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यदि सूक्ष्म अंतर वाले दो हिंदी शब्द दिए जाएं, तो काफ़ी संभावना है कि अधिकांश लोग उनका एक उर्दू समानार्थी ही बता पाएंगे। अधिक स्पष्ट करने के लिए, चलिए, आरंभ करते हैं। हानि, क्षति? नुक़सान। दया, कृपा? मेहरबानी। अमूल्य, बहुमूल्य? बेशक़ीमती। प्रयोग, उपयोग? इस्तेमाल। उदाहरण, दृष्टांत? मिसाल। पुरस्कार, पारितोषिक? इनाम। पंक्ति और भी लंबी हो सकती है। हानि यानी कोई चीज़ हाथ से निकल गई। जैसे- धनहानि। क्षति यानी किसी चीज़ के एकाधिक हिस्से पर पड़ा नकारात्मक प्रभाव। उसका टूट जाना, नष्ट हो जाना, व्यर्थ हो जाना। शब्दकोश में नुक़सान के अर्थ हानि और क्षति, दोनों मिलेंगे। इसी तरह, उदाहरण समझाने के लिए दिया जाता है, जबकि दृष्टांत प्रमाणित करने के लिए कि देखो, इसी श्रेणी की अन्य बात पहले से ही प्रमाणित है। मिसाल का प्रयोग दोनों के लिए होता है। ऐसे ही, अमूल्य वह है जिसे किसी क़ीमत पर ख़रीदा न जा सके, जिसका कोई मूल्य नहीं हो सकता। बहुमूल्य का अर्थ है अधिक क़ीमत वाला। अक्सर बेशक़ीमती को दोनों की जगह प्रयुक्त कर लिया जाता है। पुरस्कार सेवा, काम या योग्यता दिखाए जाने पर ख़ुश होकर दिया जाता है। पारितोषिक की घोषणा पहले से की गई होती है, यह प्रतियोगिता में जीतने पर मिलता है। इसी प्रकार आप दया और कृपा, प्रयोग और उपयोग के बीच का अंतर भी ज्ञात कर सकते हैं। इनके लिए क्रमश: मेहरबानी और इस्तेमाल शब्द दिमाग़ में आते हैं। बहरहाल, यहां भाषाओं की क्षमता की तुलना नहीं हो रही है। निश्चित ही उर्दू सहित विश्व की सभी विकसित भाषाओं का विशाल शब्द भंडार है। यहां सवाल है कि दो के लिए एक ही शब्द ध्यान में क्यों आता है? क्योंकि उर्दू शब्द आपने फिल्मों में सुने हैं, जबकि हिंदी शब्दों को पढ़ा भी है। उर्दू साहित्य पढ़ेंगे, तो शायद उसकी बारीकियों से भी परिचित हो जाएंगे। फिल्मों से आप सिर्फ़ कामचलाऊ भाषा सीखते हैं, पढ़ने से सटीक शब्द और अभिव्यक्तियां जानते हैं, आपकी भाषा परिष्कृति और समृद्ध होती है। इसलिए पढ़ना आवश्यक है। लिखने वालों के लिए तो अति-आवश्यक!
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