राजस्थान के जोधपुर ज़िले के नौसर गांव में 1982 की 4 अक्टूबर को जन्म हुआ। दादाजी बिंजाराम के पास पुश्तैनी कृषि भूमि थी। पिताजी घेवरचंद और मां बाबूदेवी, दादी रामप्यारी के साथ कृषि कार्य में सहयोग करते। घर की माली हालत ठीक नहीं थी, इसलिए हम गांव में बने कच्चे झोपड़े में चले गए। बारिश के दिनों में वर्षा आधारित खेती करते। मैं 1998 में नवीं में पढ़ रहा था, तब पिताजी के आकस्मिक निधन के कारण पढ़ाई छोड़कर जोधपुर जाना पड़ा। फिर चेन्नई, मुम्बई आदि जगहों पर नौकरी के लिए भटकता रहा। अर्थाभाव के कारण गांव लौटकर बेमन से 2001 से 2014 तक छोटी-सी दुकान चलाई।
2006 में गुड्डीदेवी से विवाह हो गया। 2014 में पुश्तैनी 30 बीघा ज़मीन पर कृषि नवाचारों में जुट गया। नवाचारों ने दम दिखाया और अब 110 बीघा भूमि पर नवाचारी जैविक खेती और कृषि अन्वेषण जीने का तौर-तरीक़ा बन गई।
जैविक खेती का प्रचार
बचपन से जैविक खेती मन में रमी थी। शुरुआत में फलदार बाग़ीचा लगाया। पशुपालन के बिना जैविक खेती संभव नहीं। केंचुआ खाद, गोमूत्र, नाइट्रोजन की आपूर्ति इस प्रक्रिया के प्राणवायु हैं। थारपारकर सहित 20 देसी गायें मेरे पास हैं। नेपियर घास और अजोला की छह इकाइयां लगा रखी हैं।
लम्बे और मीठे शकरकंद
2015 में शकरकंद की खेती पुश्तैनी क़िस्म से शुरू की। यह एक कंद वाली फ़सल है। उसके ऊपर और बाहर किसी प्रकार की बीमारी नहीं लगती। पत्तों से ज़मीन ढक जाने के कारण मल्चिंग का काम हो जाता है। हालांकि समस्याएं भी अनेक थीं। रंग और क़िस्म अच्छे नहीं थे। जहां ज़मीन सख़्त होती है, वहां शकरकंद छोटा और जहां रेतीली वहां बड़ा। मैंने देखा कि धागे होने के कारण दांतों में फंस जाते हैं। सलेक्शन विधि से चार वर्ष बाद बिना धागे वाला शकरकंद मिला। मेरी थार मधु क़िस्म पसंद की गई। बिना धागे वाले शकरकंदों में से कुछ की सफ़ेद जड़ें मिलीं। उनसे मैंने अलग पौध तैयार की।
निरंतर कोशिशों के बाद 2020 में बिना धागे की सफ़ेद मूली जैसा, बिना धागे का मीठा शकरकंद मिला। यह लंबे समय तक ख़राब नहीं होता। यहीं नहीं रुका। बड़े-बड़े मेड़ बनाकर सफ़ेद शकरकंद की बुवाई शुरू की। लंबाई में दो-ढाई फीट के शकरकंद मिलने लगे।
नींबू की नई क़िस्म
मौसमी के पौधे के ऊपर, ग्राफ्टेड करके बिंजोरा नींबू लगाया। उस क़िस्म से नई पौध तैयार की। उसके ऊपर मैंने बिना बीज वाली नींबू की क़िस्म के पौधों का प्रयोग किया। इससे एक ही पौध पर बीज और बिना बीज के नींबू लगते हैं। इसमें मुझे 4-5 वर्ष लगे लेकिन इसे बहुत पसंद किया गया। इससे मैंने कई लोगों की पथरी का इलाज भी किया। देसी नींबू से कम रस वाली क़िस्म तैयार की। इसमें वर्ष में दो बार जुताई करते हैं। अचार वाले नींबू में अगस्त व मार्च में फल आते हैं। इसके अलावा, काला, बैंगनी, सुनहरा चमकीला और लाल सुनहरा चमकीला गेहूं मेरे खेत में होता है। चिया सीड भी लगाया। इनकी मांग और दाम अच्छे हैं।
मूल्य संवर्धन के प्रयास
कृषक संचालित कृषि उद्योग के बिना किसानों के लिए ख़ुशहाली मृगतृष्णा है। इसके लिए महालक्ष्मी जैविक कृषि फार्म और महालक्ष्मी डेयरी फार्म पंजीकृत करवाए। शकरकंद पूरे वर्ष चले, इसके लिए इनके चिप्स बनाता हूं। ये सालभर चलते हैं। इनकी पैकेजिंग मेरे खेत पर ही होती है। बारिश में होने वाले बाजरा व काचरी (काकरिया) भी लंबे समय तक नहीं टिकते। इनका मूल्य संवर्धन करके काचरी का सॉफ्ट ड्रिंक और बाजरे के कुरकुरे, मठरी एवं लड्डू बनाता हूं, जो लंबे समय चलते हैं। आंवले के अचार, कैंडी, मुरब्बा और लड्डू, टमाटर की चटनी व साॅस और नींबू का अचार एवं शरबत बनाता हूं।
गाय के गोबर से जीवामृत, वर्मी कम्पोस्ट, वर्मी वास, गोमूत्र अर्क जैसे खेतों में काम आने वाले आदान, लाभकारी रहे। गोबर से धूपबत्ती, स्वस्तिक, ओम, हवन कंडे बनाने शुरू किए हैं। खेत में दो टैंक हैं- जीवामृत बनाने का और मिंगनी खाद से अर्क निकालने का। देसी गायों से क़रीब 40 लीटर दूध रोज़ाना मिलता है। इनसे बना घी बारह सौ रुपए लीटर बिकता है।
2023 मिलेट्स वर्ष है। हमारे अनेक उत्पाद मोटे अनाज से बने हैं। इस कारण आने वाले समय में इनकी मांग बढ़ेगी।
सम्मान और पुरस्कार
2020 कृषि विभाग, जोधपुर द्वारा जि़लास्तरीय सम्मान।
2021 कृषि विवि जोधपुर द्वारा शकरकंद की उन्नत क़िस्म के लिए सम्मानित।
2022 ऑर्गेनिक इंडिया द्वारा मुम्बई में ‘धरती मित्र अवॉर्ड’।
संपर्क कर सकते हैं...
रावलचंद पंचारिया, ग्राम नौसर, तहसील लोहावट, जि़ला- जोधपुर-342302 (राजस्थान)
ईमेल: rawalchand457@gmail.com,
मोबाइल : 9784497852
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