- वन विहार में छोड़ा जाएगा पकड़ा गया घड़ियाल, कलियासोत डैम में चला रेस्क्यू
- गुरुवार को इटावा की टीम ने सुबह 8 बजे से शुरू किया घड़ियाल को पकड़ने का ऑपरेशन
भोपाल. वन विभाग की 10 दिन की मशक्कत के बाद गुरुवार को इटावा से आई टीम ने छह घंटे में कलियासोत डैम से रेस्क्यू कर लिया। असल में, डैम में दो घड़ियाल हैं, जिनके मुंह में जाल फंसा हुआ है। जो उनके लिए जानलेवा हो सकता था। इसलिए दोनों घड़ियालों को रेस्क्यू करने का फैसला किया गया है। वन विभाग ने पकड़े गए घड़ियाल को वन विहार भेजा है।
बुधवार तक कलियासोत डैम से घड़ियाल के साथ ही मगरमच्छ भी पकड़ने की योजना बनाई गई थी। लेकिन इटावा की टीम की सलाह के बाद मगरमच्छ पकड़ने के अभियान को रोक दिया गया। रेस्क्यू ऑपरेशन गुरुवार सुबह 8 बजे से शुरू हुआ। नावों की मदद से जाल बिछाया गया, इसके बाद योजनाबद्ध तरीके से घड़ियाल को पकड़ लिया।
इटावा से आई टीम का मानना है कि डैम का पर्यावरण घड़ियाल के लिए अनुकूल नहीं है। टीम को आश्चर्य हो रहा था कि घड़ियाल यहां पर कैसे सरवाइव कर रहे हैं, क्योंकि यह बहते पानी को ज्यादा पसंद करते हैं। बुधवार को टीम ने अभियान शुरू करने से पहले पानी की गहराई नापी थी। उन्हें कहीं गहराई 9 मीटर तो कहीं 11 मीटर मिली थी।

टर्टल सरवाइवल एयरलाइंस की प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर अरुणिमा सिंह, सदस्य सुदीप, वाइल्ड लाइफ कंजरवेशन ट्रस्ट के एक्सपर्ट वेटनरी डॉ. हिमांशु जोशी सहित 8 सदस्यीय टीम ने डैम का मुआयना किया। इसमें सामने आया कि दो घड़ियालों के मुंह में जाल फंसा हुआ है। वहीं, डैम में जितने भी घड़ियाल हैं उन्हें भी रेस्क्यू किया जाएगा।
घड़ियाल को पकड़ने के लिए ये रही योजना
- टीम सुबह कलियासोत डैम पहुंची और घड़ियाल की लोकेशन लिया।
- टीम ने नावों की मदद से जाल बिछाया और घड़ियाल को पसंद आने वाली विशेष खाद्य सामग्री जाल में फेंकी गई।
- जब वह फंस गया तो उसे किनारे लाकर आंखों पर पट्टी डाली गई। उसके बाद बांस के बनाए स्ट्रेचर पर रखकर उसका वजन, नाप सहित रिकॉर्ड किया गया।
घड़ियालों के लिए मुफीद नहीं है डैम का पर्यावरण
टीम की वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बुधवार को देर रात तक बैठक चली। इसमें निर्णय लिया कि डैम से केवल घड़ियाल ही रेस्क्यू किए जाएंगे, क्योंकि डैम उनके लिए सुरक्षित नहीं है। घड़ियाल बहते पानी में ही रहते हैं। वहीं, टीम के सदस्यों ने वन विभाग के अधिकारियों को आश्वस्त किया कि डैम का पर्यावरण मगरमच्छों के अनुकूल है। इसलिए उन्हें वे रेस्क्यू नहीं करेंगे।
