- तत्कालीन उप राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने किया था शिलान्यास, तब मोतीलाल वोरा सीएम थे
- 2-3 दिसंबर 1984 की रात हुए इस भयावह हादसे में हुई थी हजारों लोगों की मौत, लाखों प्रभावित हुए थे
- अस्पताल अधीक्षक ने कहा- यहां विशेष वार्ड पहले से नहीं चल रहा था, अब मैं इसका संचालन शुरू कराऊंगा
Dainik Bhaskar
Dec 03, 2019, 11:01 AM ISTसुमित पांडेय, भोपाल. भोपाल गैस त्रासदी को 35 साल हो चुके हैं। 2-3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड केमिकल प्लांट से निकली जहरीली गैस से 24 घंटों में 3 हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। हजारों लोग अलग-अलग तरह की शारीरिक विसंगतियों का शिकार हुए थे। कई को फेफड़े संबंधी बीमारी हो गई थी तो कई जिंदगी भर के लिए विकलांग हो गए।
गैस के कहर से वह बच्चे भी नही बच सके जो उस वक्त गर्भ में थे। गैस पीड़ित महिलाओं के लिए सुल्तानिया अस्पताल में एक विशेष वार्ड बनाया जाना था। वार्ड बनाने को लेकर तत्कालीन सरकार कितनी गंभीर थी, इसका अंदाजा इससे लगता है कि तब के तत्कालीन उप राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा को बुलाया गया था। मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा और राज्यपाल केएम चांडी भी मौजूद थे। इसकी गवाही शिलान्यास पत्थर पर दर्ज उनके नाम दे रहे हैं। इन सभी अतिथियों ने नवंबर 1987 में विशेष वार्ड का शिलान्यास किया था।
झोपड़ी के नीचे दब गया शिलान्यास पत्थर
भोपाल में सुल्तानिया अस्पताल में खुलने वाले इस गैस पीड़ित महिला विशेष वार्ड का शिलान्यास पत्थर अब कपड़े सुखाने के काम आ रहा है। इसके आसपास झुग्गी बनी हैं। 32 साल में इस वार्ड को खुलवाने के लिए न तो प्रशासन और न ही सुल्तानिया अस्पताल प्रबंधन ने रुचि दिखाई। इस संबंध में जब अस्पताल अधीक्षक डॉ. आईडी चौरसिया से बात की गई तो उन्होंने कहा कि महिला गैस पीड़ितों के लिए बनने वाले विशेष वार्ड का संचालन मेरे यहां पदस्थ होने से पहले से नहीं हो रहा था। अब हम नए सिरे से इस पर काम शुरू करेंगे।
महिला पीड़ितों के लिए खोला जाना था
यूं तो शहर में गैस पीड़ितों के लिए सरकार ने कई अस्पताल खोले, जिसमें भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर सबसे अहम है। लेकिन इस भयानक हादसे के बाद सरकार ने महिला पीड़ितों के लिए एक पहल की और सुल्तानिया में एक विशेष वार्ड बनाने की घोषणा की थी। शिलान्यास भी हुआ, लेकिन विशेष वार्ड नहीं खुल पाया।
सरकार ने 3787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी
मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने गैस हादसे में 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी। हालांकि, अन्य अनुमान बताते हैं कि 8000 लोगों की मौत तो दो सप्ताहों के अंदर हो गई थी। और करीब 8000 लोग गैस से फैली संबंधित बीमारियों से मारे गए।
2006 में सरकार द्वारा दाखिल एक शपथ पत्र में माना गया था कि गैस रिसाव से करीब 5,58,125 लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए। जबकि आंशिक तौर पर प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या करीब 38,478 थी। 3900 तो बुरी तरह प्रभावित हुए एवं पूरी तरह अपंगता के शिकार हो गए।
मुझे कुछ दिन पहले ही इसकी जानकारी हुई
मुझे सुल्तानिया अस्पताल में पदस्थ हुए 4-5 महीने हुए हैं। मेरे यहां आने से पहले ही महिला गैस पीड़ितों के लिए विशेष वार्ड का संचालन नहीं हो रहा है। मुझे वार्ड के बारे में कुछ दिन पहले ही जानकारी हुई है। हम इसके लिए एक कमरा तैयार कर रहे हैं, जहां पर महिला गैस पीड़ितों के लिए विशेष वार्ड तैयार किया जाएगा और इसका संचालन शुरू करेंगे।