दिन कैसा चंट परचूनी वाला है
दो किलो उदास पलों में एक पाव मिलाता है ख़ुशियां
रंग में एक-सा रखता है सुख-दुख
जीभ पर रखो, दांत से दबाओ तो मालूम पड़ता है कि ख़ुशी है या कि दर्द।
सच तो ये भी है कि दुख पहाड़-सा लगता है लेकिन कभी किसी ने कहा पहाड़-सी ख़ुशियां?
दरअसल, हमने ख़ुशियों के साथ ‘छोटी’ शब्द जोड़ ही लिया है उपसर्ग की मानिंद। ख़ुशियों का उपसर्ग। लेकिन तब भी पहाड़-सा दुख इन छोटी ख़ुशियों से एक पल में भरभराकर गिर पड़ता है। मगर ये छोटी ख़ुशियां मिलती कहां हैं, इन्हें कहां से इकट्ठा करें। कैसे पहचानें और इकट्ठा करें? ये एक बड़ा सवाल है, सवाल से अधिक ये एक टास्क है।
ख़ुशियां तलाशते हैं हम
दुख खोजना नहीं पड़ता, दुख हमें खोज लेता है। ख़ुशी को तलाशना पड़ता है तभी ये ज़रा मुश्किल काम है। ये तलाश अपने भीतर से ही कहीं शुरू होती है। एक बहुत ही सामान्य और सरल उदाहरण है –
कल मैंने पेट्रोल पंप वाले को कहा, ‘टंकी फुल कर दो, स्कूटर की’
उसने 430 रुपये 41 पैसे का पेट्रोल भरा। कार्ड पेमेंट पर उसने सिर्फ़ 430 रुपये ही काटे। मैंने 41 पैसे का पेट्रोल फ्री में पाया, ज़रा ख़ुशी-सी हुई।
बस इस बात ने मुझे इतना ख़ुश किया कि मैं भूल गई कि 430 रुपये भी ख़र्च हुए हैं। इसी तरह सब्ज़ी वाला जब मुफ्त में धनिया-मिर्च देता है तब भी ख़ुशी होती है लेकिन उसे हम नज़रअंदाज़ कर जाते हैं।
वाक़ई, ये ज़रा-सी ख़ुशी कितनी महंगी है लेकिन कितनी बेशक़ीमती है। उतनी ही क़ीमती जितना कि वक़्त है।
सेकंड की सुई-सी है ख़ुशी
दीवार पर लगी या कलाई में पहनी घड़ी को देखिए एक दफ़ा। मान लीजिए कि दुख है घड़ी में घंटे का कांटा, बड़ा धीरे-धीरे सरकता हुआ जैसे यहीं रहना है उसको, कहीं जाना ही नहीं है और ख़ुशियां हैं सेकंड की सुई। झट से आती हैं, झट से गुज़र जाती हैं। अगर उन्हें नहीं सहेजा तो वो घंटे की सुई का साथ देती हैं और जाकर दुख में मिल जाती हैं, दुख का पूरा एक घंटा, सुख का एक पल नहीं।
मशहूर लेखक हारुकी मुराकामी अपनी किताब ‘काफ्का ऑन द शोर’ में लिखते हैं –
जैसे टॉल्स्टॉय ने कहा कि प्रसन्नता या ख़ुशी महज़ एक रूपक है जबकि अप्रसन्नता या दुख एक कहानी है।
‘अपने दुख को कहानी बनने के बजाए ख़ुशियों के छोटे-छोटे से क़िस्से इकट्ठे करें तो कितना बेहतर होगा।
ख़ुशी का एक क़िस्सा है
मैं अक्सर घर से निकलती हूं, रास्ते में एक खेत पड़ता है, खेत के बीचों बीच एक खूंटे से घोड़ा बंधा रहता है। उस घोड़े के पास एक चिड़िया भगाने वाला बिजूका खड़ा रहता है। दोनों एक-दूसरे से विपरीत दिशा में मुंह किए खड़े रहते। मैं रोज़ सोचती थी कि काश एक रोज़ ये लोग आमने-सामने मुंह कर खड़े हुए मिलें। और एक रोज़ ये हुआ। उस रोज़ मुझे इतनी ख़ुशी हुई कि क्या बताऊं। मैंने जब इस ख़ुशी को दोस्तों से, घर पर साझा किया तो सभी ने कहा ये क्या ख़ुशी का सबब हुआ?
