रसरंग में 'मुसाफ़िर हूं यारो':दारमा वैली: दिलकश नजारों से भरा रोमांचक सफर

नीरज मुसाफ़िर17 दिन पहले
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तस्वीर : नीरज मुसाफ़िर - Dainik Bhaskar
तस्वीर : नीरज मुसाफ़िर

उत्तराखंड को चारधाम यात्रा के लिए ज्यादा जाना जाता है, लेकिन इसके दूसरे सिरे पर एक ऐसा क्षेत्र स्थित है, जो ऐतिहासिक व सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध है। यह क्षेत्र पिथौरागढ़ जिले में स्थित है और नेपाल व तिब्बत से लगा हुआ है। वैसे तो इस क्षेत्र में कई घाटियां हैं, लेकिन दारमा घाटी या दारमा वैली पर्यटन के मानचित्र पर अपना स्थान तेजी से बना रही है।

दिल्ली से करीब 500 किमी दूर है पिथौरागढ़ और इससे भी 100 किमी आगे है धारचूला। वैसे तो धारचूला हिमालय के पर्वतों में बहुत भीतर स्थित है और तिब्बत के काफी नजदीक भी है, लेकिन समुद्र तल से इसकी ऊंचाई महज 900 मीटर है, इसलिए यह गर्म स्थान है। गर्मियों में यहां पंखे व एसी की आवश्यकता पड़ती है। धारचूला काली नदी के किनारे बसा है। काली के दूसरी तरफ नेपाल है और वहां दार्चूला नामक कस्बा है। भारत व नेपाल दोनों को जोड़ने के लिए एक झूला पुल भी बना हुआ है।

धारचूला से ही कैलाश मानसरोवर व आदि कैलाश का रास्ता जाता है। परमिट आदि की औपचारिकताएं धारचूला में ही पूरी करनी होती हैं। कुछ समय पहले तक दारमा वैली जाने का भी परमिट लगता था, जो अब हटा लिया गया है। अब कोई भी पर्यटक बिना किसी रोक-टोक के दारमा वैली जा सकता है।

धारचूला से 18 किमी आगे तवाघाट है। यहां से एक रास्ता कैलाश मानसरोवर की ओर चला जाता है और एक रास्ता दारमा वैली में जाता है। तवाघाट में ही दारमा नदी व काली नदी का संगम है।

तवाघाट से 50 किमी दूर दुगतू नामक गांव स्थित है, जो दारमा घाटी का प्रमुख गांव है। इस गांव की ऊंचाई समुद्र तल से 3100 मीटर है, इसलिए गर्मियों में भी काफी ठंडा मौसम रहता है। सर्दियों में यहां खूब बर्फ पड़ती है। जनजीवन मुश्किल हो जाता है, इसलिए सर्दियों में इस गांव के निवासी निचले इलाकों में चले जाते हैं। मार्च में बर्फ पिघलने के बाद सभी लोग वापस अपने गांव में आते हैं। घरों की मरम्मत करते हैं, खेतों में काम करते हैं, पशुपालन व भेड़पालन करते हैं और जंगलों में भी जाते हैं।

पंचचूली बेसकैंप ट्रैक:

दारमा घाटी का सबसे बड़ा आकर्षण है पंचचूली बेसकैंप का ट्रैक। दुगतू गांव से पंचचूली बेसकैंप की दूरी लगभग 5 किमी है और यह पूरा रास्ता अत्यधिक शानदार नजारों से भरा हुआ है। आरंभ में रास्ता भोजपत्र के जंगलों से होकर गुजरता है। फिर जैसे-जैसे ऊंचाई बढ़ती जाती है, जंगल समाप्त होते जाते हैं और इनका स्थान घास के मैदान अर्थात बुग्याल ले लेते हैं। बुग्यालों में अनगिनत तरह के फूल खिले होते हैं और इनके पार पंचचूली की बर्फीली चोटियां दिखाई देती हैं।

बेसकैंप लगभग 3800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से पंचचूली चोटियों से उतरता हुआ ग्लेशियर बड़ा महमोहक लगता है। आप चाहें तो यहां अपना टैंट लगाकर रात भी रुक सकते हैं। टैंट या तो अपने साथ लाना होगा, अन्यथा दुगतू में भी किराये पर मिल जाएगा।

यदि आप ट्रैकिंग के शौकीन हैं, तो पंचचूली बेसकैंप के अलावा भी दारमा वैली में आपके लिए बहुत कुछ है। आप 4,350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बिदांग (वेदांग) झील तक जा सकते हैं। आप 5,500 मीटर ऊंचे सिनला दर्रे को पार करके आदि कैलाश भी जा सकते हैं।

कहां ठहरें?

दुगतू में कोई होटल नहीं है, लेकिन कुछ होमस्टे हैं। ये होमस्टे एकदम बेसिक होते हैं। आप लोगों के घरों में भी ठहर सकते हैं और टैंट भी लगा सकते हैं। कैंपिंग की सारी व्यवस्था आपको दुगतू में आसानी से मिल जाएगी। अच्छे होटल 70 किमी दूर धारचूला में मिलेंगे।

कैसे पहुंचें?

नजदीकी एयरपोर्ट पंतनगर (400 किमी) है। नजदीकी रेलवे स्टेशन टनकपुर (300 किमी) व काठगोदाम (340 किमी) हैं। टनकपुर व काठगोदाम दोनों ही स्थानों से पिथौरागढ़ व धारचूला के लिए बसें व शेयर्ड टैक्सियां मिल जाती हैं। धारचूला से दुगतू के लिए केवल शेयर्ड टैक्सी मिलेंगी। आप काठगोदाम, टनकपुर, पिथौरागढ़ व धारचूला से अपनी निजी टैक्सी भी ले सकते हैं।

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