नववर्ष पर संकल्प लेने का चलन बहुत आम हो चुका है, लेकिन इनकी उम्र बहुत कम होती है, यह भी सर्वविदित है।
हालांकि, इस बात से इनकार नहीं कि संकल्प पर टिककर मनुष्य 365 दिनों में ही स्वयं की बेहतरी के लिए बहुत कुछ कर सकता है, तौर-तरीक़ों को बदलकर व्यक्तित्व विकास के क्रम में ऊपर उठ सकता है। ग्रेगोरियन नववर्ष के अवसर पर प्रस्तुत हैं 12 आदतें जिनको संकल्प लेकर अपनाने से आपका समग्र विकास तो होगा ही, साथ ही घट रहे परिवर्तन से साक्षात्कार भी कर सकेंगे।
इन आदतों की विशेषता यह है कि सालभर में कभी भी इन्हें अपना सकते हैं, माह विशेष के मुताबिक़ चुन सकते हैं।
1. सिखाने से हम सीखते हैं
कई बार हमें लगता है कि हममें कोई प्रतिभा नहीं, हमें कुछ नहीं आता। पर ऐसा करके हम ख़ुद को कमतर आंकते हैं। यदि आप जीवन में अमरत्व को प्राप्त होना चाहते हैं तो किसी को कुछ सिखा दें। आपका सिखाया जब तक इस दुनिया में रहेगा, पीढ़ी-दर-पीढ़ी यात्रा करेगा, आपका विश्व में अस्तित्व रहेगा। सिखाने का एक दूसरा पहलू यह भी है कि सिखाते हुए आप भी निखरते हैं। तो भले ही फिर वह कोई व्यंजन बनाना हो, किसी सामान्य काम को करने का कोई विशेष तरीक़ा हो या कोई सीख, किसी को सिखा अवश्य दें।
2. विचारों की छंटाई
यदि समय-समय पर अलमारी के कपड़ों की छंटाई नहीं करते हैं और नए कपड़े जोड़ते चले जाते हैं तो एक दिन ऐसा आता है कि कपड़ों का ढेर लग जाता है और आवश्यकता पड़ने पर जो कपड़ा हमें चाहिए होता है वो मिलता ही नहीं है। यही हाल हमारे मस्तिष्क का भी होता है। अच्छे विचारों और यादों को एक डायरी में लिखें, उन्हें सहेजकर रखें। वहीं विचलित करने वाले विचारों और बुरी यादों को एक पन्ने पर लिखकर कूड़ेदान में डाल दें। थोड़े-थोड़े दिन में ऐसा करके आप अपने मग़ज़ के वॉर्डरोब को व्यवस्थित कर सकेंगे।
3. हर दिन ख़ुद से आगे
‘कुछ लिखकर सो, कुछ पढ़कर सो। तू जिस जगह जागा, उस जगह से बढ़कर सो।’ भवानी प्रसाद मिश्र की इन पंक्तियों को इस वर्ष आत्मसात कर लें। इसकी प्रक्रिया बहुत आसान है। सोने से पहले कुछ लिखने या पढ़ने की आदत डालें। पढ़ने-लिखने में रुचि नहीं है तो काम या ऐसे विषय के बारे में थोड़ी जानकारी जुटाएं जो आपको रुचता हो। ऐसा करेंगे तो विगत के ख़ुद की तुलना में वर्तमान के स्वयं को आगे पाएंगे। इतना भी यदि नहीं हो सकता तो कोई मंत्र बोलकर या ईश नाम लिखकर सोएं। यक़ीन मानिए, यह आपको भीतर से संतुष्टि देगा।
4. एक आदत, जो काम बना दे
कुछ काम सीखना हम इसलिए भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं, क्योंकि हमारी नज़र में वे छोटे होते हैं। गाड़ी चलाते हुए दस साल हो जाने के बावजूद महिलाएं कई बार मेन स्टैंड पर गाड़ी लगाना नहीं जानती हैं, कई पुरुष शर्ट का बटन नहीं टांक पाते हैं। इन छोटे-छोटे कामों के लिए लोग परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। कई बार स्थिति ऐसी भी बनती है कि आसपास कोई होता नहीं है और आप फंस जाते हैं। इसलिए इस वर्ष कुछ ऐसे काम सीखें जो बहुत सामान्य हैं, लेकिन आपको नहीं आते या आपने उन्हें सीखने की कभी कोशिश ही नहीं की।
5. परिजनों के लिए एक नियम
यदि आप सब एक घर में रहते हैं, या नौकरी-पढ़ाई इत्यादि कारणों से सब साथ नहीं हैं तब भी, परिवार के लिए एक नियम का होना तो जीवन में बहुत ज़रूरी है। सभी घर में हैं तो सुनिश्चित कर सकते हैं कि एक समय का भोजन सभी साथ करें या सोने से पहले मोबाइल की अनुपस्थिति में पांच-दस मिनट के लिए साथ बैठें। यदि दूर रहते हैं, तब ऐसा नियम बना सकते हैं कि सप्ताह में एक बार माता-पिता के अलावा अन्य परिजन से बात करेंगे। फिर वे दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ, चचेरे-मौसेरे भाई-बहन, कोई भी हो सकते हैं।
6. बारह ख़त, चुन-चुनकर
