सोम की प्राचीनता जगविख्यात है। वेदों में सोम का स्तुतिगान द्रष्टव्य है।
वैदिक काल से ही सोम नामक लता का रस यज्ञ में तर्पण व पान के काम में आता था। सोमरस देवताओं का प्रिय पेय माना गया। सोमरस अमृततुल्य कहा गया। इसी से सोम के अर्थ में अमृत भी है।
सोमक्षीरा सोमवल्ली है और सोमक्षीरी सोमलता। सोमलता के डंठल या अंकुर को सोमांशु तो कहते ही हैं, चंद्र की किरण को भी सोमांशु संज्ञा प्राप्त है। गुलचांदनी सोमबेल है। गुडूची यानी गिलोय, पातालगारुड़ी, लताकरंज, ब्राह्मी, सुदर्शन, गजपिप्पली, वनकार्पास ये सब सोमवल्ली हैं। सोमरस को निचोड़ने के लिए प्रयुक्त कपड़े को सोमपरिश्रयण कहना उचित होगा। सोमपीति का अर्थ सोमपान करना है। सुगंधित चंदन को सोमयोनि भी कहा गया और जिस पात्र में घिसा चंदन रखा जाए उसे सोमपिती कहते हैं। ऐसे नगण्य-से पात्र का भी ऐसा सुंदर नाम भाषा की समृद्धता का द्योतक है।
जिस यज्ञ में सोमपान किए जाने का विधान था वह सोमयज्ञ कहाता था। इस यज्ञ की घोषणा करने वाले को सोमप्रवाक कहते थे। सोमयाग एक त्रैवार्षिक यज्ञ था जिसमें सोमपान किया जाता था। सोमरस चढ़ाने वाले ऋत्विक् को सोमसुत् कहा गया। वेदों की सोम-सम्बंधी ऋचाएं सोमसूक्त कहलाती हैं।
वहीं दूध सोमरसोद्भव है और पेठा सोमगृष्टिका कहलाता है। सोमसंज्ञ कपूर है। सोमालक पुखराज है। आर्यावर्त के मुकुटमणि कश्मीर में जन्मने वाले सोमदेव ने ग्यारहवीं शती में कथासरित्सागर की रचना की थी। पाटलिपुत्र का एक प्राचीन नाम सोमपुर भी प्राप्त होता है। प्राचीनकाल में सोमराष्ट्र एक जनपद था।
प्रभास क्षेत्र में चंद्रमा ने महादेव की स्तुति हेतु महालिंग स्थापित किया और चंद्रमा का उद्धार करने वाले शिवशंभु सोमनाथ रूप में वहां विराजे। भारतीय भूखंड के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शीर्ष सोमनाथ महादेव हैं। इसी पुण्य प्रभास क्षेत्र में एक सोमतीर्थ भी स्थित है। विश्वनाथ की नगरी काशी में भी चंद्रमा ने एक शिवलिंग स्थापित किया था जो सोमेश्वर के नाम से विख्यात हैं। शिवलिंग के स्नान का जल-दुग्ध निकलाने वाली नलिका सोमसूत्र है। शिवलिंग की इस तरह परिक्रमा करना कि वह नलिका यानी सोमसूत्र लांघनी न पड़े उसे सोमप्रदक्षिणा कहते हैं।
चंद्रमा-सा सुंदर सोमसुंदर है, स्त्री हो तो सोमसुंदरी।
चंद्रमा सोमराज हैं व उनका लोक सोमराज्य। चंद्रवंश ही सोमवंश है और स्वयं लीलाधर श्रीकृष्ण ने चंद्रवंश में जन्म लेकर उसे कृतार्थ किया। श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम सोमक है। एक अन्य सोमक ऋषि थे और सोमा एक अप्सरा थी। साेमाधार एक पितर हैं। सहदेव का एक पुत्र सोमापि है। चंद्रमा की माता सोमावती हैं। चंद्रमौलि शिव ने अर्द्धचंद्र को मस्तक पर धारण किया था, इससे शिव सोमार्द्धहारी हैं।
भले ही चंद्रमा कलाधर है और उसके रूप पर भी ग्रहण है, तब भी सौंदर्य की उपमाओं में चंद्रमा का जोड़ नहीं। किसी का रूप चंद्रमा के समान यानी सोमवत् हो, कांतिमान हो तो उसे सोमकांत, सोमप्रभ कह सकते हैं। चंद्रमा जैसा कांतिमान सोमाभ है। यह विशेषण स्त्रीलिंग में सोमाभा कहाता है। कोमल, स्निग्ध, चिकना साेमाल कहलाने का अधिकारी है। सोमाश्रम एक प्राचीन तीर्थ है जो आज के उत्तराखंड में है।
वहीं सोम और चंद्रमा एक-दूसरे के पर्याय हैं। इसी से सोमवार को चंद्रवार भी कहते हैं। यदि इस दिन अमावस पड़ जाए तो वह सोमवती अमावस कहाती है। अष्टमी हो तो सोमाष्टमी। अमावस्या को सोमक्षय भी कहते हैं। चंद्रमा की धवल किरण को सोमकर कह सकते हैं। चंद्रमा के पक्ष को सोमवीथी तथा अंश को सोमांशक।
सोम पौराणिक ग्रंथों में कई अवसरों पर उपस्थिति दर्ज करवाता है। महाभारत में वर्णित अष्टवसुओं में से एक सोम हैं। धृतराष्ट्र के शत पुत्रों में एक साेमकीर्ति भी था। इक्कीसवें कल्प का नाम सोमकल्प है। महाभारत ही में सोमगिरि पर्वत का वर्णन है। एक नागासुर का नाम सोमदर्शन था। जो सोम को अपना देवता मानता हो उसे सोमदेवत्य पुकारा गया है। इंद्र सोमपति कहाते हैं। बुध ग्रह को सोमपुत्र, सोमसुत की संज्ञाएं प्राप्त हैं। सोमसुता, सोमभवा, सोमोद्भवा नर्मदा माई हैं। पुण्यदायिनी गोदावरी सोमलता हैं। आकाशचारी होने पर सूर्य व बुध को साेमबंधु भी कहा गया है। स्वयं आकाश का एक नाम सोमधारा है। सत्ताईस दिन के एक व्रत को सोमायन कहते हैं। श्रीहरि सोमसिंधु हैं, सोमगर्भ हैं। सोम अमृत है, वायु है, जल है, स्वर्ग है, आकाश है, एक पर्वत है, एक दिव्यौषधि है, एक राग है और एक रोग भी।
बहरहाल, सोम शब्द की यह छोटी-सी साेमकथा यहीं विराम पाती है।
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