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किसी के प्रति प्रेम या स्नेह की मात्रा नापने का कोई पैमाना नहीं होता, लेकिन एक आईना ज़रूर होता है, जिसमें प्रेम साफ़ दिखाई देता है और दिखाई देता रहता है, वो है परवाह। दुलार और परवाह का इज़हार भी कहकर नहीं, बल्कि छोटी-छोटी पहल में छुपा होता है, जिन्हें हम शायद आम-सी बात मानें, लेकिन जिनके लिए आप यह करते हैं, वे आपके स्नेह को सरलता से समझ जाते हैं।
जानिए, परवाह के इज़हार के ज़रिए क्या हैं
सुनना
हर इंसान के पास अपने मन में छुपी कई बातें होती हैं। वो कहना चाहता है लेकिन सुनने वाला नहीं मिलता। जो ध्यान से दूसरों की बात सुनते हैं, उसे धीरज से समझते हैं, उनकी परवाह साफ़ दिखाई देती है।
शिक़ायत बिना इल्ज़ाम लगाए
एक उदाहरण से इस बात को समझिए। घर में फैले सामान को देखकर आमतौर पर कहा जाता है कि 'तुमने घर को कबाड़खाना बना रखा है।' लेकिन जो परवाह करते हैं, वे कहते हैं 'घर की अस्त-व्यस्तता तकलीफ़ देती है ना? क्या करें कि ये ठीक हो जाए?' ऐसे कई उदाहरण होंगे, जो बिना किसी की ओर उंगली उठाए, काम के बारे में बात करते होंगे कि इन पर अमल करना है। यही परवाह है।
भरोसा करें
जब आप किसी से प्रेम करते हैं, उस पर स्नेह रखते हैं तो उस पर भरोसा करना, प्रेम का प्रमाण है, परवाह का संकेत है। अगर उस इंसान से कोई चूक हो भी जाए, तो उससे बात करके, भूल को दरगुज़र करते हुए, दोबारा चूक ना करने की बात के साथ एक बार फिर भरोसे की मिट्टी को जमा दें।
सब्र रखें, बर्दाश्त करें
सहनशीलता रिश्तों को संभाले रखने में महती भूमिका निभाती है। अगर आप सहन करते हैं - किसी की बात करने का ढंग, किसी का व्यवहार, किसी का रवैया, तो आप उस तक ये संदेश पहुंचाते हैं कि आपको उसकी परवाह है, इसलिए दोषों पर उंगली नहीं उठा रहे। लेकिन साथ में यह भी बताना, ज़ाहिर करना ज़रूरी है कि ऐसा व्यवहार और रवैया समाज में अच्छा स्थान और मान पाने नहीं देगा। सो, ऐसे रवैए में सुधार में मदद करना भी परवाह का ही सूचक है।
वादे निभाना
वादा जिनसे किया जाता है, उन्हें एक तरह का इत्मीनान होता है कि मेरी इनके जीवन में अहमियत है। इसी भाव को बल देना, परवाह का सूचक है। तभी तो वादा निभाना साबित करता है कि आपको उस इंसान की परवाह है।
मदद बिना उम्मीद के
आप किसी से बदले में कुछ पाने या अहसान माने जाने के लिए कुछ करते हैं, तो इसे मदद नहीं कह सकते क्योंकि इसमें परवाह शामिल नहीं है। जिनकी आपको सचमुच परवाह होती है, उन्हें मुश्किल में कैसे छोड़ सकते हैं और जो उन्हें कठिनाइयों से उबार लिया, तो केवल ख़ुश होंगे, सुकून पाएंगे, ना कि अहसान जताएंगे।
बिना उलझे संवाद करना
कई सवाल ऐसे होते हैं, जिनका जवाब अगर उल्टे सवाल के रूप से या क्रोध में दिया जाए, तो उलझनें बढ़ जाती हैं, झगड़े हो जाते हैं। जिनकी आप परवाह करते हैं, उनको सीधी भाषा में जवाब देना उन्हें परेशानियों से बचाता है और संवाद भी सुथरा बना रहता है।
छूट दें
जिनके सुख-दुख की हमें चिंता होती है, उन्हें कुछ मामलों में छूट देना, एक तरह से उन्हें राहत देना ही है। ऐसा करना भी परवाह की ही निशानी है। इसका अंदाज़ हल्का-फुल्का हो, तो अच्छा। छूट कभी-कभार और उन मामलों में दिया जाना उचित होता है, जिसमें आपका हित ही अधिक हो, ताकि उसकी सख़्ती में ढील देना किसी और को नहीं, बल्कि केवल आपको प्रभावित करे और आप ख़ुशी-ख़ुशी ढील बरत सकें।
रोज़मर्रा की ऊब से निकालने के लिए अपनों को सुखद आश्चर्यों को तोहफा देना, उनके शोक, उनके जुनून को तराशने में उनकी मदद करना, उनके साथ समय बिताने के लिए उनकी पसंद के काम भी करना जैसे कई रास्ते हैं, जो परवाह को प्रकट करते हैं।
परवाह है, दबाव नहीं
परवाह फिक्र करने का नाम है। इसमें दबाव का लेशमात्र भी पुट नहीं है। किसी अपने की ख़ुशी में ख़ुश होना, उसके आराम और सुकून का ख़्याल रखना, उसे शब्दों की चोट ना लगे, इसका ध्यान रखते हुए बात करना, उसकी बात को ध्यान से सुनना, उसकी मुश्किलों में मदद करना - परवाह के कई माध्यम हैं, जिनसे ये बिना कहे ज़ाहिर हो जाती है। और यही प्रेम का असली रूप है।
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