याद करें हिंदी की शिक्षिका ने जो चिटि्ठयां लिखना सिखाई थीं, वो क्या काम आईं? विद्यालय के बाद कभी कोई पत्र नहीं लिखा तो इस वर्ष लिखिए। इस वर्ष आपको बारह चिटि्ठयां लिखना है, इनमें पुराने दोस्त की यादों की खिड़की को खोला जा सकता है तो पिता से वे सब बातें कही जा सकती हैं, जो कभी कह न सके या पार्षद-महापौर को ही आस-पास की समस्याओं से अवगत कराया जा सकता है। सोचिए, जब इनका प्रतिसाद आने लगेगा और सिलसिला चल पड़ेगा तो बारह में से कम से कम छह अपनों से तो सम्पर्क मज़बूत होगा।
7. शौक़ पीछे नहीं छूटा है
सीखने के लिए न तो कोई विशिष्ट आयु होती है और न ही कोई समय। इस वर्ष वह सीखना है जो हमेशा से सीखना था या जिसके लिए जीवन से इतना समय भी न चुरा पाए कि उसे सीख सकें। बचपन में भरतनाट्यम सीखना था, आज भी वह नृत्य देखकर आंखों में चमक आ जाती है तो इस वर्ष उसे सीखने की शुरुआत की जा सकती है। कॉलेज के दिनों से ही उर्दू मन को ख़ूब भाती है, दिल करता है कि उसे सीखने का लक्ष्य बना लें। अब तो ऑनलाइन शिक्षा भी उपलब्ध है। इस वर्ष कोई बहाना नहीं चलेगा, शौक़ के लिए थोड़ा समय तो निकालना ही होगा।
8. स्वहित में क्षमा करना
पिछले वर्ष किसी से कोई झगड़ा हुआ था, आज भी जब वो शख़्स दिखता है तो वही सब याद आ जाता है, हम घंटों अपना ख़ून जलाते हैं। इसमें नुक़सान किसका है? इसलिए पिछले वर्षों में जिन-जिन लोगों ने हमारे मन को चोट पहुंचाई है, उन्हें माफ़ करना होगा। क्षमा करना, भूल जाना, आसान नहीं होता है, लेकिन जनवरी से हम इसकी शुरुआत करेंगे, जो बातें याद आती हैं उन्हें नज़रअंदाज़ करेंगे या नए विचारों से बदलेंगे तो यह काम आसान हो जाएगा। नकारात्मकता का बोझ उतर चुका होगा। आप अच्छे लोगों का जीवन में स्वागत कर सकेंगे।
9. एक काज, रहे ख़ुद तक
सालभर सरोकार के कार्य सभी को करने चाहिए। ये बात हमेशा ध्यान रहनी चाहिए कि ऐसे काम हम इच्छा से नहीं बल्कि संसार की सर्वोच्च शक्ति के आदेश पर करते हैं, हम सिर्फ़ माध्यम होते हैं। वर्ष में एक या अधिक, अपनी क्षमतानुसार ऐसे कार्य करें जो किसी दूसरे के जीवन को सुगम बनाते हों। लेकिन इन कामों को करने के साथ एक ही शर्त है कि एक हाथ से किए काम की ख़बर दूसरे हाथ को भी न हो। अन्य लोगों को तो दूर, घर में माता-पिता, पति/पत्नी, बच्चों तक को भी इनका पता न हो, तभी जीवन की सार्थकता है।
10. दिनभर का हिसाब-किताब
यदि टू-डू लिस्ट नहीं बनाई है तो इस बार बनाना शुरू कीजिए। सुबह उठते लिखें कि दिनभर में क्या-क्या करना है और रात में सोने से पहले सूची को देखिए कि उनमें से कौन-कौन से हो चुके हैं। जो काम हो चुके हैं, उन पर निशान लगाइए, जो शेष हैं अगले दिन उन्हें कीजिए। कोशिश करें कि लिखे गए सभी काम दिनभर में पूरे कर लें। ऐसा करने से कामों को भूलने की समस्या से निजात मिलेगी और दिन के अंत में आत्मसंतोष रहेगा। कामों को लिखने में क्रम का ध्यान रखें, जो काम प्राथमिकता से करने हैं, उन्हें शुरुआत में ही लिख दें।
11. आओ थोड़ा ज़िम्मेदार बनें
ज़िम्मेदारी ख़ुद से आती है और आपको परिपक्व व बेहतर बनाती है। साल की शुरुआत में एक पौधा लगाएंगे और पूरे साल उसका रखरखाव करने के बाद उसकी वृद्धि देखेंगे तो स्वयं को पौधे के पालक के रूप में पाएंगे। यदि पौधे की ज़िम्मेदारी नहीं लेनी है तो ख़ुद के प्रति भी ज़िम्मेदार हो सकते हैं। प्रतिदिन एक फल खाने जैसी कोई आदत विकसित कर सकते हैं या सप्ताह में एक बार ही सही पर अपने लिए कुछ सेहतमंद पका सकते हैं। सड़क पर घूमने वाले श्वान, पक्षियों के दाना-पानी की ज़िम्मेदारी लेकर निश्चित ही अच्छी अनुभूति होगी।
12. थोड़ा समय, बस अपने लिए
दिनभर में 2 मिनट, 5 मिनट या उससे अतिरिक्त आपको अपनी आत्मा को देना है। यह वह समय है, जब आपको शांत वातावरण में शांत चित्त से बैठना है, संसार से मुक्त होकर। इस दौरान महसूस करना है कि संसार का संचालन करने वाली परमशक्ति का वास आपके अंत:करण में है और अपने अस्तित्व के लिए आप उस कर्ता-धर्ता को धन्यवाद ज्ञापित कर रहे हैं। ऐसा करके आप विचारों की उथल-पुथल से स्वतंत्र होकर हर दिन को सकारात्मक दिशा दे सकेंगे।
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