हनुमान जयंती : 96 भक्तों से भरी 66 क्विंटल वजनी 12 गाड़ी भगत ने एक मिनट में 50 मीटर तक खींची
बुरहानपुर | हनुमान जयंती पर शनिवार शाम 6.30 बजे। ढपलों की थाप पर भगत मुकेश वाघ घर से निकलकर हनुमानजी के मंदिर पहुंचे।...
Bhaskar News Network | Last Modified - Apr 01, 2018, 03:10 AM IST
बुरहानपुर | हनुमान जयंती पर शनिवार शाम 6.30 बजे। ढपलों की थाप पर भगत मुकेश वाघ घर से निकलकर हनुमानजी के मंदिर पहुंचे। जहां भोग लगाकर आशीर्वाद लेकर 96 भक्तों से भरी 66 क्विंटल वजनी 12 गाड़ी के आगे कमर और कंधे पर रस्सी बांधी। ठाकुर शिवकुमारसिंह प्रतिमा स्थल से फारेस्ट कॉलोनी डाकवाड़ी तक 50 मीटर तक 1 मिनट में गाड़ियां खींच दी। इसमें भगत के बगली महापौर अनिल भोसले बने, जो अंत तक भगत के साथ ढपलों की थाप पर दौड़े।
गुड़ी पड़वा से पोला पर्व तक मनता है उत्सव
भगत रामदास महाराज के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष के गुड़ी पड़वा से उत्सव शुरू होता है, जो कि चार महीने यानी पोला पर्व तक चलता है। इस बीच शहरभर में एक दर्जन से ज्यादा स्थानों पर उत्सव मनाया जाता है।
सिंधिया काल से शुरू हुआ उत्सव
इतिहासकार होशंग हवलदार के अनुसार सन् 1780 के आसपास सिंधिया काल से उत्सव शुरू हुआ। 12 गाड़ी खींचने की प्रथा खानदेश की है। शहर खानदेश की राजधानी भी रहा है। इसलिए ये 250 साल से आज भी जिंदा है। इससे पहले बड़े-बड़े पत्थर उठाने की स्पर्धा थी। कुछ समय बाद खाली बैल गाड़ी खींची जाने लगी। इसका आंकड़ा बढ़ता गया और ये 12 गाड़ी पर आकर ठहर गई।
12 गाड़ी दो बैलों का एक गाड़ा होता है।
01 गाड़े की लंबाई 5.30 फीट होती है।
01 गाड़े का वजन लगभग डेढ़ क्विंटल है।
12 गाड़ी तैयार होती है एक-दूसरे को बांधकर।
66 फीट तक लंबी एक 12 गाड़ी कहलाती है।
08 से 10 लोग खड़े रहते हैं प्रत्येक गाड़े पर।
50 मीटर तक भगत खींचकर ले जाता है।
01 से सवा मिनट लगता है जिसे खींचने में।
शक्ति व तपस्या की परीक्षा
शहर में कई विख्यात पहलवान रहे हैं जिनकी तपस्या की कठोर परीक्षा होती थी। इसके लिए आज भी ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं लेकिन अब ये पहलवानों तक समिति नहीं रहा है। अब दुबले-पतले भगत भी नाभि में शक्ति सिंचित कर गाड़ी खींच लेते हैं।
नॉलेज
आगे कब-कहां खींचेंगे गाड़ी
अगली 12 गाड़ी अक्षय तृतीय पर रास्तीपुरा, कड़वीशाला नाला क्षेत्र में अक्षय तृतीय के पड़वे पर सहित अन्य विशेष तिथियों पर पोला पर्व तक खींची जाएगी।
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भगत रामदास महाराज के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष के गुड़ी पड़वा से उत्सव शुरू होता है, जो कि चार महीने यानी पोला पर्व तक चलता है। इस बीच शहरभर में एक दर्जन से ज्यादा स्थानों पर उत्सव मनाया जाता है।
सिंधिया काल से शुरू हुआ उत्सव
इतिहासकार होशंग हवलदार के अनुसार सन् 1780 के आसपास सिंधिया काल से उत्सव शुरू हुआ। 12 गाड़ी खींचने की प्रथा खानदेश की है। शहर खानदेश की राजधानी भी रहा है। इसलिए ये 250 साल से आज भी जिंदा है। इससे पहले बड़े-बड़े पत्थर उठाने की स्पर्धा थी। कुछ समय बाद खाली बैल गाड़ी खींची जाने लगी। इसका आंकड़ा बढ़ता गया और ये 12 गाड़ी पर आकर ठहर गई।
12 गाड़ी दो बैलों का एक गाड़ा होता है।
01 गाड़े की लंबाई 5.30 फीट होती है।
01 गाड़े का वजन लगभग डेढ़ क्विंटल है।
12 गाड़ी तैयार होती है एक-दूसरे को बांधकर।
66 फीट तक लंबी एक 12 गाड़ी कहलाती है।
08 से 10 लोग खड़े रहते हैं प्रत्येक गाड़े पर।
50 मीटर तक भगत खींचकर ले जाता है।
01 से सवा मिनट लगता है जिसे खींचने में।
शक्ति व तपस्या की परीक्षा
शहर में कई विख्यात पहलवान रहे हैं जिनकी तपस्या की कठोर परीक्षा होती थी। इसके लिए आज भी ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं लेकिन अब ये पहलवानों तक समिति नहीं रहा है। अब दुबले-पतले भगत भी नाभि में शक्ति सिंचित कर गाड़ी खींच लेते हैं।
नॉलेज
आगे कब-कहां खींचेंगे गाड़ी
अगली 12 गाड़ी अक्षय तृतीय पर रास्तीपुरा, कड़वीशाला नाला क्षेत्र में अक्षय तृतीय के पड़वे पर सहित अन्य विशेष तिथियों पर पोला पर्व तक खींची जाएगी।
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