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इतिहास में गुलाबी रंग लड़कों के लिए जाना जाता था। दरअसल, 19वीं सदी से पहले गुलाबी रंग युद्ध और शौर्य का प्रतीक रहा। पुराने रोमन साम्राज्य में अफसरों के हेल्मेट और कपड़े गुलाबी रंग के होते थे। 1794 में आई किताब ‘ए जर्नी राउंड माय रूम’ में लिखा है कि पुरुषों के कमरे में गुलाबी रंग की पेंटिंग और वस्तुएं होनी चाहिए क्योंकि इससे उत्साह बढ़ता है। प्रथम विश्व युद्ध के समय कई नए रोज़गार बने उन्हें रंगों के आधार पर विभाजित किया गया जैसे पढ़े-लिखे समाज के लिए वाइट कॉलर, मज़दूरों के लिए ब्लू कॉलर।
पर टायपिस्ट, सेक्रेटरी, वेटर और नर्स जैसी नौकरियां इन दोनों कॉलर के तहत नहीं आती थीं, इसलिए इन्हें पिक कॉलर जॉब कहा गया। इस जॉब में तरक्की एक सीमा तक ही हो सकती थी, इसलिए ये महिला प्रधान मानी गईं। इसके बाद गुलाबी रंग से पुरुषों ने दूरी बनाना शुरु कर दिया।
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