राजस्थान में सीकर ज़िले के खाटूश्यामजी मन्दिर की बहुत मान्यता है। उसके पास गोवटी गांव में, टेडूरामजी के यहां 1952 की 16 अक्टूबर को मेरा जन्म हुआ। पिताजी पहाड़ी के मकानों में छत के लिए काम आने वाली पट्टियां निकालते और मां मूलीदेवी के साथ हम पांच भाई और दो बहनें खेत में काम करते। 1971 में मेरी शादी दांता निवासी सुंडाराम वर्मा से हुई। कृषि उनकी प्राणवायु है। इसलिए उन्होंने बीएससी की पढ़ाई की थी। हमने संयुक्त परिवार के अनुशासन को जीवनशैली बनाया। उनका मन अन्वेषण में रमता और बुआई, कटाई से लेकर पैकिंग तक में उनका साथ देती। एक लीटर पानी से एक पेड़ पद्धति से वे सबके चहेते बन गए। पिछले साल ही उन्हें पद्मश्री प्रदान करने की घोषणा हुई।
हम भाग्यशाली हैं कि बच्चे पढ़े और खेती में उन्होंने रुचि दिखाई। बेटे मनोज, नरेन्द्र बीए, बेटियां कविता, अंजू, संगीता मैट्रिक, सुशीला, सुनीता उच्च प्राथमिक, बहुएं संगीता बीए, बीएड और सुमन बीए, बीएसटीसी तक पढ़े। सुंडाराम जी ने मुझे सदैव कृषि नवाचारों के लिए प्रेरित किया। वो हमेशा कहते हैं कि मिनख जीवन सार्थक बनाना है तो खेती-किसानी में कुछ ऐसा करो कि लोग याद रखें।
खेत बने प्रयोगशाला
हरित क्रान्ति का दौर शुरू हुआ तो नए बीजों और नव-तकनीकों के उपयोग से उत्पादन और कमाई बढ़ी। कृषि नवाचारों में हम पति-पत्नी एकजुट हुए तो मुझे इसका गणित समझ आने लगा।
दीमक नियंत्रण
खाना पकाने के लिए मैं खेत से लकड़ी लाती। इन्हें एकत्रित करती तो इनमें दीमक लगी होती। ये विभिन्न लकड़ियों में अलग-अलग मात्रा में होती। यूकेलिप्टस (सफ़ेदा, नीलगिरि) में दीमक ज़्यादा लगती थी। निरन्तर प्रयोगों के बाद समझ में आया कि सफ़ेदे की लकड़ी में कुछ ऐसा है कि इसे दीमक खाना पसंद करती है। दीमक से बचाव के लिए, यदि फ़सल पर सफ़ेदे के टुकड़े रख दें तो समस्या का समाधान निश्चित है। यही सोचकर एक एकड़ खेत में, सौ वर्गमीटर में सफ़ेदे का दो फ़ुट लंबा और ढाई इंच मोटा डंडा ज़मीन के समानान्तर आड़े लगाया। डंडा आधा ज़मीन के अन्दर और आधा बाहर रखा। कुल 40 डंडे लगाए। इससे गेहूं की पूरी फ़सल की दीमक सफ़ेदे के डंडों में आ गई। दीमक से बचाव के लिए कोई कीटनाशक डाले बिना पूरी फ़सल बच गई। कृषि अनुसंधान केन्द्र, फतेहपुर शेखावाटी ने मेरी इस उपलब्धि को तीन वर्ष परखा और पाया कि किसी भी फ़सल में सफ़ेदे के डंडे का उपयोग करने के साथ, यदि फ़सल को नीम से उपचारित करके बोया जाए तो इसके बहुत अच्छे परिणाम मिलते हैं।
सम्मान और संपर्क
2011 ‘सिटा’ और ‘राप्रौशिस’ द्वारा जयपुर में ‘खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान
2013 महिन्द्रा समृद्धि इंडिया एग्री अवार्ड्स के अंतर्गत दिल्ली में क्षेत्रीय स्तर पर ‘कृषि प्रेरणा सम्मान’ (महिला)
2015 ‘सिटा’ और ‘राप्रौशिस’ द्वारा जयपुर में ‘खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान
2017 वेटरनरी विश्वविद्यालय, बीकानेर और मौलाना आज़ाद विश्वविद्यालय, जोधपुर द्वारा ‘खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान
2018 पैसिफ़िक विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा ‘खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान
सम्पर्क कर सकते हैं — भगवती देवी, गांव दांता (धाबाया वाली कोठी)- 332702 तहसील दांतारामगढ़, ज़िला सीकर (राजस्थान) ईमेल- Sundaramverma@yahoo.com.in मोबाइल- 9414901764
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