे व्यक्ति यहां आ सकते हैं, जो यह दावा करें कि उन्हें तो कभी कोई मुश्किल हुई ही नहीं। ऐसे लोग अक्सर जजमेंटल होते हैं।

चार ख़ूबियां हर सदस्य में होनी चाहिए

धैर्यपूर्वक सुनने का गुण...

जब कोई नया व्यक्ति अपनी बात कह रहा हो, तो उसे पूरे ध्यान से सुनना ज़रूरी होता है, बिना बीच में रोके-टोके। कई बार तो पीड़ित काे पूरी ईमानदारी से सुना जाना ही उसे राहत दे जाता है।

कोई फ़ैसला नहीं सुनाना है...

जब आप किसी के संघर्ष या मुश्किलों के बारे में सुन रही हों, तो उसकी परिस्थितियों को समझने का प्रयास करें। हो सकता है कि उसकी मुश्किल बहुत बड़ी न हो, लेकिन उसके लिए वो बड़ी ही है। निदान की जल्दबाज़ी न करें।

राज़ रखने की आदत...

यह सबसे अहम गुण है। कोई भी व्यक्ति अपनी मुश्किलें तभी खुलकर साझा करेगा, जब उसे अपने अनुभवों के राज़ रखे जाने का विश्वास होगा।

समानुभूति का भाव...

जो व्यक्ति अपने लिए निदान की खोज में आया है, वो लानत-मलामत या निंदा-आलोचना पाकर और परेशान हो जाएगा। हर इंसान की परेशानी अपने आप में अलग होती है। उसके साथ समानुभूति का भाव रखना बेहद महत्वपूर्ण होगा।

अनाम रूप से भी बयां करें समस्या

महिलाओं की सहायता के लिए ऑनलाइन भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स व एप के रूप में कई संबल और सहायता समूह काम कर रहे हैं। इन समूहों से आप अपनी पहचान को गोपनीय रखते हुए भी जुड़ सकती हैं। यहां आपको अपनी समस्या अनुसार विशेषज्ञ सहायक चुनने का अवसर मिलता है। वे आपको सुनते हैं और आपके आग्रह पर उचित सुझाव भी प्रदान करते हैं। सामूहिक रूप से भी आप अपनी बात यहां रख सकती हैं, आपकी तरह के लोगों की प्रतिक्रिया और अनुभव भी यहां आपको जानने को मिलेंगे। यहां कोई आपको लेकर धारणा नहीं बनाता है। बहरहाल, सोशल मीडिया पर सहायता समूहों से जुड़ते वक़्त निजी स्तर पर विश्वसनीयता की पड़ताल अवश्य कर लें।

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