अन्नू कपूर का खास कॉलम 'कुछ दिल ने कहा':के. आसिफ़ की प्रणय कथाएं और उसमें था एक ‘किस्मत का सितारा’!

अन्नू कपूर17 दिन पहले
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सितारा देवी और के. आसिफ़ ने साल 1944 में शादी कर ली थी। - Dainik Bhaskar
सितारा देवी और के. आसिफ़ ने साल 1944 में शादी कर ली थी।

सिर्फ़ दो कम्पलीट ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्में बनाने वाले के. आसिफ़ की शृंगार रस की प्रणय कथाएं अत्यंत रंगीन और रसभरी रही हैं।

के. आसिफ़ (करीम आसिफ़) की बहन सिकंदरा बेगम के शौहर अभिनेता-निर्देशक नज़ीर अहमद को जब ये मालूम चला कि उनका साला आसिफ़ करीम एक लड़की यास्मीन के इश्क़ में मजनूं होकर देवदास होने की हद से गुज़र रहा है तो उन्होंने अपनी बेगम की इल्तिजा पर साले साहेब को बम्बई बुलाकर अपनी फ़िल्म कंपनी ‘हिंद पिक्चर्स’ में काम पर रख लिया, जिसकी बुनियाद उन्होंने सितारा देवी के साथ मिलकर रखी थी और जिनके साथ नज़ीर अहमद ने पहली बार 1938 की फ़िल्म ‘बाग़बान’ में काम किया था।

और फिर आग और घी साथ रखने पर जो होता है, वो हो गया। नज़ीर अहमद ने सितारा देवी से इस्लाम क़ुबूल करवाकर निकाह पढ़वा लिया। के. आसिफ़ की बहन सिकंदरा बेगम भी पत्नी बनी रहीं। लेकिन आसिफ़ के बम्बई पहुंचने पर उनका झुकाव सितारा देवी की तरफ़ देख बहनोई नज़ीर अहमद ने आसिफ़ को फ़िल्म कंपनी से निकालकर टेलरिंग की दुकान खुलवा दी। बस ये जुदाई नौजवान आशिक़ बर्दाश्त नहीं कर सका और दर्ज़ी की दुकानदारी में बहुत बड़ा नुक़सान करके के. आसिफ़ को दर्ज़ी के काम से निजात पाकर वापस फ़िल्मों की तरफ़ लौटना पड़ा।

इधर नज़ीर और सितारा की मोहब्बत में ज़बरदस्त तल्ख़ियां भर गईं, जिसके कारण दोनों का तलाक़ हो गया तो बच गए दो नौजवान आशिक़ के. आसिफ़ और सितारा, डूबते को तिनके का सहारा। दोनों ने चुपचाप शादी कर ली। साल होगा 1944 और नज़ीर अहमद ने, सुना है, उचित-अनुचित भुलाकर हसद में भरकर आसिफ़ की पिटाई भी करवा डाली।

दिल्लगी ही दिल्लगी में दिल गया, और दिल लगाने का नतीजा मंज़िल गया।

'फूल' करीम आसिफ़ की निर्देशित पहली फ़िल्म थी, जिसमें उन्होंने अपना नाम बदलकर रख लिया ‘के. आसिफ़’।
'फूल' करीम आसिफ़ की निर्देशित पहली फ़िल्म थी, जिसमें उन्होंने अपना नाम बदलकर रख लिया ‘के. आसिफ़’।

सितारा देवी उस जमाने की स्टार थीं। एक फ़िल्म में काम करने के 35 हज़ार रुपए फ़ीस लेती थीं और आसिफ़ को फ़िल्म बनानी थी। सो एक पत्नी का फ़र्ज़ निभाते हुए उन्होंने अपने पति आसिफ़ की फ़िल्म ‘फूल' को फ़ाइनेंस कर दिया। ये करीम आसिफ़ की निर्देशित पहली फ़िल्म थी, जिसमें उन्होंने अपना नाम बदलकर रख लिया ‘के. आसिफ़’। ये फ़िल्म ‘फूल’ उस वक्त की बहुत बड़ी मल्टी स्टारर और बेहद कामयाब फ़िल्म रही। इस फ़िल्म की अपार सफलता के बाद के. आसिफ की पहचान बन गई और अगली फ़िल्म उन्होंने इम्तियाज़ अली ताज के नाटक ‘अनारकली’ पर नरगिस और सप्रु को लेकर शुरू कर दी। लेकिन अफ़सोस, कुछ रील बनने के बाद फाइनेंसर सिराज सेठ की मृत्यु के कारण फ़िल्म बंद करनी पड़ी। उसके बाद आसिफ़ ने एक फ़िल्म का निर्माण करने की ठानी। फ़िल्म थी ‘हलचल’ जिसके निर्देशक थे एस.के. ओझा। ये फ़िल्म थोड़ी-थोड़ी प्रसिद्ध इंग्लिश लेखिका एमिली ब्रोंटे के उपन्यास ‘Wuthering Heights’ पर आधारित थी। इस फ़िल्म के लिए पत्नी सितारा देवी ने अपने ज़ेवर बेचकर पति के. आसिफ़ की मदद की। फ़िल्म "हलचल' बहुत सफल रही और फिर मिल गए फाइनेंसर सेठ शापूरजी पालनजी जिनके पैसों से शुरू हुई ‘मुग़ल-ए-आज़म’ जिसके सितारे थे पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला, दुर्गा खोटे, अजित इत्यादि।

