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मैंने पिछले हफ्ते दिल्ली के उर्दू घर द्वारा रखी गई महफ़िल की बात की थी, जिसमें बताया था कि इसमें दिल्ली, कराची से लेकर अमेरिका तक से लेखिकाओं और ख़वातीन शायरों ने हिस्सा लिया। महफ़िल में इतनी सारी बातें हुईं कि उन्हें एक कॉलम में समेटना संभव नहीं जान पड़ा। इसलिए इस हफ्ते के कॉलम में भी उसी बात को आगे बढ़ाते हैं।
हम जब उर्दू अदब में ख़वातीन की बात करते हैं तो मेरा जी चाहता है कि उन लिखने वालियों को भी इसमें शामिल किया जाए जिन्होंने हिंदी या अंग्रेज़ी या अन्य भारतीय भाषा में लिखा और उनके तर्जुमे उर्दू में किए गए। ये इतने आला तरीक़े से किए गए कि पढ़ते जाइए और गुमान भी नहीं होगा कि यह किसी और भाषा में लिखे गए होंगे। अरुंधति रॉय ने अपना जो दूसरा नाॅवेल 'द मिनिस्ट्री ऑफ अटमोस्ट हैप्पीनेस' लिखा, उसका अनुवाद अरजुमंद आरा ने बेपनाह शादमानी की मुमालकत के उनवान से किया। उसे पढ़ते हुए ऐसा महसूस होता है कि यह उर्दू में ही लिखा गया है। क्या जानदार अनुवाद है। निचले तबक़े के मुसलमानों का क़िस्सा जो एक ख़सरे से शुरू होता है, फिर दहशतगर्दी के मामलात को समेटता हुआ ज़िंदगी को सिर के बल खड़ा कर देता हेै।
इसी तरह महाश्वेता देवी हैं जिनका नॉवेल 'हज़ार चौरासी की मां' रोंगटे खड़े कर देता है। सरकार के कहने के मुताबिक़ एक नक्सलवादी है जिसे एनकाउंटर में मार दिया गया है। वह एक ख़ुशहाल भरे घर से है। बेटे को देखने और पहचानने के लिए उसकी मां को बुलाया जाता है। मुर्दाख़ाने में उसके बेटे के अंगूठे पर 'एक हज़ार चौरासी' का नंबर लगा हुआ है, इसलिए वह 'हज़ार चौरासी की मां' कहलाई।
इसी तरह कृष्णा सोबती का नॉवेल 'गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान' दिल दहला देता है। इसे पढ़िए तो ज़हन में ही नहीं आता है कि यह हिंदी में लिखा गया है। हो सकता है कुछ लोगों को मेरी बात ग़लत लगे लेकिन ये तीनों नॉवेल हमारे उपमहाद्वीप की अदबी बुलंदियों पर पहुंचे हुए हैं। ये हमारी लिखने वालियों की महारत है जो इन नॉवेलों में नज़र आती है। यही आलम अमृता प्रीतम आैर जीत कौर की तहरीरों का भी है।
हमारे यहां एक आलम तो यह था और अब भी कई इलाक़ों में है कि मुसलमान औरत अपने शौहर के बग़ैर सफ़र नहीं कर सकती और वह भी शाम होने से पहले उसे घर आना होता है। और फिर यह भी आलम है कि लिखने वालियांे ने सात समंदर पार के सफ़र किए हैं। सफ़रनामों का सिलसिला बेगम अख़्तर रियाज़ुद्दीन से शुरू हुआ और सलमा उनवान ने सात समंदर पार के सफ़र किए। उधर क़ुर्रतुलऐन हैदर थीं, जिन्होंने ईरान, रूस, अमेरिका, चीन, जापान, हर जगह का सफ़र किया और सफ़रनामे लिखे।
उस रोज़ जब हमारी बातें ख़त्म हुईं तो मैंने साइंस की चौखट पर माथा टेका जिसकी बदौलत हम दोनों मुल्कों की नौकरशाही की रुकावटों के बावजूद एक-दूसरे से बातें कर सके,अदब और अदीबों के, एक-दूसरे के सुख-दुख बांट सके।
(ज़ाहिदा हिना पाकिस्तान की जानी-मानी वरिष्ठ पत्रकार, लेखिका और स्तंभकार हैं।)
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