दक्षिण अमेरिका की एंडीज़ पर्वतमाला की तलहटी में बसा है एक छोटा-सा राष्ट्र इक्वाडोर। ख़ूबसूरत, रम्य और नयनाभिराम समुद्री दृश्यों से ओतप्रोत। यहां के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा फ़ैसला सुनाया जो कि मानव जाति और उससे बढ़कर प्रकृति के हित में है। न्यायालय ने अपने निर्णय में मनुष्यों की तरह प्रत्येक वन्य प्राणी के अधिकारों को क़ानूनी रूप से मान्यता प्रदान की है। एक ऐसे समय में यह फ़ैसला और भी महत्वपूर्ण है जब मनुष्यों ने जीवों पर अपना जन्मजात अधिकार मान लिया है और उनके जीवन को नगण्य।
जीने का हक़ सभी को है
यह फ़ैसला कोर्ट द्वारा एस्ट्रेल्लिटा नामक बंदरिया के केस की सुनवाई में आया। एस्ट्रेल्लिटा एक माह की थी जब उसे ग़ैर-कानूनी रूप से वन से लाया गया था। उसके बाद 18 वर्षों तक वह पालतू पशु के समान एक महिला के पास रहती रही। किंतु, एस्ट्रेल्लिटा को स्थानीय प्रशासन ने पकड़कर चिड़ियाघर भेज दिया। वहां उसे कार्डियो-रेस्पिरेटरी अरेस्ट आया और एक माह के भीतर ही उसकी मृत्यु हो गई।
इस दौरान, उसकी मालकिन अना बेत्रिज ने बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका दायर की। अना ने मांग की कि एस्ट्रेल्लिटा को उन्हें वापिस लौटाया जाए और न्यायालय यह आदेश दे कि बंदरिया के अधिकारों का हनन हुआ है। कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फ़ैसले में कहा कि दोनों पक्षों ने एस्ट्रेल्लिटा के अधिकारों का हनन किया है, क्योंकि इक्वाडोर में जंगली जीवों को पालतू की तरह रखना ग़ैर-क़ानूनी है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि वन्य जीवों के पास यह अधिकार है कि न तो उनका शिकार किया जाए, न पकड़ा जाए, न उन पर क़ब्ज़ा किया जाए, न तस्करी और क्रय-विक्रय किया जाए। उन्हें अधिकार है कि वे न किसी के पालतू जीव के रूप में रहें और न ही उन्हें इसके लिए मजबूर किया जाए। ग़ाैरतलब है कि वर्ष 2008 में इक्वाडोर प्रकृति के अधिकारों को संविधान में शामिल करने वाला पहला राष्ट्र बना था।
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