हेरी म्हा दरद दिवाणौ / म्हारा दरद ना जाण्यां कोय। घायल री गत घायल जाण्यां / हिबडो अगण संजोय॥ जौहर की गत जौहरी जाणै / क्या जाण्यां जण खोय मीरा री प्रभु पीर मिटांगा / जब वैद सांवरो होय॥
संत मीरा बाई को अपने जीवन में जिन दुखों का सामना करना पड़ा, उसी कारण उनकी पदावली पर आधारित हिंदी का एक मुहावरा ही बन गया- ‘घायल री गत घायल जाण्यां’। संत मीरा बाई पर आधारित मुख्य फिल्में दो बार निर्मित हुई हैं। प्रथम फिल्म 1947 में तमिल में बनी थी, जिसमें टाइटल रोल भारतरत्न एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी ने निभाया था और जिसे बाद में हिंदी में भी डब किया गया था। दोनों भाषाओं में इस फिल्म ने अपार सफलता अर्जित की। लेकिन दूसरी बनी फिल्म ‘मीरा’ को जिन विपदाओं का सामना करना पड़ा, उसकी चर्चा आज करेंगे। दूसरी बार ‘मीरा’ 1979 में हेमा मालिनी को लेकर निर्मित हुई, जिसके निर्माता थे वरिष्ठ और अनुभवी प्रेमजी (जो कभी फिल्म गंगा जमुना के प्रोडक्शन कंट्रोलर और बाद में दिलीप कुमार के सेकेट्री भी रह चुके थे) और निर्देशक थे गुलज़ार।
14 अक्टूबर 1975 को विजयादशमी के शुभ अवसर पर फिल्म का मुहूर्त हुआ। मुहूर्त शॉट के लिए लता मंगेशकर को आमंत्रित किया गया। इसी दिन जब प्रेमजी और गुलज़ार ने लता मंगेशकर को मीरा के गीत गाने का ऑफर दिया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया। निर्माता और निर्देशक को पहला झटका ही मुहूर्त वाले दिन लग गया, लेकिन गुलज़ार ने प्रेमजी को सांत्वना दी कि वो लता जी से तसल्ली से बात करके उन्हें राज़ी कर लेंगे। इसके बाद लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को संगीत निर्देशन के लिए फाइनल किया गया। दोनों ने मीरा के संगीत पर काम करना शुरू कर दिया। लता मंगेशकर के इनकार करने के बावजूद लक्ष्मी प्यारे इसी विश्वास और आशा में लगे थे कि वे सब मिलकर लता जी को राज़ी कर लेंगे। 19 जून 1976 को फिल्म की शूटिंग शुरू होनी थी और निर्देशक गुलज़ार चाहते थे कि गीत ‘मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई’ के साथ ही शूट का श्रीगणेश किया जाए। शूटिंग से काफी पहले जब लक्ष्मी प्यारे ने लता मंगेशकर से दोबारा बात की तो वो तब भी अपने फैसले पर अडिग रहीं। इसके बाद गुलज़ार ने बहुत अनुरोध किया, परंतु उनका जवाब तब भी रहा- ‘नहीं’। दरअसल, लता मंगेशकर के इनकार करने की वजह यह थी कि वे कुछ समय पहले ही अपने छोटे भाई हृदयनाथ मंगेशकर की संगीत रचनाओं पर ‘मीरा’ के भजन के दो प्राइवेट एलबम गा चुकी थीं और निःसंदेह इस एलबम की सारी रचनाओं में कर्णप्रिय बंदिश, गायकी और भाव का अद्भुत संगम था। आज भी सुनिएगा तो साक्षात देवी मीरा के दर्शन हो जाते हैं, इसीलिए लता मंगेशकर को लगा कि मीरा फिल्म के लिए अपना स्वर देना सही नहीं होगा। तो उन्होंने