अन्नू कपूर का खास कॉलम 'कुछ दिल ने कहा':जिनके प्रति लता की आसक्ति बदल गई थी भक्ति में

अन्नू कपूर2 महीने पहले
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लता मंगेशकर की 6 फरवरी को पहली पुण्यतिथि है। - Dainik Bhaskar
लता मंगेशकर की 6 फरवरी को पहली पुण्यतिथि है।

5 फरवरी 2022 को एक अंतिम प्रयास किया गया, ताकि ‘भारत की कोयल’ इस संसार में बनी रहे। परंतु तब तक नियति ने निर्णय ले लिया था कि मृत्युलोक के वासियों ने इसकी मधुर, मोहक वाणी का रसानुभव और आनंद जितना प्राप्त करना था, कर लिया। अब सृष्टि के रचयिता को भी अपनी इस अद्वितीय रचना का अनंत तक आनंद लेना है, क्योंकि अब ऐसी रचना संभवतः रचनाकार 500 वर्ष बाद ही करने में सक्षम हो। सो अब बहुत हुआ। अब लता को वापस आना है। सो 6 फरवरी 2022 को संगीत का ये ध्रुव तारा इष्ट में लीन हो गया! लता मंगेशकर की आवाज़ के तो करोड़ों लोग प्रेमी रहे हैं, लेकिन लता मंगेशकर जिनकी कला की प्रेमी थीं, उनमें कुछ नाम- उस्ताद सलामत अली नज़ाकत अली, मेहदी हसन इत्यादि गिनाए जा सकते हैं। परंतु वे भक्त थीं कुंदन लाल सहगल की। और वो अकेली सहगल भक्त नहीं थीं, अपितु किशोर कुमार और मुकेश भी सहगल भक्त थे!

कुंदन लाल सहगल गायक ही नहीं, अभिनेता भी थे! लता मंगेशकर बचपन से ही कुंदन लाल सहगल की दीवानी थीं।
कुंदन लाल सहगल गायक ही नहीं, अभिनेता भी थे! लता मंगेशकर बचपन से ही कुंदन लाल सहगल की दीवानी थीं।

कुंदन लाल सहगल हमारे पहले गायक-अभिनेता सितारे थे! लता मंगेशकर बाल्यकाल से ही कुंदन लाल सहगल की दीवानी थीं और अपने पिता से कहती थीं कि मैं तो बड़ी होकर सहगल साहेब से ही शादी करूंगी। अबोध बच्चों की अबोध बातें। बचपन में हममें से अधिकांश ने कुछ ऐसा ही अपने माता-पिता से अगर कहा हो तो कोई अचंभे की बात नहीं है। सो धीरे-धीरे आयु के साथ सहगल के प्रति लता की आसक्ति, भक्ति में बदल गई और जब कुछ गाकर दो-चार रुपए मिलने लगे तो पाई-पाई जोड़कर एक रेडियो ख़रीदा। उद्देश्य केवल एक ही था कि सहगल साहेब को सुनना है! आज के इंटरनेट की व्यापकता और हर क्षण प्राप्त मनचाहे संगीत, फ़िल्मों और विविध प्रकार के मनोरंजन के माध्यमों का प्रथम चरण, पहली सीढ़ी तो पहले रंगमंच और उसके बाद रेडियो था, जिसकी शुरुआत 1922 से हो चुकी थी। परंतु रेडियो मनोरंजन का सुलभ माध्यम 1930 के बाद होना शुरू हुआ। हमारी मूक फ़िल्मों का निर्माण 1913 से शुरू हुआ और बोलती फ़िल्में आईं 1931 से। स्वतंत्रता आते-आते सिनेमा का ज़ोर प्रबल होता चला गया। दर्शक को सिनेमा देखने तो हॉल में जाना होता था, लेकिन रेडियो के माध्यम से उसे गीत, संगीत, नाटक, बातचीत इत्यादि द्वारा मनोरंजन घर में ही उपलब्ध हो गया था। पर उस जमाने में रेडियो ख़रीद पाना हर एक के बस की बात नहीं थी। केवल कुछ धनी परिवार ही उसे ख़रीद सकते थे, जिसका आनंद सारा मोहल्ला उठाता था।

