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जब ‘पद्मश्री’ के लिए श्रीधर वेंबू का नाम घोषित हुआ तो सॉफ्टवेअर डेवलपमेंट फर्म ‘जोहो’ के इस सीईओ को खास अच्छा नहीं लगा। उन्होंने माना है कि जीवन में उन्हें खूब रिवॉर्ड मिले हैं, ‘पद्मश्री’ तो उन्हें मिलना चाहिए जो स्वार्थहीन होकर काम कर रहे हैं, जैसे सामाजिक कार्यकर्ता वगैरह।
श्रीधर मानते हैं कि वो शुद्ध रूप से व्यापारी हैं और देश के लिए काम करना अब शुरू ही कर रहे हैं। इसी सोच से जब उन्होंने देखा कि गांव के बच्चे महामारी की वजह से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, तो खुद ही उन्हें पढ़ाना शुरू किया। शुरुआत में तमिलनाडु के तेंकासी के आठ-दस बच्चे उनसे पढ़ते थे। श्रीधर के इस स्कूल में बच्चों को होमवर्क नहीं मिलता, लेकिन नए तरीकों से सीखने को काफी मिल रहा है। श्रीधर, पढ़ाई की अहमियत अच्छे से जानते हैं क्योंकि इसी के दम पर उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। वे दसवीं तक सरकारी स्कूल में पढ़े, फिर आईआईटी मद्रास में प्रवेश लिया। इसके बाद 1989 में प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री भी हासिल की।
दरअसल प्रिंसटन के दिनों में उन्होंने इकोनॉमिक्स और पॉलिटिकल साइंस को खूब पढ़ा। जापान, सिंगापुर, ताइवान जैसे बाजारों को उन्होंने गहराई से जाना, तभी वे यहां आगे चलकर व्यापार कर पाए। इसी क्रम में भारतीय बाजार में फैले समाजवाद के प्रभाव को भी उन्होंने जाना और इसके लिए कुछ करने की ठानी। उनके भारत लौटने की एक वजह यह भी थी।1996 में चेन्नई के बाहरी इलाके के एक छोटे-से अपार्टमेंट से उन्होंने नेटवर्क मैनेजमेंट सॉफ्टवेअर जानकार टोनी थॉमस के साथ ‘वेंबू सॉफ्टवेअर’ की शुरुआत की, इसी ने आगे चलकर ‘जोहो’ का रूप लिया। यह काम पहले दिन से चल निकला।
टोनी इस कंपनी के सीईओ और चेअरमैन थे, श्रीधर के जिम्मे टेक्नोलॉजी की मार्केटिंग और प्रमोटिंग थी। इनका पहला क्लाइंट ‘सिस्को’ था। साल 2000 आते-आते इनके पास 115 इंजीनियर्स भारत में काम कर रहे थे और 7 अमेरिका में। बिजनेस पहुंच गया था 10 मिलियन डॉलर तक। 2001 की मंदी ने इन्हें भी गहरा झटका दिया। 2002 में इनके 150 क्लाइंट की लिस्ट केवल तीन तक सिमट गई थी। यही वक्त था जब श्रीधर ने सीईओ की जिम्मेदारी ली। श्रीधर जान चुके थे कि कंपनियों पर इस तरह की निर्भरता रही तो काम आता-जाता रहेगा। इसका इलाज उन्होंने ‘मैनेज इंजन’ में ढूंढा, यह जोहो का आईटी मैनेजमेंट सॉफ्टवेअर डिविजन है। इसके तहत उन्होंने कंपनियों की मदद के लिए सेल्स-मार्केटिंग, एचआर-फाइनेंस, ई-मेल और आईटी हेल्पडेस्क से जुड़े प्रॉडक्ट पेश किए। इन प्रॉडक्ट्स का मुकाबला सीधे एचपी ओपनव्यू और माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस से था। इस तरह कंपनी मध्यम स्तर के बाजार पर भी मौजूदगी दर्ज करवा पाई।
2009 में कंपनी का नाम ‘जोहो कॉर्पोरेशन’ हुआ। फिलहाल श्रीधर की कंपनी के 6 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं और क्लाइंट लिस्ट में लिवाइस, अमेजन, फिलिप्स, ओला, शाओमी और जोमेटो जैसे कई नाम हैं। अब श्रीधर, भारत में वॉट्सएप को टक्कर देने के लिए मैसेजिंग एप ला रहे हैं जिसका नाम ‘अराट्टई’ है, जिसका मतलब तमिल में बातचीत होता है। तमिलनाडू का सुदूर गांव ही उनका ठिकाना है, जहां से वो वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं।
श्रीधर का उद्देश्य अपने 9300 कर्मचारियों को उनके गांव से जोड़े रखना है, 500 तो ऐसे ही एक दफ्तर में काम कर रहे हैं। वो नहीं चाहते कि गांवों से पलायन हो। श्रीधर का दिन सुबह चार बजे शुरू होता है जब वो अपने अमेरिका स्थित ऑफिस कॉल करते हैं। छह बजे घूमने निकल जाते हैं और कभी-कभी तैर भी लेते हैं। हर ट्रेंड को श्रीधर ने पहले जाना। लॉकडाउन घोषित होता उससे हफ्तों पहले श्रीधर के ऑफिस बंद हो चुके थे वो चाहते थे कि हर कर्मचारी बिना आपा-धापी घर पहुंच जाए।
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