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2020 में टेक्नोलॉजी ने नए किस्म का आशावाद पैदा किया है। कोविड-19 की वैक्सीनों के निर्माण की गति ने वैज्ञानकों को घर-घर में लोकप्रिय बनाया है। प्रमुख इनोवेशन, टेक्नोलॉजी निवेश में बढ़ोतरी और महामारी के दौरान डिजिटल टेक्नोलॉजी को अपनाने से तरक्की के नए युग ने दस्तक दी है। कई अर्थशास्त्री 2010 के दशक में इनोवेशन को लेकर निराश थे तो अब बहुत लोग 2020 के दशक के बेहद सफल होने की भविष्यवाणी करते हैं।
पूंजीवाद के इतिहास में तेज तकनीकी प्रगति सामान्य हैै। 18 वीं सदी में औद्योगिक क्रांति हुई और मशीनी कारखाने लगे। 19 वीं सदी में रेलवे और बिजली, 20 वीं सदी में कार, प्लेन, आधुनिक दवाइयां और महिलाओं के लिए सुविधाजनक वाशिंग मशीनों जैसे आविष्कार हुए। हालांकि, 1970 में तरक्की थोड़ी धीमी रही। 1990 में पर्सनल कंप्यूटर आने के बाद कामकाज आसान हुआ। 2000 के बाद तरक्की ने फिर तेजी पकड़ी थी। इससे बेहतर स्थिति बनने के संकेत तीन कारणों से मिलते हैं। अभी हाल में कोरोना वायरस वैक्सीनों के निर्माण में मैसेंजर आरएनए टेक्निक की सफलता और एंटीबॉडी इलाज ने मेडिसिन के क्षेत्र में साइंस की महत्वपूर्ण भूमिका को सामने रखा हैै। कई मामलों में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने प्रभावशाली प्रगति की है। अल्फाबेट के डीपमाइंड द्वारा निर्मित एक प्रोग्राम ने प्रोटीन के आकार बता दिए हैं।
ओपन एआई ने भाषा समझने वाला प्रोग्राम जीपीटी-3 बनाया है। अक्टूबर माह से अमेरिका के फीनिक्स, एरिजोना में ड्राइवर विहीन टैक्सियां चल रही हैं। सरकारों ने बड़े पैमाने पर ग्रीन एनर्जी में निवेश किया है। दूसरा कारण टेक्नोलॉजी में बढ़ता निवेश है। 2020 की दूसरी और तीसरी तिमाही में अमेरिका के प्राइवेट सेक्टर ने दस साल में पहली बार बिल्डिंग या औद्योगिक साज-सामान की तुलना में कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर और रिसर्च पर अधिक खर्च किया है। निवेशक अब मेडिकल डायग्नोस्टिक्स, लॉजिस्टिक्स, बायोटेक्नोलॉजी और सेमी कंडक्टरों में ज्यादा पैसा लगा रहे हैं। तीसरा कारण नई टेक्नोलॉजी को तेजी से अपनाने पर जुड़ा है। महामारी ने डिजिटल पेमेंट, टेलीमेडिसिन और इंडस्ट्रियल आटोमेशन का बढ़ावा दिया है। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई और अमेरिका, चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता की वजह से कई साहसिक कदम उठाए जाएंगे।
अमीर देशों ने रिसर्च पर खर्च 3 फीसदी बढ़ाया
इस समय अमीर देशों की सरकारें रिसर्च पर अपने जीडीपी का 0.5% खर्च करती हैं। इसमें थोड़ी बढ़ोतरी से बहुत अधिक फायदे हो सकते हैं। 2018 में अमीर देशों के संगठन ओईसीडी के 24 देशों का रिसर्च खर्च 3% बढ़ा। 2020 में फ्रांस सरकार ने अगले दस साल में रिसर्च का बजट 30% बढ़ाने का वादा किया है। जापान सरकार ने भी बजट बढ़ाया है।
चीन के भय ने पश्चिमी देशों को प्रेरित किया
तरक्की के अलावा चीन के भय ने पश्चिमी देशों को मुस्तैद किया है। 2019 में साइंटिफिक पत्रिका एल्सेवियर और बिजनेस पत्रिका निक्केई में प्रकाशित स्टडी के अनुसार चीन ने उच्च स्तरीय रिसर्च के तीस में से 23 क्षेत्रों में अमेरिका से अधिक रिसर्च पेपर प्रकाशित किए हैं। कुछ विशेषज्ञ नए इनोवेशन से बने तरक्की के उत्साह पर पानी फेरते लगते हैं। नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के रॉबर्ट गोर्डन की 2016 में प्रकाशित किताब में कहा गया है कि 1870 से 1970 की सदी अमेरिकी उत्पादकता में बढ़ोतरी के लिए असाधारण रही है। ऐसा तकनीकी बदलाव से संभव हो सका है। लेकिन, एेसा बदलाव फिर नहीं होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अब कंपनियों द्वारा साइंस पर खर्च में गिरावट आ रही है। बड़ी कंपनियां स्वयं रिसर्च करने की बजाय विश्वविद्यालयों पर निर्भर होती जा रही हैं।
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