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तुलना, अफ़सोस और मलाल किसकी ज़िंदगी में नहीं हैं। लेकिन असल अफ़सोस की बात यह है कि बहुत-से लोग बस अपनी कमियों को लेकर अफ़सोस करते रह जाते हैं और जीवन की नेमतों को देख ही नहीं पाते।फ़िल्म अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन ख़ूबसूरती का पैमाना मानी जाती हैं। हर दृष्टि से वे बेजोड़ हैं। उन्होंने भी एक साक्षात्कार में कहा था कि उनके चेहरे के दाएं और बाएं हिस्से की बनावट में अंतर है। हो सकता है कि उन्होंने ऐसा मज़ाक में कहा हो, लेकिन सोचिए, ऐश्वर्या जैसी रूपसी भी अगर अपने सौंदर्य को परिपूर्ण नहीं मानतीं, तो आम लोगों की क्या स्थिति होगी।
दुनिया में जितने लोग हैं, शायद उससे ज़्यादा अफ़सोस हैं। मैं उतनी गोरी नहीं, मेरा क़द उतना नहीं है, मेरी शिक्षा उतनी नहीं है, मुझमें उतना आत्मविश्वास नहीं है, मुझे उतनी आज़ादी नहीं है, मेरा अनुभव उतना नहीं है, मेरे पास उतने अवसर नहीं हैं, मेरी आवाज़ उतनी अच्छी नहीं है, मेरा जीवनसाथी उतना सहयोगी नहीं है, मेरे बच्चे उतने प्रतिभाशाली नहीं हैं, मेरा वेतन उतनी नहीं... (दूसरों की तुलना में), इस तरह के असंख्य अफ़सोस हो सकते हैं। मुमकिन है, आपके पास भी कुछ हों।
स्वाभाविक है कि इंसान होने के नाते हम इस भावना से पूरी तरह मुक्त नहीं हो सकते, परंतु इसकी तीव्रता को न्यूनतम अवश्य रख सकते हैं। जीवन में किसी बात को लेकर अफ़सोस जितना गहरा होता है, जीवन को लेकर असंतुष्टि का भाव उतना ही गहराता जाता है। यही वजह है कि जब अच्छे-ख़ासे सफल और साधनसंपन्न लोग कभी ग़लत क़दम उठा लेते हैं, तो बाक़ियों को आश्चर्य होता है कि अरे! इतनी नेमतों के बावजूद उसने ऐसा क्यों किया! बहरहाल, यह सच है कि किसी अफ़सोस या कसक के चलते चरम क़दम कम ही लोग उठाते हैं, परंतु यह भी सच है कि इस भीतरी मानसिक ग्रंथि की वजह से बहुत-से लोग ज़िंदगी में कुछ नहीं कर पाते और कुंठा व हताशा में डूबे रह जाते हैं या अपनी ख़ुशियों को ख़ुद बर्बाद कर लेते हैं। दरअसल, उतना-उतनी की यह मानसिकता हमें आगे बढ़कर कुछ करने से रोकती है और तमाम योग्यताओं के बावजूद हम पीछे रह जाते हैं यानी जीवन में एक अफ़सोस बढ़ जाता है।
यदि आपको भी अपने रंग-रूप, धन- दौलत, परिवार-रिश्ते, शिक्षा-कॅरियर, स्वास्थ्य-फिटनेस, लोकप्रियता-सफलता आदि किसी भी मामले में ‘उतना नहीं है’ के ख़्याल आते हों, तो पहले यह जान-समझ लीजिए-
आपके जैसे आठ अरब लोग हैं
दुनिया में ऐसा कोई नहीं होगा, जिसे अपने से जुड़ी किसी बात का अफ़सोस न हो। फ़िल्म उद्योग में ही दसियों उदाहरण हैं, जब अभिनेत्रियों ने कामयाब होने के बाद भी अपनी नाक, होंठ आदि में बदलाव करवाए हैं। सोना यदि कह सकता, तो शायद वह भी ख़ुद में ख़ुशबू न होने का मलाल करता। मतलब यह कि यदि आपको इस तरह का कोई मलाल हो या किसी मामले में आप स्वयं को कमतर समझती हों, तो यह बहुत सामान्य बात है। इस मामले में दुनिया के आठ अरब लोग आपकी तरह हैं। सबको कोई कमी महसूस होती ही है। अंतर इस बात से पड़ता है कि उस तथाकथित कमी को लेकर आप क्या करती हैं।
