रसरंग में मायथोलॉजी:क्या जंगलों के रक्षक थे राक्षस और वे सुधरना चाहते थे?

देवदत्त पटनायक2 महीने पहले
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हिमाचल प्रदेश के मनाली में स्थित हिडिंबा देवी मंदिर। यह भीम की पत्नी हिडिंबि को समर्पित है, जो राक्षस कुल में पैदा हुई थी। - Dainik Bhaskar
हिमाचल प्रदेश के मनाली में स्थित हिडिंबा देवी मंदिर। यह भीम की पत्नी हिडिंबि को समर्पित है, जो राक्षस कुल में पैदा हुई थी।

‘डीमन’ धारणा का उल्लेख करने के लिए भारतीय पुराणशास्त्र में कई बार ‘असुर’ और ‘राक्षस’ शब्दों का उपयोग किया जाता है। लेकिन दोनों शब्द बहुत अलग हैं। असुर धरती के नीचे, जबकि राक्षस उसके ऊपर रहते हैं। असुर आकाशवासी देवों के शत्रु हैं, जबकि राक्षस मानवों के शत्रु हैं।

रामायण में राक्षसों का परिचय जंगलों में ऋषियों के यज्ञों में बाधा डालने वाले उपद्रवियों के रूप में किया गया। इसलिए विश्वामित्र ने राम की मदद से अपने आश्रम को इन आक्रमणों से सुरक्षित रखा। राम ने अन्य राक्षसों सहित ताड़का नामक राक्षसी तक का वध किया।

वनवास में राम का कई राक्षसों से सामना हुआ। उनमें से सबसे जानी-मानी राक्षसी शूर्पणखा है, जिसने राम से खुलेआम उसके साथ संबंध रखने की मांग की। जब राम ने उसे यह कहकर नकारा कि वे विवाहित हैं, तब शूर्पणखा हिंसा पर उतर आई। राम ने शूर्पणखा को जीवित तो रखा, लेकिन लक्ष्मण के हाथों उसकी नाक कटवा दी। इस भयंकर घटना का बदला लेने के लिए शूर्पणखा के भाई रावण ने सीता का अपहरण किया। लेकिन रावण राम को दंड देने से संतुष्ट नहीं था। उसे केवल बदला नहीं लेना था। अपनी बहन की तरह वह भी विवाह के संस्थान का अनादर करता था। उसने सीता को अपनी कई रानियों में से एक बनाने की ठान ली।

शूर्पणखा और रावण का व्यवहार इस बात का संकेत है कि राक्षस मत्स्य न्याय अर्थात जंगल के नियम का पालन करते थे। वे लोगों से बलपूर्वक चीज़ें छीनते थे, क्योंकि उनका मानना था कि बल ही सर्वश्रेष्ठ है। दूसरे शब्दों में कहना हो तो वे धर्म का पालन नहीं करते थे।

बल और चालाकी पर आधारित मत्स्य न्याय जानवरों को स्वीकार्य है, लेकिन जब मनुष्य उसे अपनाते हैं तब वह अधर्म के बराबर है। मनुष्य होने के कारण हम आत्मसंरक्षण और आत्मप्रजनन के परे देखने में सक्षम हैं। केवल मनुष्य अपने बारे में सोचते हुए भी दूसरों की देखभाल कर सकते हैं। दूसरों की देखभाल करने की यह क्षमता ही सभ्य व्यवहार का मापदंड है।

रामायण में दोहराया गया है कि रावण विश्रव नामक ब्राह्मण और कैकसी नामक राक्षसी का पुत्र था। दोनों ने सीता के अपहरण का विरोध किया। रावण के भाई विभीषण ने भी उसका विरोध किया। जब सीता को लंका में सबसे अलग अशोकवन में रखा गया था, तब त्रिजात ने उनके प्रति सहानुभूति दिखाई। यहां तक कि रावण का भाई कुंभकर्ण भी उसकी नीतियों से सहमत नहीं था। इन उदाहरणों से यह भी स्पष्ट है कि राक्षसों का अधर्म के प्रति मूल रूप से झुकाव नहीं था। वे मत्स्य न्याय को त्यागकर धर्म का पालन करने में अर्थात मानव बनने में सक्षम थे।

सीता के अपहरण से पहले राम का विराध नामक राक्षस से सामना हुआ। वे शस्त्रों से उसका वध नहीं कर सके और इसलिए उन्होंने उसे जीवित गाड़ दिया। मरने पर विराध गंधर्व बन गया और उसने बताया कि एक शाप ने उसे राक्षस बनाया था। सीता के अपहरण के बाद राम का कबंध नामक राक्षस से भी सामना हुआ। इंद्रदेव ने कबंध के सिर पर इतने ज़ोर से मारा था कि उसका सिर छाती के साथ जुड़ गया था। उसने अपने लंबे हाथों से राम को पकड़कर उन्हें निगलने की कोशिश की। जब राम ने उस पर बाण बरसाए, तब उसने राम से उसे जलाने का आग्रह किया। जलकर मरने पर वह गंधर्व में बदल गया, जिसे भी राक्षस बनने का शाप मिला था। संभवतः ये कहानियां सुधार के बारे हैं। संभवतः विराध और कबंध जैसे राक्षस राम का सामना करने से पहले मत्स्य न्याय का पालन करते थे और राम से मिलने के बाद मत्स्य न्याय त्यागकर वे परोपकारी गंधर्व बन गए।

हिमाचल प्रदेश में हिडिंबि को समर्पित मंदिर है, जिससे इस बात की पुष्टि मिलती है कि राक्षस दुष्ट नहीं बल्कि जंगलों के रक्षक थे। उपनिषदों के अनुसार भी राक्षस जंगलों के रक्षक थे, जिन जंगलों को मानवों ने जलाकर मैदान, बाग और चरागाह बनाए। तो क्या इसीलिए मानवों और राक्षसों में संघर्ष हुआ? तर्कवादियों और मानवविज्ञानियों का यही मानना है।

महाभारत: पांडवों व कौरवों दोनों ओर से लड़े राक्षस

महाभारत में भी राक्षसों का उल्लेख है। यहां उन्हें जादुई शक्तियों वाले जंगली नरभक्षक कहा गया है। पांडवों और उनका सामना केवल जंगलों में हुआ। गांववालों को बक और हिडिंब नामक राक्षसों के आतंक से बचाने के लिए भीम ने उनका वध किया। हिडिंब की बहन हिडिंबि ने भीम की शक्ति से आकर्षित होकर उससे विवाह किया। दोनों ने घटोत्कच नामक बेटे को जन्म दिया। जब भी भीम घटोत्कच का स्मरण करता, तब वह पांडवों की मदद करने आता था। हिमालय चढ़ने में जब उन्हें कठिनाई हुई, तब घटोत्कच ने उनकी मदद की। कुरुक्षेत्र के युद्ध में राक्षसों ने दोनों ओर से लड़ाई की- घटोत्कच ने पांडवों के लिए और अलम्बुष ने कौरवों के लिए। जब घटोत्कच भाले से घायल हुआ, तब कृष्ण के कहने पर उसने विशालकाय रूप धारण कर लिया और कौरव सेना पर गिरकर उसने अधिकांश को कुचल दिया।