रसरंग में कहानी:भावनाओं पर खर्च भविष्य के लिए निवेश!

संजय आरजू 'बड़ौतवी’13 दिन पहले
  • कॉपी लिंक

पिछले एक महीने से घर में खूब रौनक है। बेटे रोहित की इन दिनों छुटि्टयां चल रही हैं। उसके कई दोस्त बाहर, बगीचों में खेलने जाते हैं। लेकिन वह तो अपने कमरे के कोने में पिंजरे में रखे खरगोश के साथ ही मस्त रहता। उसने उसका नाम स्वीटू रखा है। मन मारकर समर कैम्प में जाता, पर घर लौटते ही स्वीटू को देखने दौड़ पड़ता। फिर उसे पिंजरे से बाहर निकालता और उसके साथ खूब खेलता। रोहित की मां प्राची भी उसे डांट-डांटकर थक चुकी थी। रोहित… बाहर से आने के बाद पहले हाथ-मुंह धोया करो, समर एक्टिविटीज का बैग यूं मत फेंका करो। परंतु रोहित के लिए रोज-रोज की पड़ने वाली ये डांट महज रेडियो पर चलने वाली एक धुन की तरह ही थी। रोहित पर इन सब बातों का अब कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। प्राची ने रोहित को कई बार धमकाया भी कि अगर यही सब चलता रहा तो एक दिन वह इस "स्वीटू’ को जंगल में छोड़ आएगी। मगर रोहित जानता था प्राची के अंदर की मां को। इसलिए वो आश्वस्त था कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला। रोहित की नादानियों का कुछ कसूर प्रशांत के हिस्से में भी आता था। शाम ढले प्रशांत घर में कदम रखता तो प्राची शुरू हो जाती- ये खरगोश लेकर आने की क्या जरूरत थी? यह सब तुम्हारी वजह से ही हो रहा है। देखो, जब से घर में स्वीटू आया है, रोहित बहुत बदतमीज और अनुशासनहीन हो गया है। ना मेरी सुनता है और ना समर वर्क पर ही ध्यान दे रहा है, बल्कि रोज-रोज इस स्वीटू के लिए नए-नए सामान खरीदने की जिद करता है, वो अलग। प्रशांत भी अपने फैसले के बचाव में तर्क देता- अरे तुम तो बात का बतंगड़ ही बना देती हो। इसको पहली बार कोई छोटा जानवर खेलने को मिला है। वो इस खरगोश में स्नेह ढूंढ रहा है। उसे भी तो कोई साथ में खेलने के लिए चाहिए कि नहीं? मोबाइल गेम से तो अच्छा ही है न, कम से कम दया भाव ही सीख रहा है। खयाल रखना सीख गया है। तुमने नोटिस किया? वह अब रोज सुबह जल्दी उठकर उसका खयाल रखने के लिए किस तरह स्वीटू की गंदगी साफ करने के बाद पिंजरे में नया कपड़ा लगाकर ही नहाने जाता है। स्वीटू के साथ वो यह सब सावधानियां भी तो सीख रहा हैं कि नहीं? ये फालतू के तर्क किसी और को समझाना। अगर अगले साल रोहित का दसवीं का रिजल्ट बिगड़ा तो उसके जिम्मेदार आप और आपका यह स्वीटू होगा। प्राची धमकाकर चली गई। आज स्वीटू को घर पर आए एक महीने से भी ज्यादा का समय हो चला था। प्राची को भी धीरे-धीरे स्वीटू की आदत पड़ गई थी। मगर इन सबके बावजूद पूरे फसाद की जड़ अपने पति प्रशांत पर यदा-कदा गुस्सा करती ही रहती। आज सुबह स्वीटू, रोहित के पलंग पर बैठा गाजर कुतर रहा था। रोहित ने देखा कि स्वीटू अपनी गाजर खाने में लगा है तो वह भी नहाने चला गया। नहाकर तौलिए से बाल झाड़ता हुआ वह बाहर निकला तो देखा कि एक बिल्ली खिड़की पर घात लगाए बैठी थी। वो बिल्ली अचानक स्वीटू पर झपटी। रोहित को समझते देर न लगी कि स्वीटू की जान को खतरा है। वो स्वीटू की तरफ दौड़ा। तब तक बिल्ली स्वीटू को पंजों से पकड़ने का