आज कार के कुछ कम्पोनेंट्स की चर्चा करके बताएंगे कि इनकी क्या अहमियत है और इन्हें कब-कब रिप्लेस करना चाहिए।
बैटरी
हमारे लिए वह स्थिति किसी दु:स्वप्न से कम नहीं होती, जब हम कार में चाबी घुमाते हैं और वह चालू नहीं होती है। अधिकांश मामलों में इसकी वजह बैटरी होती है। आमतौर पर आजकल कार की बैटरी चार साल तक चलती है, लेकिन हमें तीन से साढ़े तीन साल से ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए। इसलिए इस अवधि के बाद हमें हमेशा सतर्क रहना चाहिए। इसके अलावा यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि आप जब भी सर्विसिंग के लिए कार लेकर जाएं तो बैटरी में वॉटर टॉपअप और उसकी चार्जिंग जरूर करवाएं।
पुराने दिनों में सामान्य सेडान या हैचबैक कारों की बैटरियां 5 साल तक चल जाती थीं, क्योंकि तब बैटरी गाड़ी स्टार्ट करने के अलावा केवल म्यूजिक सुनने में ही काम आती थी। लेकिन अब जबकि आधुनिक तकनीकी अपने चरम पर है, इन दिनों आने वाली पेट्रोल और डीजल कारों में ड्राइविंग के दौरान आपके द्वारा इस्तेमाल में आने वाले कई फीचर्स बैटरी द्वारा हैंडल किए जाते हैं।
अच्छे परफॉर्मेंस के लिए कार की बैटरी की अच्छी सेहत बनाए रखना जरूरी है। इसलिए अगर आप 8 दिनों से ज्यादा समय के लिए कार का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो बेहतर होगा कि बैटरी के निगेटिव टर्मिनल हटा दिए जाएं। इससे आपकी बैटरी न केवल कई दिनों तक, बल्कि हफ्तों तक चार्ज रहेगी।
टायर्स :
हम सब जानते हैं कि रबर समय के साथ खराब होते जाता है और यह बात टायरों पर भी लागू होती है। इसलिए अपनी कार के टायरों पर करीबी नजर बनाए रखें, क्योंकि आपकी सुरक्षात्मक व सुविधाजनक यात्रा के लिए अच्छे टायर जरूरी हैं।
आपकी कार चाहे कितनी भी कम चली हो, समय के साथ भी टायर खराब होने लगते हैं और टायरों पर बारीक-बारीक क्रैक्स दिखने लगते हैं। इससे यह भले ही लगे कि टायर में अब भी ग्रिप बची है, लेकिन वे धीरे-धीरे हार्ड होते जाते हैं और इस तरह सतह पर उनकी ग्रिप कम होती जाती है।
जब भी टायर खरीदना हो, तो उसकी मैन्युफैक्चरिंग 6 महीने से पुरानी नहीं होनी चाहिए। वैसे देखा जाए तो एक टायर अमूमन 35 से 55 हजार किमी तक चल लाता है। ऐसे में आपकी कार कितनी चल चुकी है, इस पर हमेशा नजर रखनी चाहिए। अगर आपकी गाड़ी ज्यादा नहीं चलती है तो आपको 4 या 5 साल में अपने टायरों में बारीक-बारीक क्रैक्स दिखाई देने लगेंगे।
कूलेंट
कूलेंट या एंटीफ्रीज केमिकल होता है। इसे हम उस पानी में मिलाते हैं, जो कार के रेडिएटर में सर्कुलेट होकर इंजन को ओवरहीट होने से बचाता है। हालांकि विशुद्ध पानी भी यही काम कर सकता है, लेकिन कूलेंट में ऐसा एडिटिव होता है जो इंजन के उन हिस्सों को खराब होने या जंग लगने से बचाता है, जहां पानी सर्कुलेट होता है। पानी के साथ समस्या यह भी है कि ठंडे प्रदेशों में सर्दी के दिनों में अगर तापमान शून्य हो गया तो पानी जम सकता है और इसलिए यह इंजन के लिए घातक हो सकता है। अगर पानी में कूलेंट या एंटीफ्रीज मिला होगा तो यह पानी को जमने नहीं देगा और उसका मुक्त प्रवाह हो सकेगा। चूंकि यह हरे या नारंगी फ्लोरेसेंट कलर में आता है, इसलिए लीकेज होने पर रंग की वजह से लीकेज के बारे मंे तुरंत पता भी चल जाएगा। हमें बीच-बीच में कार के बोनट को खोलकर यह चेक करते रहना चाहिए कि कूलेंट उचित स्तर पर है या नहीं।
ब्रेक ऑयल
चलती कार को आप जहां चाहें, वहां ब्रेक लगते ही रुकना चाहिए। इसलिए अगर आपको लगे कि आपकी कार या बाइक ब्रेक लगाने के बाद भी थोड़ी देर बाद रुक रही है तो आपको तुरंत उसे किसी अच्छे मैकेनिक के पास लेकर जाना चाहिए। हालांकि कुछ बुनियादी बातें आप खुद भी चेक कर सकते हैं। आप दो-चार महीने में कार के बोनट को खोलकर देखते रहिए। कार के इंजन के पास आपको एक कंटेनर दिखाई देगा, जिस पर DOT3 या DOT4 लिखा मिलेगा। आप चेक कीजिए कि उसमें फ्लूइड का लेवल लो व हाई के बीच में रहे। साथ में यह भी देखें कि वह कहीं से लीक तो नहीं हो रहा।
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