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छात्र उद्दंड रहा हो या मेधावी, कुछ शिक्षक उसे हमेशा याद रह जाते हैं। उनकी पढ़ाने की शैली और छात्रों से जुड़ाव बनाने का तरीक़ा अनूठा होता है जो उन्हें अविस्मरणीय बनाता है। दूसरी ओर, शिक्षक और छात्र का रिश्ता इस अर्थ में सबसे अनूठा होता है कि इसमें स्नेह, परवाह और मार्गदर्शन के साथ अनुशासन की भी बराबर भूमिका होती है। अनुशासन ही वह डोर है, जिसके बल पर शिष्य रूपी पतंग ज्ञान के आकाश में ऊंचाइयां छूती है। इस तरह शिक्षक और छात्र के सम्बंधों में दो बातें महत्वपूर्ण होती हैं : जुड़ाव और अनुशासन। असल चुनौती इन दो विपरीत लगने वाली बातों के बीच संतुलन साधने की होती है। जो यह कर लेता है, वह न सिर्फ़ छात्रों के बीच लोकप्रिय होता है, बल्कि उनके वर्तमान और भविष्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित भी कर पाता है। ऑनलाइन शिक्षा की तमाम ख़ूबियों और सहूलियतों के साथ दिक़्क़त यह है कि उसमें जुड़ाव और अनुशासन, दोनों की गुंजाइश कम है। वर्तमान दौर की मजबूरियों के बीच भविष्य के लिए तेज़ी से बदलती दुनिया में ऑनलाइन शिक्षा अब अनिवार्य मान ली गई है। कोरोना का ख़तरा समाप्त होने को है और स्कूल खुलने लगे हैं, परंतु न तो विद्यालय प्रबंधन और शिक्षक, न ही छात्र और अभिभावक ऑनलाइन पढ़ाई को पूरी तरह त्यागने के पक्ष में हैं। सम्भव है कि कुछ समय में सबकुछ पहले की तरह सामान्य हो जाए, परंतु यह तय है कि उसमें कम्प्यूटर और मोबाइल फ़ोन के ज़रिए पढ़ने-पढ़ाने का समावेश भी होगा। न्यू नॉर्मल का एक पहलू यह भी है। शुरुआत महीनों में यह ऑनलाइन पढ़ाई मजबूरी मानी जा रही थी और इसे महज़ आपातकालीन अस्थायी विकल्प की तरह देखा जा रहा था। लेकिन क़रीब सालभर के अरसे में ये अनुभवजन्य समझ बनी है कि यह सुविधाजनक और उपयोगी भी हो सकती है। अत: तय है कि कोरोना चला जाएगा, किंतु शिक्षा का ऑनलाइन माध्यम पूरी तरह विदा नहीं होगा, यह किसी न किसी अंश में हमारी शिक्षण प्रणाली का हिस्सा बना रहेगा।
सबके फ़ायदे के लिए
ऐसे में, समझदारी इसी में है कि इस माध्यम से सामंजस्य बिठाकर इसकी कमियों को दूर करने के प्रयास किए जाएं, ताकि शिक्षक और छात्र, दोनों ही इससे लाभान्वित हों।
जैसा कि पहले कहा गया, मुख्य कमी है जुड़ाव और अनुशासन बनाने में आने वाली समस्या। इसके अलावा ध्यान केंद्रित करने में दिक़्क़त भी एक बड़ी बाधा है। यह दिक़्क़त पढ़ने और पढ़ाने वाले, दोनों के साथ है। स्क्रीन पर फ़ोकस कर पाना लम्बे समय तक सम्भव नहीं हो पाता है। अभी इस बारे में अध्ययन और विमर्श किए जाने की ज़रूरत है कि ऑनलाइन कक्षाओं का समय कितना हो। यह अवधि छात्र की उम्र पर भी निर्भर करती है। कक्षा का समय कम रखना और दो कक्षाओं के बीच अंतराल बढ़ाना और उस दौरान काग़ज़ पर पढ़ाई-लिखाई के लिए प्रेरित करना एक उपाय हो सकता है।
जुड़ाव
किसी भी रिश्ते में सबसे अहम तत्व होता है, जुड़ाव। शिक्षक और छात्र के मध्य भी यह किसी अन्य सम्बंध की तरह ही अनिवार्य है। अगर यह न हो, तो ज्ञान की धारा शिक्षक से छात्र तक प्रवाहित नहीं हो पाएगी, न ही छात्र की जिज्ञासाएं शिक्षक तक सम्प्रेषित हो पाएंगी। जुड़ाव सिर्फ़ वाणी से नहीं बन पाता। इसमें प्रत्यक्ष उपस्थिति, स्पर्श, हावभाव, और समूची देहभाषा जैसे अहम तत्व होते हैं। यह ऑनलाइन शिक्षण के मौजूदा मॉडल में सम्भव नहीं है, जहां कामचलाऊ इंटरनेट कनेक्शन और छोटी-सी स्क्रीन की बदौलत पढ़ने और पढ़ाने वाले एक-दूसरे का चेहरा भर देख पाते हैं। कम उम्र बच्चों के लिए यह अपेक्षाकृत अधिक कठिन होता है।