इस फ़िल्म में एक किरदार था, जिसका नाम था ‘बहार’ और इस रोल के लिए चुना गया खूबसूरत निगार सुलताना को। निगार के पति शेख़ मोहम्मद यूसुफ़ नहीं चाहते थे कि उनकी बीवी इस फ़िल्म में आसिफ़ के साथ काम करें। बस इस बात का बतंगड़ बन गया, कलह बन गई, झगड़ा बढ़ गया और इतना बढ़ा कि यूसुफ़ मियां और निगार में तलाक़ हो गया।

यूसुफ़ मियां 50 का दशक खतम होते-होते पाकिस्तान कूच कर गए, निगार तनहा रह गईं। निगार की तन्हाई महसूस कर आसिफ़ को उनसे हमदर्दी हो गई और यह हमदर्दी कब मोहब्बत में बदल गई, मालूम ही नहीं चल पाया।

‘मुग़ल-ए-आज़म’ आसिफ़ निर्देशित सर्वाधिक सुपर हिट फिल्म रही।
‘मुग़ल-ए-आज़म’ आसिफ़ निर्देशित सर्वाधिक सुपर हिट फिल्म रही।

लेकिन इश्क़ और मुश्क़ छुपाए नहीं छुपते। सो पत्नी सितारा देवी को जब इस इश्क़ का मालूम चला, तब उन्होंने जयपुर की जानिब कूच कर दिया जहां आसिफ़ ‘मुग़ल-ए-आज़म’ की शूटिंग कर रहे थे। जयपुर पहुंचकर पत्नी सितारा देवी ने आसिफ़ को सर-ए-आम रंगे हाथ पकड़ लिया। पकड़े जाने पर के. आसिफ़ ने बेबाक होकर कहा ‘पकड़ा तो गया हूं, मगर याद रखो तुम, तुम हो और वो, वो है।’ पत्नी सितारा देवी की कोई दलील, कोई दुहाई काम नहीं आई और दग़ाबाज़ पति से उनका रिश्ता ख़तम हो गया। जिस आसिफ़ की उन्होंने हर कदम दर कदम मदद की थी, उसी ने पत्नी को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका। सितारा से अलग होकर आसिफ़ ने निगार सुलताना से शादी कर ली, जिनसे उन्हें एक बेटी हिना कौसर हुई। कालांतर में सितारा देवी ने प्रताप बारोट से शादी कर ली। इधर मुग़ल-ए-आज़म के निर्माण के दौरान के. आसिफ़ का दिलीप कुमार के घर आना-जाना हो चला था और यहीं पर एक नज़र में के. आसिफ़ को भा गई दिलीप कुमार की लाड़ली बहन अख़्तर! निगार सुलताना से मोहभंग हो चुका था, सो सहारे की तलाश में मिल गई अख़्तर! तो के. आसिफ़ ने अख़्तर से शादी कर ली। अब ये शादी किन हालात में हो पाई, इसके बहुत क़िस्से हैं, जितने मुंह उतनी बातें। सबका बयान कर पाना तो मुमकिन नहीं होगा, लेकिन एक बात पक्की है कि मुग़ल-ए-आज़म के प्रीमियर में दिलीप कुमार की ग़ैर मौजूदगी ने बहुत कुछ बयान कर दिया। आसिफ़ ने मुग़ल-ए-आज़म की ज़बरदस्त कामयाबी के बाद एक नई फ़िल्म शुरू की ‘सस्ता ख़ून महंगा पानी’, लेकिन फ़िल्म बंद हो गई। फिर एक और फ़िल्म गुरुदत्त को लेकर शुरू की ‘लव एंड गॉड'। अफ़सोस कि ये फ़िल्म गुरुदत्त की मृत्यु के कारण बंद हो गई। दो ज़बरदस्त झटके लग गए थे। तब अचानक यूं ही अच्छे दिनों को याद करके सितारा ख़यालों में उभर आईं।

ऐसे में ही मुलाक़ात हो गई सितारा के भांजे गोपी कृष्ण से जिसने याद दिलाया कि आसिफ़ मियां, तुम्हारा लकी चार्म तो मेरी मौसी सितारा देवी थीं। उनसे ज़रूर मिलिए। हो सकता है अच्छा वक्त लौट आए। बात जंच गई और तय हुआ कि 10 मार्च 1971 को बरसों पहले बिछड़े क़िस्मत के चमकते सितारे से मुलाक़ात होगी, जिसका के. आसिफ़ को बेसब्री से इंतज़ार था। लेकिन नियति ने कुछ और लिख रखा था। 9 मार्च 1971 की शाम को लगभग 6 बजे के. आसिफ़ इस फ़ानी दुनिया से कूच कर गए। आसिफ़ ने अपने फ़िल्म कॅरिअर में केवल दो फ़िल्में पूरी तरह डायरेक्ट की थीं- ‘फूल’ और ‘मुग़ल-ए-आज़म’ तथा एक फ़िल्म ‘हलचल’ प्रोड्यूस की। ये तीनों प्रोजेक्ट बहुत सफल रहे और इन तीनों से सितारा देवी जुड़ी रहीं, के. आसिफ़ की लकी चार्म रहीं। आज दोनों कलाकार इस दुनिया में नहीं हैं। मेरा मक़सद बिना किसी लाग-लपेट या समीक्षा के कहानी कहना था। आज के लिए बस इतना ही। मेरे प्रणाम स्वीकार हों जय हिंद! वंदेमातरम!

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