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बालमन
‘बेटा सुबोध! ऑफिस से आते वक़्त गुप्ता की दुकान से मेरा चश्मा लेते आना। ‘हां पिताजी, लेता आऊंगा।’ ‘बेटा सुबोध! मेरी दवाइयां लेते आना। कल शाम को ख़त्म हो गईं।’ ‘हां! मां याद से लेता आऊंगा।’ ‘सुनो! कल मेरा जन्मदिन है पता है ना?’ ‘हां! रंजना पता है। कल तो उपहार मिलेगा हमेशा की तरह।’ ‘पापा! मेरी नई स्कूल ड्रेस कब लाकर दोगे? दो दिन से मैडम जी डांट रही हैं।’ ‘लो अब चुनमुन बिटिया की फरमाईश सुनो। अच्छा बाबा आपके लिए भी नई ड्रेस ला देंगे। अब मैं ऑफिस के लिए जाऊं, किसी की ओर कोई फरमाईश हो तो बता दो।’ ‘पापा! आपके जूते बहुत पुराने हो गए, वह भी लेते आना। और हां, ये आपका बैग भी कितना गंदा हो गया।’ सबकी नज़र चुनमुन बिटिया पर टिक गई। ‘हां चुनमुन बिटिया बिलकुल अपने लिए भी लाऊंगा। अब जाऊं दफ़्तर के कामों का भी ख़्याल रखना है। नहीं तो दफ़्तर वाले घर आ जाएंगे।’ सुबोध चुनमुन बिटिया को थपकी देते हुए बाहर निकल गया। चुनमुन की नज़र अब भी अपने पिता के जूतों और बैग पर थी। सबकी नज़रें झुक गई थीं। बालमन की व्यथा के आगे सारी फरमाइशें नतमस्तक थीं।
अभिव्यक्ति
एक आम आदमी और लेखक के बीच अंतर क्या है? मानव होने के नाते भावनाएं, अनुभव और कल्पनाएं दोनों के पास हैं, फिर कौन-सी चीज़ लेखक को विशिष्ट बनाती है? उत्तर है, शब्द और शैली। कोई सामान्य व्यक्ति लिखना भी चाहे, तो मौक़े पर शब्द नहीं सूझते हैं। हर अवसर पर घूम-फिरकर गिने-चुने लफ़्ज़ ही मन में आते हैं। भावनाएं उद्वेलित तो करती हैं, किंतु क़लम बढ़ नहीं पाती या सिर्फ़ अटकती-घिसटती रह जाती है। कोई शख़्स "बहुत बढ़िया' या "बहुत सुंदर' कहकर रह जाता है। लेखक इसी बात को कम-से-कम बारह तरह से कह सकता है। उसका शब्द-भंडार बड़ा होता है, उसकी अभिव्यक्तियों का ढंग निराला होता है। चार पंक्तियां पढ़कर भी इस अंतर को समझा जा सकता है। संपादक जानते हैं कि कौन पेशेवर लेखक है, कौन शौक़िया और कौन इस क्षेत्र में बस शुरुआत कर रहा है! शब्द-भंडार और अभिव्यक्तियां विकसित करने के लिए साधना की ज़रूरत पड़ती है। नैसर्गिक प्रतिभा अपनी जगह महत्वपूर्ण है, परंतु साधना के बग़ैर प्रतिभा भी बेअसर रह जाती है। यह एक दिन की बात नहीं है, आपका दिमाग़ हर समय सक्रिय रहना चाहिए- अभिव्यक्ति के प्रत्येक अवसर पर! यहीं पर बात आसान हो जाती है, क्योंकि कहने का ढंग निखारने के लिए आपके पास मौक़े ही मौक़े हैं। शुरुआत लिखित अभिव्यक्तियों से करें। क्या कहा, आपको लिखने का मौक़ा ही नहीं मिलता! सोशल मीडिया पर "हार्दिक बधाई', "अनेक शुभकामनाएं' और "ख़ूबसूरत' जैसे शब्द तो लिखते ही होंगे। सोशल मीडिया इनसे अटा पड़ा है। तो अब अभ्यास के लिए इन भावनाओं को अलग ढंग से व्यक्त करने की कोशिश कीजिए। नए-नए शब्दाें और तरीक़ों से बधाई दीजिए। शुभकामनाओं और तारीफ़ के लिए नई उपमाओं और अलंकारों के बारे में सोचिए। चार पंक्ति की पाेस्ट को भी अलग ढंग से लिखने का प्रयास कीजिए। यह जान लीजिए कि किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह लेखन में भी प्रयास और अभ्यास का कोई विकल्प नहीं है।
पॉजिटिव- आज समय कुछ मिला-जुला प्रभाव ला रहा है। पिछले कुछ समय से नजदीकी संबंधों के बीच चल रहे गिले-शिकवे दूर होंगे। आपकी मेहनत और प्रयास के सार्थक परिणाम सामने आएंगे। किसी धार्मिक स्थल पर जाने से आपको...
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