सबसे स्पष्ट रूप से कह दिया कि आप सब कोई दूसरी गायिका का चुनाव कर लें। दूसरी गायिका की खोज शुरू हुई तो लता के अभाव में लक्ष्मी प्यारे ने फिल्म छोड़ दीं। प्रेमजी और गुलज़ार को दूसरा झटका! गुलज़ार ने तुरंत अपने मित्र राहुल देव बर्मन को संगीत निर्देशन के लिए लेना चाहा तो उन्होंने भी ये कहकर इनकार कर दिया कि अगर ‘लता नहीं हैं तो वो भी फिल्म नहीं कर पाएंगे।’ प्रेमजी और गुलज़ार को तीसरा झटका! कोई दूसरा विकल्प न मिल पाने पर गुलजार ने गाना शूट करने के बदले सीन शूट करने की योजना बना ली, क्योंकि हेमा मालिनी ने शूट की तारीख दे रखी थीं, जिसे किसी भी कीमत पर कैंसल कर देना बड़ी मूर्खता होती। इसी बीच अमिताभ बच्चन को अनुबंधित कर लिया गया राजा भोज के रोल के लिए। सो हेमा मालिनी के साथ शूटिंग शुरू तो हो गई, लेकिन संगीत का अभी भी कोई अता-पता नहीं था क्योंकि लता मंगेशकर के बगैर कोई भी ‘मीरा’ का संगीत देने को तैयार नहीं था।
मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं। ऐसे में एक दिन फिल्म के आर्ट डायरेक्टर देश मुखर्जी ने म्यूजिक के लिए एक नाम सुझाया और वो नाम था- पंडित रवि शंकर। उस समय तक पंडित रवि शंकर भारत छोड़ चुके थे और अमेरिका में रहने लगे थे। उनकी ख्याति आसमान छू रही थी और वे इतने व्यस्त थे कि उनका पता-ठिकाना मालूम करना भी बहुत मुश्किल था। निरंतर कोशिश के बाद सिर्फ ये पता चला कि रविशंकर तीन दिन के लिए लंदन में अमुक स्थान पर प्रवास करेंगे और वहां का फ़ोन नंबर भी आतुर, मजबूर और झटका खाए हुए खोजी दल को मालूम हो गया। समय आने पर गुलज़ार ने रविशंकर से फोन पर बात करके ‘मीरा’ फिल्म के संगीत निर्देशन का प्रस्ताव रख दिया। सितार वादक सितारे ने कहा कि वे स्क्रिप्ट सुनकर ही फैसला कर पाएंगे जिसे सुनने का समय उन्होंने अगस्त 1976 में, यानी इस फोन कॉल के एक महीने बाद दिया। 3 अगस्त 1976 को न्यूयॉर्क में पंडित जी ने स्क्रिप्ट सुनकर अपनी सहमति दे दी, लेकिन लता मंगेशकर ने इनकार कर दिया, यह सुनकर वे थोड़ा चौंक पड़े। मगर थोड़ी देर की चुप्पी के बाद लता की अनुपस्थिति के बावजूद हां कर दिया! राजस्थान (भारत) की ‘मीरा’ को अमेरिका में जाकर संगीत रचनाकार नसीब हुआ। रविशंकर ने लता की जगह वाणी जयराम को मुख्य गायिका के रूप में चुन लिया, लेकिन समस्याएं अभी समाप्त नहीं हुई थीं- सितारों से आगे जहां और भी हैं। अभी इश्क़ के इम्तिहान और भी हैं। गानों की रिकॉर्डिंग के लिए रविशंकर ने तीन महीने बाद नवंबर 1976 का समय प्रदान किया, जिसके अनुसार स्टूडियो, गायिका, म्यूजिक अरैंजर, साउंड रिकॉर्डिस्ट इत्यादि भी बुक कर लिए गए। नवंबर 1976 में पंडित रविशंकर मुंबई पहुंचे और 22 नवंबर से 15 दिसम्बर के बीच मीरा के गीत रिकॉर्ड कर डाले परंतु गीतों की कम्पोजिशन्स पर कितना काम किया