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पारंपरिक दक्षिण भारतीय चित्रों में, चाहे वे कर्नाटक के मैसूर के चित्र हों या फिर तमिलनाडु के तंजावुर के चित्र अथवा केरल के भित्तिचित्र, उनमें आपको इंद्र ज़रूर दिखाई देंगे। चार दांतों वाले सफ़ेद हाथी ऐरावत पर बैठे इंद्र के शरीर पर आपको 1000 आंखें भी दिखाई देंगी।
ऋग्वेद के 1028 स्तोत्रों में से एक चौथाई से भी ज़्यादा स्तोत्रों में इंद्र का उल्लेख है। इस तरह वे वेदों के सबसे लोकप्रिय देवता हैं। वे शूरवीर हैं और उनके नेतृत्व में उनकी सेनाएं असुरों पर विजय प्राप्त करती हैं। वेदों में यह कहानी सबसे ज़्यादा दोहराई गई है कि वज्रधारी इंद्र ने कैसे वृत्र नामक दुष्ट सांप को मारकर उसके कब्ज़े से वर्षा को मुक्त करवाया। वर्षा से ही धरती का पोषण करने वाली नदियों का निर्माण होता है।
लेकिन वेदों के लगभग हज़ार साल बाद लिखे गए पुराणों में इंद्र का इतना आकर्षक वर्णन नहीं मिलता है। पुराणों में वे सिर्फ़ एक देव हैं, ब्रह्मांड में रहने वाले अनेक जीवों में से एक। वे देवों के राजा ज़रूर हैं, लेकिन शिव और विष्णु जितने महान नहीं हैं। वे महादेव या भगवान् नहीं हैं। पुराणों में तो इंद्र ग़ुस्से में आकर मानवता को सताने और नुकसान पहुंचाने वाली भयावह बारिश का स्रोत तक बन जाते हैं। फिर भगवान् विष्णु को कृष्ण का रूप धारण कर और अपनी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर मानवता को बचाना पड़ता है।
पुराणों के अनुसार इंद्र अपने नाम के अनुरूप व्यवहार करते हैं। उनका नाम इंद्रिय से आता है। वे ऐसे कामुक व्यक्ति हैं जो प्रलोभनों से फुसलाए जाते हैं। वे अप्सराओं और अन्य सुंदर महिलाओं की लालसा रखते हैं। धरती पर रहने वाली महिलाओं से कहा जाता है कि वे अपनी मांग में सिंदूर और पैरों की अंगुलियों में अंगूठी जैसे वैवाहिक चिह्न धारण करके रखें ताकि आकाश से उन्हें देखने वाले इंद्र को यह याद रहे कि वे महिलाएं शादीशुदा हैं।
यूनानी पुराणशास्त्र में इंद्र के प्रतिरूप ‘ज़ीउस’ अनेक परियों और राजकुमारियों के साथ दुष्कर्म करने के बाद भी बच जाते हैं। लेकिन रामायण में जब गौतम ऋषि, इंद्र को उनकी पत्नी अहिल्या के साथ पाते हैं तो वे उन्हें श्राप देते हैं। यानी हिंदू पुराणशास्त्र में देव भी श्राप से बच नहीं सकते। इस कहानी के विविध वर्णनों में श्राप भी अलग-अलग तरह से वर्णित है। एक वर्णन में इंद्र को बधिया किया जाता है। दूसरे वर्णन में बताया गया है कि उनके शरीर को एक हज़ार योनियों से ढंक जाने का श्राप मिलता है। लेकिन जैसा कि कई हिंदू कहानियों में होता है, श्राप देने वाले को अंतत: श्रापित व्यक्ति पर तरस आ जाता है और उसके द्वारा पश्चाताप करने के बाद वह श्राप को बदल देता है। इंद्र पश्चाताप करते हैं और गौतम ऋषि उन पर तरस खाकर हज़ार योनियों को हज़ार आंखों में बदल देते हैं। इस तरह इंद्र का शरीर हज़ार आंखों से ढंक जाता है।
हर आंख इंद्र की इंद्रियों पर नज़र रखती है कि क्या वे किसी मासूम या बेपरवाह महिला को अपनी मोहकता, शक्ति और प्रभाव से फुसला रहे हैं? या क्या उनकी सुंदरता और भव्यता से आकर्षित किसी इच्छुक महिला के द्वारा वे बहकाए जा रहे हैं?
चाहे जो कुछ भी हो, इंद्र देवों के राजा बने रहते हैं। उन्हें स्वर्ग से बाहर नहीं निकाला जाता। वे अपने सिंहासन पर बैठे रहते हैं। उनकी आंखें सबको उनके गुनाह की याद दिलाती रहती हैं। उन्हें सबक मिलता है, लेकिन उन्हें अस्वीकार या खारिज भी नहीं किया जाता। इस तरह इस कहानी से हमें यह याद दिलाया जाता है कि कोई भी व्यक्ति सभी मायनों में परिपूर्ण नहीं हो सकता, देवों के राजा भी नहीं। और दरअसल किसी को परिपूर्ण होने की ज़रूरत भी नहीं है।
सभी लोग ग़लतियां करते हैं और उन्हें दोहराते भी हैं। परिपूर्णता एक भ्रम है। हम सिर्फ़ यह उम्मीद कर सकते हैं कि अगली बार ये लोग अपनी इंद्रियों को क़ाबू में रखेंगे और अपनी विजय का ढिंढोरा पीटने के बजाय ग़लतियों से सीखकर और ज़िम्मेदार बनकर दूसरों की बात सुनने के लिए राज़ी होंगे।
(देवदत्त पटनायक प्राचीन भारतीय धर्मशास्त्रों के आख्यानकर्ता और लेखक हैं।)
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