अमेरिका में बड़ी कंपनियां अपने ग्राहकों को महंगे और फैन्सी प्रोडक्ट की ओर आकर्षित कर रही हैं। कई कंपनियां अधिक आमदनी वाले कस्टमरों के लिए ज्यादा प्रोडक्ट पेश कर रही हैं। कॉरपोरेट दुनिया के नए पसंदीदा शब्द प्रीमियमिजेशन से यह और भी स्पष्ट होता है। इस साल महंगाई और कंज्यूमर खर्च कम होने की संभावना है। लिहाजा, कंपनियों के लिए अकारण प्रोडक्ट और सेवाओं के मूल्य अधिक रखना मुश्किल हो जाएगा। अपने प्रोडक्ट को खास और बेहतर क्वालिटी का बताने वाले ट्रेंड प्रीमियमिजेशन से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आए विभाजन की झलक मिलती है। सबसे अधिक कमाने वाले टॉप 40 प्रतिशत लोगों के पास 80 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा अतिरिक्त बचत है। यह महामारी के शुरुआती दिनों में जमा हुआ है। दूसरी ओर कम आय वाले लोगों की बचत भोजन, किराए और अन्य जरूरी चीजों पर खर्च हो गई है। कुछ कंपनियों का फोकस अमीरों पर बहुत ज्यादा है।
क्रेडिट कार्ड कंपनी अमेरिकन एक्सप्रेस के प्रमुख स्टीफन स्क्वेरी ने बताया कि कंपनी किस तरह अधिक आय वाले लोगों पर ध्यान दे रही है। इस समय प्रीमियम कस्टमर ज्यादा खर्च कर रहे हैं। कार और वाहन बनाने वाली कंपनियां भी पहले के मुकाबले अब अधिक कीमत के मॉडल बाजार में उतार रही हैं। अन्य कंपनियां भी डिस्काउंट की बजाय प्रीमियम ऑफरिंग पर जोर दे रही हैं। सवाल है कंपनियां एेसा क्यों कर रही हैं। अर्थव्यवस्था में उतार के संकेतों के बीच कंपनियां ज्यादा कीमतों को वाजिब बताने और भारी मुनाफा कमाने के लिए अंतिम कोशिश कर रही हैं।
वैसे, प्रोडक्ट को प्रीमियम की चमक देने से कारोबार अच्छा होने की गारंटी नहीं मिलती है। थीम पार्क कंपनी सिक्स फ्लेग्स ने डिस्काउंट सीमित किए और मूल्य बढ़ाए थे। लेकिन उसके पार्कों में लोगों की संख्या कम हो गई और आय में भी गिरावट आई है। वाल्ट डिज्नी कंपनी को भी अपने थीम पार्कों में मूल्य बढ़ाने पर ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा है।
जेसन कराइअन, जिएना स्मिआलेक
© The New York Times
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