अनुशासन
अनुशासन भी शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसकी उपयोगिता से कोई इंकार नहीं कर सकता। गुरुजी मारें धम-धम, विद्या आवे छम-छम का ज़माना जा चुका है, किंतु शिक्षक और छात्र के बीच लिहाज़ का होना अब भी उतना ही आवश्यक है, जितना पहले कभी हुआ करता था। यह न हो, तो बहानेबाज़ी, टालमटोली, अगम्भीरता और धोखा देने की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। मानव मन उच्छृंखलता की ओर भागता है। बच्चों का मन तो बंदर की तरह होता है। यदि अनुशासन का दायरा न हो, तो बाल मन एक जगह बैठे-बैठे ही उछलकूद करने लगे और दुनिया की सैर को निकल पड़े। अनुशासन छात्र को कक्षा और अध्ययन से जोड़कर रखता है। ऑनलाइन कक्षाओं में सबसे अधिक नुक़सान इसी अनुशासन को पहुंचा है। छात्र किसी भी अवस्था में कहीं भी बैठ सकते हैं। सवाल पूछे जाने पर इंटरनेट कनेक्शन कट जाने का बहाना करके गुल हो सकते हैं या आवाज़ न आने के बहाने बड़े आराम से रह सकते हैं। यहां तक कि स्क्रीन ऑफ़ करके एक झपकी भी ले सकते हैं। दूसरी ओर, शिक्षक को कैमरे की ओर देखकर पढ़ाना है और छोटी-सी स्क्रीन पर तीस-पैंतीस छात्रों पर नज़र भी रखनी है। वहां पर भी सिर्फ़ चेहरे दिखाई पड़ते हैं, जो कभी ग़ायब हो जाते हैं, तो कभी उनकी जगह कुर्सी दिखने लगती है।
ध्यान केंद्रण
जहां तक शिक्षकों को ध्यान केंद्रण में समस्या की बात है, यह नए माध्यम के साथ तालमेल बिठा लेने तक बनी रहेगी। भरी कक्षा के सामने उपस्थित रहकर पढ़ाने और कैमरे को देखकर पढ़ाने में बहुत अंतर है। कई बार कैमरा चलाने वाले शख़्स के निर्देश भी उनका ध्यान गड़बड़ा देते हैं। निर्जीव कैमरे को देखकर पढ़ाने की विवशता जुड़ाव बनने में अवरोध की तरह होती है।
अभिभावकों की ज़िम्मेदारी
ऑनलाइन शिक्षण की इन कमियों को काफ़ी हद तक दूर करने में अभिभावक सहायक हो सकते हैं। वे शिक्षक और छात्र के बीच सेतु का काम कर सकते हैं और एक हद तक अनुशासित परिस्थितियां भी तय कर सकते हैं।
1. बच्चे को स्पष्ट बताएं कि ऑनलाइन कक्षाएं भी स्कूली कक्षाओं की तरह उपयोगी और ज़रूरी हैं, अत: उन्हें हल्के में लेना ख़ुद के लिए नुक़सानदेह होगा।
2. बच्चों के बैठने की समुचित व्यवस्था करें। सम्भव हो तो स्कूल की तरह कुर्सी-टेबल रखें। ऐसा न हो सके तो एक निश्चित जगह ज़रूर तय कर दें। किसी भी जगह, किसी भी तरह बैठकर क्लास करने की छूट अनुशासनहीनता को बढ़ावा देती है। चाहें तो कमरे को कक्षा की तरह दर्शाने के लिए पोस्टर, उद्धरण आदि लगा सकते हैं।
3. यूनिफ़ॉर्म अनुशासन के लिए बहुत आवश्यक है। भले ही बच्चे का ऊपरी हिस्सा ही स्क्रीन पर दिखाई दे, उसे पूरी यूनिफ़ॉर्म पहनाएं। स्कूल के दिनों की तरह उसे कक्षाएं शुरू होने से पहले शौच, स्नान और नाश्ता की आदत डलवाएं। यह उसके स्वास्थ्य और ऊर्जा के लिए भी अच्छा होगा।
4. एक ठीक-ठाक स्क्रीन वाली डिवाइस और अच्छे इंटरनेट कनेक्शन की व्यवस्था करें। अभी बस आदि के शुल्क का जो पैसा बच रहा है, उसमें यह व्यवस्था की जा सकती है। आख़िर, आपका उद्देश्य अच्छी शिक्षा दिलाना है, न कि पैसे बचाना।
5. शिक्षक और अन्य अभिभावकों के नियमित सम्पर्क में रहें। अपने बच्चे की प्रगति के बारे में जागरूक रहें।
6. बच्चे को कक्षा के लिए अलग जगह मिलनी चाहिए, परंतु वह आपकी नज़र में भी हो। उसकी गतिविधियों पर निगाह बनाए रखें और कक्षा के बाद पढ़ाए गए विषयों के बारे में चर्चा करें।