लता मंगेशकर की शुरुआती तस्वीर।
लता मंगेशकर की शुरुआती तस्वीर।

लता मंगेशकर ने अपनी कमाई से खुद का एक रेडियो ख़रीदा। निश्चित रूप से नहीं कह सकता कि इसका ऑर्डर उन्होंने कब और किस तारीख़ को दिया, परंतु ये बहुत विश्वास से कह सकता हूं कि जिस दिन लता मंगेशकर के रेडियो को विद्युत तार जोड़कर चालू किया गया, वह तिथि सम्भवतः 18 जनवरी 1947 थी! बस एक ही लगन, एक ही उमंग कि अब सहगल साहेब का कोई गीत सुनकर मन मयूर खिल उठेगा। तो जैसे ही रेडियो की सुई नियत स्थान पर अटकी, सो पहली आवाज़ उद्घोषक की आई। दिल की धड़कन सहगल का गाना सुनने को बेताब! कौन-सा गाना सुनाया जाएगा? मैं क्या जानू क्या जादू है…? या सो जा राजकुमारी सो जा…? या ग़म दिए मुस्तक़िल कितना नाज़ुक है दिल ये ना जाना हाय हाय ये ज़ालिम ज़माना…? मगर उद्घोषक ने ये सब ना सुनाया, बल्कि उसकी आवाज़ गूंज उठी- अत्यंत शोक और दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि देश की मशहूर हस्ती, प्रसिद्ध अभिनेता गायक कुंदन लाल सहगल अब नहीं रहे…। ये होगा दुखद समाचार औरों के लिए, लेकिन लता के लिए तो ये गाज थी जो हृदय को चीर गई। पूरा वजूद कांप गया। अभी पांच साल भी नहीं हुए थे कि बाबा चल बसे थे और अब ये शब्द कि ‘कुंदन लाल सहगल नहीं रहे’, 17 साल 3 महीने और 18 दिन की आयु की लता के क्रोध की कोई सीमा ना रही। दुःख और वेदना की ज्वाला में भड़ककर लता ने रेडियो को एक झटके में सॉकेट से उखाड़कर और दोनों हाथों से उठाकर खिड़की से बाहर फेंक दिया और फिर प्रण लिया कि वे जीवन भर रेडियो नहीं सुनेंगी। इस प्रण को लता मंगेशकर ने सारा जीवन निभाया, रेडियो ना तो सुना, ना ही अपने निवास पर उसे लगने दिया। क्या करना उसका, जिसका पहला संदेसा ही पीड़ा और वेदनापूर्ण हो! लता मंगेशकर के सानिध्य का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ है, क्योंकि वे मेरे टीवी शो ‘मेरी आवाज़ सुनो’ की निर्मात्री भी थीं। सेट पर आती थीं, जिसकी चर्चा मैं बाद में कभी अवश्य करूंगा। अभी तो नासिर काज़मी की एक रचना के साथ अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं- गए दिनों का सुराग़ लेकर किधर से आया किधर गया वो अजीब मानूस अजनबी था, मुझे तो हैरान कर गया वो बस एक मोती सी छब दिखा कर बस एक मीठी सी धुन सुना कर सितारा ए शाम बन के आया बरंग ए ख़्वाब ए सहर गया वो वो हिज्र की रात का सितारा, वो हम नफस हम सुखन हमारा सदा रहे उसका नाम प्यारा, सुना है कल रात मर गया वो। और हां, आज दो-चार नामी-गिरामी हस्तियों को भी जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं! आप स्वस्थ रहें, सुफल रहें! अपने परिवार और देश का नाम रोशन करें, ऐसी ही मंगलकामना! आप दो-चार में से एक हस्ती के लिए जो सलाह है, वो दूसरों के लिए भी लाभकारी होगी, ये पक्की बात है। कृपया नोट करें- अभी कुछ समय पहले एक हस्ती ने जो कुछ ओछे शब्द अपने सहायकों और स्थानीय अंगरक्षकों के बारे में कहे, वो आपकी ड्यूटी में कार्यरत ड्राइवर ने मेरी टीम के एक सदस्य को बताए। होशियार! ये जनता है, कोई कच्ची बात कभी मुंह से नहीं निकालना, चाहे कोई कितना भी बड़ा स्टार हो, कितनी भी बड़ी सेलेब्रिटी हो। घमंड रावण का नहीं रहा तो हमारी क्या औक़ात है। समझदार को इशारा काफ़ी है! तुम्हें मैं बचपन से जानता हूं, इसलिए शुभकामना तुम्हारे उज्ज्वल भविष्य की! बात को घुमा-फिराकर कह रहा हूं। इसमें ही समझदारी है। पानी में अक्स देख के इतरा रहा था मैं कंकर किसी ने फेंक के मंजर बदल दिया। मेरे प्रणाम स्वीकार करें जय हिंद! वंदे मातरम!

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