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लोकतंत्र में लोगों को निर्वाचित सरकार के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह के लिए भड़काने से अधिक गंभीर कोई अन्य अपराध नहीं है। अमेरिकी संसद के एक सदन-प्रतिनिधि सदन ने 13 जनवरी को पारित महाभियोग के प्रस्ताव में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर यह आरोप लगाया है। उन्होंने, सबसे पहले चुनावी हार को खारिज करते हुए सत्ता से चिपके रहने का प्रयास किया। एक माह तक महाझूठ फैलाया कि चुनाव में धांधली हुई है। जब वे अधिकारियों को चुनाव नतीजा बदलने के लिए मजबूर नहीं कर सके तो उन्होंने हिंसक भीड़ से संसद भवन-केपिटल बिल्डिंग पर हमला करवा दिया। सुप्रीम कोर्ट के अनुदारवादी जज ट्रम्प को दोषी ठहराए जाने से बचा सकते हैं। वे सीनेट मेंं महाभियोग की कार्यवाही रोक सकते हैं। लगभग 80 प्रतिशत वोटर संसद पर हमले के मामले में ट्रम्प के साथ नहीं हैं।
संसद की रक्षा की उचित जगह संविधान का स्थान यानी संसद है। लिहाजा, कांग्रेस ने ट्रम्प पर महाभियोग के पक्ष में वोट देकर सही किया है। सीनेट को उन्हें दंड देने के लिए जल्दी कदम उठाना चाहिए। प्रक्रिया नियमों के अनुसार निश्चित है कि महाभियोग ट्रम्प के पद से हटने के बाद चलेगा। अगर ऐसा होता है तो दो अड़चनें आ सकती हैं-दोषी ठहराने के लिए सीनेट में दो तिहाई बहुमत और संवैधानिक प्रावधान। संवैधानिक बाधा अनुदारवादी न्यायाधीशों की तरफ से आई है। उनकी दलील है, पद से हटने के बाद किसी राष्ट्रपति पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। वैसे, उलिसिस ग्रांट के युद्ध मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप में कार्यवाही उनके इस्तीफा देने के बाद चलती रही। लेकिन, किसी भी राष्ट्रपति पर कार्यकाल समाप्त होने के बाद महाभियोग नहीं चला है। फिर भी, संविधान निर्माताओं का इरादा नहीं रहा होगा कि राष्ट्रपति पर उनके कार्यकाल के बाद मुुकदमा ना चलाया जाए।
ट्रम्प समर्थक अनुदारवादियों के बहुमत वाले सुप्रीम कोर्ट को इस सवाल का जवाब देना पड़ेगा। कोर्ट यदि सीनेट की कार्यवाही रोक देती है तो कांग्रेस 14 वें संविधान संशोधन के तहत हथियार बंद बगावत या विद्रोह करने के लिए ट्रम्प की भर्त्सना करने या पद से हटाने जैसे कदम उठा सकती है। सीनेट को ट्रम्प के खिलाफ फौरन कदम उठाना पड़ेगा। सीनेट में ट्रम्प के खिलाफ 17 रिपब्लिकन सांसदों का समर्थन हासिल करना मुश्किल हो सकता है। कई रिपब्लिकन सीनेटर राष्ट्रपति और उनके संवैधानिक हंगामे से नफरत करते हैं। वहींं कई सीनेटरों को ट्रम्प समर्थकों ने हिंसा की धमकी दी है। ताजा सर्वेक्षणों के अनुसार ट्रम्प के छह में से केवल एक वोटर अब केपिटल बिल्डिंग पर हमले का समर्थन करते हैं। फिर भी, कई लोग मानते हैं कि चुनाव में धांधली हुई है।
सोशल मीडिया कंपनियों की कार्रवाई के पीछे स्वार्थ भी
पिछले सप्ताह तक ट्रम्प को केपिटल बिल्डिंग पर हमले के लिए केवल सोशल मीडिया कंपनियों ने जवाबदेह माना था। इन कंपनियों ने उन पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। अच्छा होता यदि टि्वटर और फेसबुक पाबंदी लगाने की बजाय राष्ट्रपति के व्यक्तिगत ट्वीट और पोस्ट पर फोकस करते। टेक कंपनियों ने ट्रम्प को पहले ब्लॉक नहींं किया था। कंपनियां अपने स्वार्थ से प्रेरित नजर आती हैं। उन पर आरोप लग सकता है कि उन्हें नए राष्ट्रपति जो बाइडेन को खुश करने का मौका मिल गया या वे अपने तरक्कीपसंद स्टाफ के बीच ट्रम्प के खिलाफ बगावत की भावनाओं को शांत करने की इच्छा रखते थे।
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