डायरी के बहाने
मेरी डायरी पर बहुत से पते हो गए हैं जब कभी पन्ने पलट कर देखता हूं तब इन पतों के सहारे अनेक चेहरे सामने आने लगते हैं। कब मिला, कैसे मिला सब याद दिलाने लगते हैं। जब कभी हम कहीं दूर जाते हैं कई नए लोगों से मिलते हैं हम उनको वादा करते हैं
मिलते रहने या याद करते रहने का पर बहुत दिनों तक नहीं चल पाता यह सिलसिला। पते लिखे रह जाते हैं चेहरे धुंधले पड़ने लगते हैं। अचानक फिर किसी मोड़ पर होती है मुलाक़ात तो सामने वाला पूछता है -पहचाना? कुछ याद नहीं आता।
शर्मिंदगी का अहसास होने लगता है फिर से लिखता हूं नाम और पता। डायरियां बदलती रहती हैं। नाम और पते अपनी ज़रूरत के कारण कटते और छूटते रहते हैं। सबकी अपनी अपनी ज़रूरत अपने अपने शौक़ कौन कब तक अच्छा लगे जो याद रखा जाए? डायरी में नाम कटते और छूटते रहते हैं। कभी ऐसा भी होता है पता चलता है कि लिखे नाम और पते वाला आदमी इस दुनिया से विदा हो गया। तब डायरी पर देर तक देखता रह जाता हूं... सब याद आने लगता है कब कब, कहां मिले थे कितने हंसे और कितने रोये थे। आंखें नम होने लगती हैं...
बेशक नहीं जा पाता उसकी अंतिम विदा बेला में पर लगता है, जीवन का कुछ छूट गया भीतर ही भीतर कुछ टूट गया। कोई अपना चला गया। डायरी से नाम काटते वक़्त बहुत अजीब लगता है। यह सोच कर कि इस पते पर भेजी किसी चिट्ठी का कोई जवाब नहीं आएगा। सच, मेरी चिट्ठी कभी नहीं पहुंचेगी और पहुंच भी गई तो कौन देगा जवाब? बेबसी में डायरी बंद कर देता हूं। क्या आपके साथ भी ऐसा होता है?
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