रसरंग में मायथोलॉजी:नेपाल का हिंदू धर्म किन मायनों में भारत के हिंदू धर्म से अलग है?

देवदत्त पट्टनायक9 दिन पहले
  • कॉपी लिंक
इस तरह के अजिमा मंदिर काठमांडू में कई जगह मिल जाते हैं। - Dainik Bhaskar
इस तरह के अजिमा मंदिर काठमांडू में कई जगह मिल जाते हैं।

भारत और नेपाल के हिंदू धर्मों में मुख्यतः तीन अंतर हैं - पहला, नेपाल के लोग हिंदू और बौद्ध धर्मों में कोई भेद नहीं करते; दूसरा, नेपाल में इस्लाम का कोई प्रभाव नहीं मिलता और तीसरा, यहां लोगों में भक्ति की बहुत चर्चा होने के बावजूद भक्ति परंपराओं का कोई असर नहीं है।

हिंदू धर्म का यह विशिष्ट रूप भारत में संभवतः एक सहस्त्राब्दी पहले पनपा था, जब हिंदू और बौद्ध धर्मों में कोई अंतर नहीं था, इस्लाम प्रभावशाली नहीं था और भगवान से जुड़ी भावुकता व वैयक्तिकीकरण, जो भक्ति परंपरा की विशेषता है, व्यापक नहीं थी।

काठमांडू में अजति अजिमा अर्थात स्वयंभू पितामही अर्थात आदिम मातृ देवी के मंदिर सभी जगह मिलते हैं। स्पष्टतया नेपाल में देवी की परंपराएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। वहां दशहरा सबसे लोकप्रिय त्यौहार है, जिसमें युवतियों को देवी का रूप मानकर और देवी जैसे कपड़े पहनाकर पूजा जाता है।

नेपाल के कुछ महत्वपूर्ण वर्गों में जीवित देवी की परंपराएं भी प्रचलित हैं। इनमें कुंवारी कन्या को पूजा जाता है और उसके आशीर्वाद से राजाओं को वैधता मिलती है। कुंवारी देवी को राजपद के लिए उत्तरदायी बनाना भारत में भी पाया जाता है, जहां हर राजा किसी न किसी देवी से जुड़ा रहा है। उदाहरणार्थ, शिवाजी तुळजा भवानी से और विजयनगर के राजा कनकदुर्गा से जुड़े रहे। तलेजू नेपाल की सबसे लोकप्रिय स्थानीय देवी हैं। कहते हैं कि प्राचीन काल में एक नेपाली राजा ने उनके साथ पांसे का खेल खेला। लेकिन इस खेल के दौरान राजा ने गलत नजरों से देवी को देख लिया। इससे देवी क्रोधित हो गईं। तब राजा ने भैंसों और सांडों की बलि चढ़ाकर देवी को शांत किया, क्योंकि ये पशु उस वासना की अभिव्यक्ति थे।

पशुपतिनाथ मंदिर में शिव की अहम भूमिका है। कहते हैं कि वेदांत को शिव से जोड़ने वाले काश्मीर शैववाद ने इस मंदिर में रूप लिया। लेकिन नेपाल में शैववाद का तांत्रिक रूप, जिसमें शिव भैरव से जुड़े हैं, कहीं अधिक लोकप्रिय है। नेपाल में बौद्ध धर्म का तांत्रिक रूप भी है। झील पर नाग की कुंडलियों पर शयन करते हुए विष्णु की छवि को बुढानीलकंठ माना गया है। इस प्रकार, उसमें शैववाद, वैष्णववाद और बौद्ध धर्म का मिलन है।

तांत्रिक धर्म नेपाल में पनपा। इसका प्रमाण हमें लाल रंग के साथ लगाव और रक्तबलि के साथ अति सहजता में मिलता है। वज्रयान बौद्ध धर्म में हेरुक और वज्रयोगिनी की छवियां हैं। वह शिव-शक्ति से जुड़ी हिंदू धर्म की तांत्रिक परंपरा से अधिक संरेखित हैं। लेकिन, नेपाल में राम और कृष्ण से जुड़ी भक्ति परंपरा के कोई निशान नहीं हैं। हालांकि वहां उनके मंदिर पाए जाते हैं, किंतु उनसे संबंधित भावनाएं आत्मीय और वैयक्तिक नहीं हैं और प्रेममय तो बिल्कुल भी नहीं हैं।

चूंकि धरती देवी से जुड़ी है, हिंदू धर्म का सबसे प्राचीन रूप देवी से संबंधित है। धरती का एक भाग एक पुरुष के नियंत्रण में होता था, जो राजा अर्थात क्षेत्र नारायण था। देवी यानी पुरुष को संतान और भोजन देने वाली पत्नी, जिनके बदले में पुरुष उन्हें सुरक्षित रखता था। धरती और उसके रक्षक के बीच यह संबंध देवी और राजा के माध्यम से दिखाया जाता है।

भक्ति परंपरा में प्रेम की अहम भूमिका है। बालक या प्रेमी माने जाने वाले भगवान के साथ भावनात्मक संबंध को मधुर रस और शृंगार रस से दिखाया जाता है। लेकिन नेपाल में वीर रस का वर्चस्व है, जो सामंतवादी और लड़ाकू संस्कृतियों का संकेतक है।

गोरखनाथ और राजा की कहानी

पिछली कुछ सदियों के दौरान गोरखनाथ नामक ब्रह्मचारी सिद्ध योगी के अनुयायियों अर्थात गोरखाओं का नेपाल में वर्चस्व रहा है। कहते हैं कि एक बार गोरखनाथ ने वहां के राजा से थोड़ा दूध मांगा। दूध पीने के बाद उन्होंने उसे राजा के हाथ पर थूक दिया। इससे चिढ़कर राजा ने हाथ पीछे हटा लिया, जिससे दूध उसके पैरों पर जा गिरा। गोरखनाथ ने समझाया कि दूध उसे ज्ञान देने के लिए था। अगर वह इस दूध को हाथ पर ले लेता तो वह सभी इंद्रियों का स्वामी बन सकता था। लेकिन चूंकि दूध उसके पैरों पर गिरा था, इसलिए राजा केवल भूमि का स्वामी बन सकता था। इस प्रकार वह महान स्थानीय राजा बन गया।

गोरखपंती परंपराएं ब्रह्मचर्य की स्वीकृति और देवी व स्त्रीत्व की अस्वीकृति पर केंद्रित हैं। लेकिन जैसे राजा ने नेपाल की भूमि पर विजय प्राप्त की, जहां देवी की महत्वपूर्ण भूमिका थी, वह भी देवी की शक्ति के सामने झुक गया।