गया, सृजन कैसे हुआ, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है। बस सिर्फ इतना है कि सारे गीत सितार गुरु ने 24 दिन में रिकॉर्ड भी कर दिए। बैकग्राउंड म्यूजिक के लिए समय केवल 9 महीने के बाद का निकल रहा था, तो निर्देशक गुलजार पर जबरदस्त दबाव और मानसिक त्रास था कि उन्हें हर हाल में फिल्म की शूटिंग उन्हीं 9 महीनों में पूरी करनी होगी। तो वे पूरे ज़ोरशोर से शूट पूरी करने में जुट गए कि अचानक एक विपदा और आन पड़ी- अमिताभ बच्चन ने फिल्म छोड़ दी। अब ऐसी हालत में गुलजार ने अमिताभ बच्चन के सीन छोड़कर बाकी की शूटिंग 25 मई 1977 से दोबारा शुरू कर दी। लेकिन अमिताभ की जगह विनोद खन्ना के आगमन से उनके शेड्यूल के साथ एडजस्ट होने के चक्कर में शूटिंग समय पर पूरी नहीं हो सकी और पंडित रविशंकर द्वारा दी गई सितंबर 1977 की डेट्स हाथ से निकल गईं। जो फिल्म बैक ग्राउंड म्यूजिक के लिए सितंबर 1977 में पूरी होनी थी, वो 1978 के मध्य तक भी पूरी नहीं हो सकी। अब रविशंकर ने गुलज़ार से कहा कि सितंबर 1978 तक बैकग्राउंड म्यूजिक करना है तो कर लो, क्योंकि उसके बाद मैं एक साल तक व्यस्त हूं, भारत नहीं आ पाऊंगा। तो इस तरह निर्माता-निर्देशक को हर कदम पर हर एक के साथ समझौता करना पड़ा। जबरदस्त मानसिक यंत्रणा और वेदना में फिल्म ‘मीरा’ का निर्माण किसी विषपान से कम नहीं था।
जो फिल्म 1975 में बननी शुरू हुई, वह प्रदर्शित हुई 25 मई 1979 को और फ्लॉप भी हो गई मगर वाणी जयराम को सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्मफेयर अवार्ड प्रदान किया गया। एक नजर उस वर्ष की आला दर्जे की धुनों पर: रिमझिम गिरे सावन सुलग-सुलग जाए मन (फिल्म - मंज़िल/ संगीत- आर.डी. बर्मन) तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है (फिल्म - आप तो ऐसे न थे / संगीत उषा खन्ना)। भरे बाजार में हम क्यों ये दिल की बात ले जाएं (फिल्म - आस पास / संगीत लक्ष्मीकांत प्यारे लाल)। पल दो पल का साथ हमारा (फिल्म - बर्निंग ट्रेन / संगीत - राहुल देव बर्मन)। प्यार चाहिए तुम्हारा प्यार चाहिए (फिल्म - मनोकामना / संगीत - बप्पी लाहिरी)। दूरी न रहे कोई आज इतने करीब आओ/(फिल्म - कर्तव्य / संगीत - लक्ष्मीकांत प्यारे लाल)। मेरी समझ से उपरोक्त गीत बेहतर धुन और बेहतर गायकी की मिसाल हैं, लेकिन अवॉर्ड रविशंकर की बंदिश को मिला। इन घटनाओं से एक सबक मिलता है कि हमारी मुंबई फिल्म जगत में प्रतिभाओं की ना तो पहले कमी थी और ना ही आज है। तो घर की मुर्गी को दाल समझकर जो परदेसियों के पीछे भागते हैं, वो हमेशा फायदे से अधिक नुकसान में रहे हैं। समय और अवसर मिला तो मीरा एलबम की चर्चा होगी। अभी चलता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें! जय हिंद! वंदे मातरम!
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