फिर भी आप सबसे अलहदा हैं
ख़ुद के अंदर झांकना और अपनी कमियों को जानना अच्छी बात है। लेकिन समझदार लोग यह काम स्वयं को बेहतर बनाने के लिए करते हैं। वे अपनी कमियों और कमज़ोरियों को लेकर अफ़सोस नहीं करते रहते। जिन कमियों को दूर किया जा सकता है, वे उन्हें हटाने की ईमानदारी से कोशिश करते हैं और जिन्हें दूर नहीं किया जा सकता उन्हें सहज भाव से स्वीकार कर लेते हैं। इसके साथ ही वे अपनी नेमतों पर फोकस करते हैं। कहा जाता है कि ईश्वर किसी के साथ अन्याय नहीं करता। वह हर किसी को कोई न कोई विशेष प्रतिभा/प्रतिभाएं देता ही है। ज़रूरत केवल उसे पहचानने और निखारने की होती है। इसका फ़ायदा यह भी होता है कि जब जीवन के किसी पक्ष में जगमगाहट होती है, तो उसके प्रभाव से कुछ अंधेरे पक्ष भी रोशन हो जाते हैं। इस सरल-सी बात के बावजूद हमारा व्यवहार होता उल्टा है। हम अपनी कथित कमज़ोरियों को ही खोजते रह जाते हैं और हमारी ख़ूबियां ऐसे ही रह जाती हैं।
आपको सबकुछ नहीं मिलेगा
इस सच को जान लीजिए कि ईश्वर को छोड़कर कोई भी परिपूर्ण नहीं है। हर कोई बहुत सारे मामलों में औरों से कमतर है। ज़ाहिर है, आप एक साथ सुंदर, फैशनेबल, अक़्लमंद, मज़ाकिया, गम्भीर आदि नहीं हो सकतीं। न ही आपको चेहरे की सुंदरता के साथ अच्छी आवाज़, रंग, क़द, बाल, फिगर और चाल का वरदान मिल सकता है। इसलिए अपनी नेमतों को देखें और उनमें ख़ुश रहें। और हां, केवल सुंदरता नहीं, हर मामले में ऐसा करें।
सोच बदलें तो सब बदल जाएगा
अगर आप पूरे समय नाकामियों और ग़लतियों के बीच झूलती रहेंगी, तो योग्यताएं और विशेषताएं धरी रह जाएंगी। यदि आप अपनी कमियां ही खोजती रहेंगी, तो ख़ूबियां प्रत्यक्ष होने के बावजूद नज़र नहीं आएंगी। इसलिए, कोई व्यक्ति कितना ख़ुश और सफल होगा, यह उसके सोचने के तरीक़े पर निर्भर करता है। और हां, ख़ुशी वर्तमान में होती है। भविष्य में ख़ुशियों की कल्पना करना वास्तव में अपने वर्तमान पर अफ़सोस करना ही होता है।
‘मैं कड़ी मेहनत करके वज़न कम करूंगी और वह दिन मेरे लिए बहुत ख़ुशी का दिन होगा’ – यह कहने का मतलब है कि अभी मेरा वज़न अधिक है इसलिए मैं ख़ुश नहीं हूं। जब मेरा वज़न कम हो जाएगा, तब मैं ख़ुश होऊंगी और तभी ख़ुद को पसंद करूंगी। इस नज़रिए को ज़रा-सा बदलेंगी, तो सोच पर बड़ा सकारात्मक बदलाव दिखेगा। अपने वर्तमान को स्वीकार करते हुए भविष्य की ओर बढ़ें। अपने वर्तमान स्वरूप में सहज रहें, फिर भले ही आप उसे बदलने की कोशिश क्यों न कर रही हों।
दुनिया आपको बाद में स्वीकार या पसंद करेगी, पहले ख़ुद को पसंद करें और अपनी ख़ूबियों, गुणों और उपलब्धियों पर गर्व करें।
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