7. कक्षाओं के बीच के अंतराल में स्क्रीन बंद कर बच्चे को शारीरिक गतिविधि या पुस्तक-कॉपी से पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित करें। उसकी दिनचर्या स्कूली दिनों की तरह रखें।
शिक्षक क्या कर सकते हैं
शिक्षक की भूमिका सिर्फ़ पढ़ा देने से अधिक है। उसे सुनिश्चित करना होगा कि जो पढ़ाया जाए, वह हर बच्चे तक सहजतापूर्वक पहुंचे और उसे कम-से-कम परेशानी हो।
1. बच्चे की प्रवृत्ति को समझकर उसके अनुसार व्यवहार करें। विद्यालय में बच्चे अपनी प्रवृत्ति के अनुसार आगे-पीछे की बेंचों पर समायोजित हो जाते हैं। अपनी तरह के दोस्तों की संगत में उन्हें सहज महसूस होता है। इसके विपरीत ऑनलाइन कक्षाओं में छात्र एक साथ शिक्षक के सामने रहते हैं। शिक्षक की ज़िम्मेदारी है कि वह बच्चे को जवाब देने के लिए प्रेरित करे, परंतु उसे असहज महसूस न होने दे, अन्यथा वह कक्षा के नाम से घबराने लगेगा।
2. बाल मनोविज्ञान, इस दौर के बच्चों के मन और उनकी विशेषताओं को जानना आवश्यक है। यह न हो कि बच्चे तो तकनीक में आगे हों और शिक्षक पीछे। कार्यक्षेत्र की ज़रूरतों के प्रति अद्यतन रहना आपके हित में होगा।
3. ऑनलाइन शिक्षण नई व्यवस्था है। कोरोना काल में यह मजबूरी के रूप में लागू हुई, परंतु अब जनसामान्य इसके महत्व को समझने लगा है। निश्चित है कि यह व्यवस्था किसी न किसी अंश में आगे भी जारी रहेगी। अत: जितनी जल्दी हो, इसकी तकनीकें सीख लें। जानें कि कैमरे के सामने बोलना और परस्पर संवाद करना प्रभावी ढंग से कैसे हो सकता है। वीडियो वेबसाइटों पर लोकप्रिय शिक्षकों के वीडियो देखकर उनकी तकनीकें समझने की कोशिश करें।
4. बच्चे की समस्याओं को जानने और अभिभावकों को उसकी प्रगति से अवगत कराने के लिए कक्षा से इतर, व्यक्तिगत संवाद किया जा सकता है। यह फ़ोन पर हो सकता है और इसका समय और अवधि दोनों पक्षों की सहूलियत से तय की जा सकती है। सोशल मीडिया माध्यमों पर लिख-लिखकर मैसेज भेजने के बजाय दोनों पक्ष बोलकर रिकॉर्ड कर सकते हैं। यह अधिक सहज और आसान होगा।
5. एक हंसी दो लोगों को जितनी जल्दी जोड़ती है, उतनी और कोई चीज़ नहीं। कक्षा का माहौल सामान्य रखने के लिए छात्रों की उम्र के अनुसार हंसी-मज़ाक़ भी करें।
6. किसी छात्र की तारीफ़ करते वक़्त ध्यान रखें कि अन्य छात्रों को उसमें अपनी आलोचना नज़र न आए। स्क्रीन पर छात्रों के मनोभाव ताड़ने की गुंजाइश कम होती है, अत: इस बात को लेकर सतर्क रहें कि उनके बीच ईर्ष्या-द्वेष जैसी भावनाएं न पनपें।
7. ख़्याल रहे कि आवाज़ बहुत तेज़ न हो, अन्यथा वह दबाव डालती महसूस होगी। स्क्रीन पर आप किस तरह नज़र आ रहे हैं, इस पर भी ग़ौर करें। आड़ा-तिरछा चेहरा और ऐंगल गम्भीरता घटाता है। इसके लिए एक बार फिर, तकनीक की जानकारी आवश्यक होगी।
ध्यान रखें कि ऑनलाइन कक्षा औपचारिकता नहीं है, बल्कि ज़रूरी और उपयोगी सुविधा है। संकट के दौर में जहां कई काम-धंधे बंद हो गए या काफ़ी दिक़्क़तें आईं, वहीं आपका कामकाज बदलावों के साथ सुरक्षित ढंग से चलता रहता। यह व्यवस्था विवशता के रूप में अपनाई गई थी, लेकिन इसने सीखने-सिखाने की अपार सम्भावनाओं से परिचित कराया है। मुख्य माध्यम न सही, सहायक माध्यम के रूप में इसका महत्व निर्विवाद है। इसलिए, इसकी कमियों को दूर करते हुए, इससे परिचय बढ़ाकर अधिकतम लाभ लेने का प्रयास करें।
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