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शीत की तेज़ी में कुछ कमी आने का संकेत लेकर आती है मकर संक्रांति। अब तक जो गरिष्ठ भोजन खाकर, आराम से पचाते रहे हैं, उसमें बदलाव का भी इशारा खिचड़ी के सेवन के रूप में दिखता है। सूर्य उत्तरायण होते हैं, इसके भी मायने पर्व परम्परा में निहित हैं।
सूर्य अन्नदाता हैं...
सूर्य को स्वास्थ्य एवं धनप्रदाता के साथ अन्नदाता भी कहा गया है। सारे खाद्यान्न की उपज में इसका तेज समाया है। अन्न में जो ओज है, जो शक्ति है, वो सूर्य की ऊष्मा के कारण ही है। सूर्य विश्वात्म देवता हैं जो प्रत्यक्ष ज्योतिर्मय हैं। समस्त धर्म इनकी किसी न किसी रूप में आराधना करते हैं। ख़ास अवसरों पर इनकी नियमित पूजा का विधान है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को सात घोड़ों पर सवार प्रातः काल रोज़गार बढ़ाने वाले, दोपहर में भोजन देने वाले और सायंकाल के बाद विश्राम देने वाले कहा गया है। सनातन संस्कृति में सूर्य की आराधना की जाती है। वारों में रविवार, तिथियों में भानु सप्तमी और सूर्य षष्ठी वर्ष में मकर संक्रांति पर विशेष पूजन और दान किया जाता है। मकर संक्रांति पर सूर्य की आराधना से पांडु रोग का विनाश, कांति, आयु बल में वृद्धि, नेत्र रोग और चर्म रोग में लाभ मिलता है, साथ ही इस तिथि पर दान करने से सब तरह के लाभों की प्राप्ति होती है।
पर्व का खगोलीय महत्व...
सामान्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क और मकर राशि में सूर्य का प्रवेश धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता है। सूर्य का यह संक्रमण छह-छह माह में होता है, इसे उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं। भारत देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध पर होता है अर्थात् भारत से दूर, इसी कारण यहां रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम रहता है। किंतु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरार्ध में आते हैं और रातें छोटी व दिन बड़े होने लगते हैं। गर्मी का मौसम प्रारम्भ हो जाता है। आज से सूर्य की यात्रा अंधकार से प्रकाश की ओर प्रारंभ हो जाती है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों में चेतना बलवती होती है, इसीलिए त्राटक, शक्ति पूजा और कुंडलिनी जागरण की दीक्षा और सूर्य पूजन और दान का विशेष महत्व है।
पुण्य लाभ की विधि...
सूर्य के उत्तरायण होने के पर्व का आरम्भ सूर्योदय से पूर्व किए जाने का विधान है। पर्व परम्परा के निर्देश इस प्रकार हैं- सूर्योदय से पूर्व तिल, बेसन और आटे से बना उबटन लगाकर स्नान करें। श्वेत या हल्के रंग के साफ़ वस्त्र पहने, कलश में जल, लाल चंदन, फूल, अक्षत डालकर भगवान सूर्य की ओर पूर्व दिशा में मुंह करें और 'ॐ घृणि सूर्याय नमः' उच्चारते हुए सूर्य को अर्घ्य दें। तत्पश्चात तिल-गुड़ के लड्डू, खिचड़ी की सामग्री और संक्रांति निमित्त उपयोगी वस्तुओं का दान करें, घर के बुज़ुर्गों का आशीर्वाद लें। पहले खिचड़ी का सेवन करें, फिर गुड़, तिल और अन्य भोजन ग्रहण करें। आज अधिक से अधिक धूप में रहना अच्छा होता है, इसीलिए पतंग उड़ाने का महत्व भी है।
पर्व के अन्य रुप..
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