मैंने कहा असल ख़ुशी तो बेसबब ही होती है। हां, उसे दर्ज करना और महसूस करना बेहद ज़रूरी होता है। मैंने किया, अपने मोबाइल में उस लम्हे को क़ैद कर लिया। एक तस्वीर ले ली और हैरत की बात ये है कि इसके बाद दोनों कभी उस स्थिति में नहीं मिले। एक रोज़ घोड़ा ग़ायब हो गया सिर्फ़ बिजूका खड़ा था। मैंने खेत के मालिक से पूछा तब उन्होंने बताया कि वो तो भाग गया। बस ऐसे ही ख़ुशियों के घोड़े बेलगाम होते हैं, भाग छूटेंगे ही। उन्हें थामे रखिए।
अपनी ख़ुशी को पहचानिए
आप किस बात पर ख़ुश होते हैं, किसी से बात होने पर, किसी का मैसेज आने पर या किसी के दिख जाने पर ही हो जाते हैं। कोई तस्वीर क्लिक करना पसंद है कोई रील वीडियोज़ बनाना। किसी को घर के बग़ीचे को संवारना, घर के अंदर सजावट करना, खाना बनाने में या खाना खाने में। ये सब आपको ख़ुद से महसूस करना है। यहां बात उन ख़ुशियों की नहीं हैं जिनकी आप योजना बनाते हैं जैसे ज़रा-ज़रा धन जमा कर अपना एक घर ख़रीदेंगे, बच्चे को बाहर पढ़ने भेज देंगे। ये बड़ी और योजनाबद्ध ख़ुशियां हैं। बात उनकी है जो अनायास ही मिल जाती हैं। जैसे किसी सपने में लॉटरी लग गई हो। जैसे जोड़ी में से खोई हुई कोई एक जुराब वापस मिल गई हो।
ये अनंत और अनवरत मिलने वाली ख़ुशियां हैं, जिन्हें हम अक्सर ख़ुशियों में शामिल नहीं करते या नज़रअंदाज़ करते रहते हैं।
फ़िलॉसफ़र कामू कहते हैं आप कभी ख़ुश नहीं रह सकते अगर ख़ुशियों की तलाश करते रहे तो। आप कभी नहीं जी पाएंगे अगर जीवन की तलाश करते रहे तो। जीवन का फ़लसफ़ा यही है कि जीते रहें बिंदास। ज़रूरी नहीं कि आप ख़ुशियां तलाशने के लिए पर्वतों पर जाएं, समंदर को छुएं या जंगल में खो जाएं। ख़ुद में गुम हो जाएं, ख़ुद को ढूंढ कर ले आएं। न सिर्फ़ छोटी-छोटी ख़ुशियां बटोरें बल्कि बांटें भी।
मुस्कान आई थी, चुपके से मेरी हथेलियों में दे गई छुपाकर लाए हुए दो सीताफल
प्रीति के जाने के बाद देखा, मेरी बाइक पर रखीं थीं चॉकलेट
ख़ुशी ने आते ही मुझे दिए पोटली भर बेर
किसी ने बनाकर ला दी थी मेरी पसंदीदा सब्ज़ी
रूठने पर मुझे मनाने को कोई ले आया गाजर का हलवा
जीवन की राह में धूप कितनी भी कड़ी क्यों न हो, कभी हवा के झोंके, तो कभी सूरज को क्षण-भर को ढक लेने वाले बादल, तो कभी टूटी टपरी में सुस्ताने जैसे छोटे सुख मिलते हैं, याद भी रहें, तो अच्छा...
इन ख़ुशियों को महसूस किया है?
गर्व— क्या आपने कभी एक चुनौतीपूर्ण कार्य समय पर पूरा किया है? या आपने कभी किसी की मदद के लिए उसका कार्य स्वेच्छा से किया है? इन घटनाओं ने आपके भीतर गर्व का एहसास ज़रूर कराया होगा। ये गर्व भी ख़ुशी का ही रूप है।
प्रेम— किसी नए रिश्ते में आना या पसंद के व्यक्ति के साथ रिश्ते में बंधना भी असीम ख़ुशी देता है। इसके अलावा नए दोस्त बनाना, नए लोगों से मिलना, अपनों से प्रेम पाना भी ख़ुशी है।
संतुष्टि— किसकी मदद करके मन में जो भाव आता है उसे ही संतुष्टि कहते हैं। सीमित संसाधनों में रहते हुए भी मन में किसी प्रकार की हड़बड़ाहट या लालच न होना भी संतुष्टि ही है। ये संतुष्टि भी अपने आप में अलग तरह की ख़ुशी देती है।
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