असफल प्रयास कर चुकी थी और उसके पिछले पैरों को जख्मी कर चुकी थी। रोहित चीख उठा, मम्मी...। बिल्ली भाग खड़ी हुई। प्राची दौड़ती हुई आई। उसने देखा कि रोहित के होश उड़े हुए थे। वो रुआंसा हो रहा था। वह बड़े दया भाव से स्वीटू को हाथ में लिए उसे सहला रहा था। स्वीटू के पिछले पैरों पर खून के निशान थे। प्राची ने पूछा तो रोहित ने पूरी कहानी सुना दी और अपनी छोटी-सी लापरवाही के लिए खुद को जिम्मेदार मानते हुए रोने लगा। प्राची ने रोहित को ढांढस बंधाते हुए समझाया कि वो आगे से ध्यान रखें और ऐसी लापरवाही ना करें। शाम को प्रशांत घर पहुंचा तो देखा कि रोहित उदास है। स्वीटू भी ठीक से व्यवहार नहीं कर रहा है। रोज की तरह उछल-कूद नहीं रहा है। बस चुपचाप लेटा हुआ है। इस अजीब से माहौल में प्रशांत प्रश्नवाचक चिह्न के साथ प्राची की तरफ देख रहा था। प्राची ने दबी आवाज में पूरी बात बता दी। उधर प्रशांत को देख रोहित भी अपने कमरे से निकलकर प्रशांत से लिपटकर रोते हुए खुद को कोसने लगा। प्रशांत ने प्यार से समझाया, बेटा तुम्हें थोड़े ही मालूम था कि बिल्ली और खरगोश की दुश्मनी होती है। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं। मगर मन ही मन प्रशांत, स्वीटू की हालत को लेकर ज्यादा परेशान था। तभी चिंतित रोहित बोला, पापा इसे किसी जानवर के डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा। हां बेटा, मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। प्रशांत ने रोहित की बात पर सहमति जताते हुए कहा। रोहित ने गूगल पर डॉक्टर का पता निकाला, जो उसके घर के बिल्कुल पास ही निकला। डॉक्टर से खुद ही फोन पर बात की। डॉक्टर ने तुरंत उसे अपने क्लीनिक बुला भेजा, जो उसके घर से आधा किलोमीटर भी दूर नहीं था। रोहित, प्रशांत से बोला कि पापा, एक हजार रुपए दे दो। डॉक्टर के पास जाना है। प्रशांत ने एकदम चकित होकर पूछा कि एक हजार रुपए किस बात के लिए? पापा, पांच सौ रुपए तो डॉक्टर की फीस ही है। दवाइयों का खर्च अलग होगा। एक हजार रुपए से कम खर्चा नहीं होगा। प्रशांत एकदम सन्न देखता रह गया। वह कुछ कहता, तभी प्राची ने प्रशांत के कंधे पर हाथ रखकर उसे कुछ भी कहने से रोक लिया। प्रशांत उस समय प्राची की बात मानकर चुप रहा और रोहित की नम आंखों को देखते हुए चुपचाप एक हजार रुपए पकड़ा दिए। रोहित अपनी साइकिल के सामने लगे कैरियर में स्वीटू को रखकर जल्दी से उसका इलाज कराने के लिए निकल गया। प्रशांत ने प्राची की तरफ देखते हुए कहा, ये क्या बात हुई। तुमने मुझे रोका क्यों? एक नया खरगोश ही पांच सौ में आ जाता। फिर इस खरगोश के इलाज के लिए इतनी फिजूलखर्ची क्यों? प्राची ने मुस्कराते हुए अपने हाथों में प्रशांत का हाथ लेते हुए कहा, अगर आज हम अपने बच्चों को भावनाओं के बजाय पैसे का महत्व समझाएंगे तो कल जब हमारी कीमत कम हो जाएगी, तब क्या हमारे लिए भी ये बच्चे यही गणित नहीं लगाएंगे? फिजूलखर्ची का पाठ पढ़ाना अच्छी बात है, लेकिन इस वक्त रोहित की भावनाओं पर आज किया हुआ खर्च फिजूलखर्ची नहीं, बल्कि अपने भविष्य के लिए अच्छा निवेश है। प्राची की आंखों में प्रशांत एक विशेष चमक महसूस कर रहा था।