केंद्र ने बीटी कॉटन बीज के दाम 60 रुपए घटाए, अब 740 रुपए में मिलेगा एक पैकेट
ट्रैट शुल्क एक प्रकार की रायल्टी (शुल्क) होती है जो विभिन्न बीज कंपनियों को लाइसेंस होल्डर महिको, मानसेटों,...
Bhaskar News Network | Last Modified - Apr 17, 2018, 02:40 AM IST
ट्रैट शुल्क एक प्रकार की रायल्टी (शुल्क) होती है जो विभिन्न बीज कंपनियों को लाइसेंस होल्डर महिको, मानसेटों, वायोटेक लिमिटेड (एमएमबीएल) को चुकाना होता है।
पहले कब दर कम हुई
कपास बीज मूल्य नियंत्रण आदेश 2015 के तहत केंद्र सरकार ने पहली बार 2016 में दरें कम की थी। दानों को 830-1030 रुपए से कम कर 800 रुपए कर दिया गया था। प्रति पैकेट 163 रुपए की कीमत में लगभग 70 फीसदी की कमी की गई थी।
जहां पानी की पर्याप्त व्यवस्था हो, वहां पर आखातीज से शुरू होती है कपास की बुआई
ड्रिप में लगाए कपास, अच्छा होगा अंकुरण; पानी कम होगा खर्च
मप्र में गर्मी के कपास की बुआई का श्रीगणेश आखातीज (अक्षय तृतीया) से शुरू हो जाएगा। कपास लंबे समय की फसल होती है, इस कारण इसे पांच से छह बार सिंचाई देने की जरूरत होती है। प्रदेश के ऐसे भी कई स्थान है, जहां पानी की उपलब्धता कम है, इस कारण वे कपास नहीं लगा सकते हैं। ऐसे में किसान ड्रिप तकनीक की बदौलत कपास की बुआई कर सकते हैं। ड्रिप सिंचाई की सहायता से पौधों को घुलनशील खाद एवं कीटनाशकों की आपूर्ति की जा सकती है। प्रत्येक पौधे को उचित ढंग से पर्याप्त जल व उर्वरक उपलब्ध होने के कारण पैदावार में बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा कपास के बीज का अंकुरण भी अच्छा होगा।
इसलिए अंकुरण जरूरी
यदि किसान कपास में बेहतर पैदावार चाहते हैं तो उनका अंकुरण होना जरूरी है। ड्रिप पद्धति से खेती करने पर नमी अपेक्षानुरूप मिलेगी। बीज अच्छा अंकुरित होगा, पौध संख्या भी अच्छी निकलेगी। पौधा सूखेगा नहीं। ऐसे में पैदावार भी बढ़ेगी। इसके अलावा अच्छे अंकुरण और विकास के लिए 10 किलोग्राम रुटोज+ 10 किलोग्राम धनजाएम गोल्ड या 16 किलोग्राम बायोविटा दानेदार प्रति एकड़ बुआई के समय आधारीय खाद के साथ दें।
फव्वारा सिंचाई से होगी खाद की बचत, दोगुना होगा उत्पादन
सिंचाई के लिए कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा पानी का प्रयोग किया जाता है, जिसके कारण लगातार भूजल स्तर गिरता जा रहा है। जहां सतही सिंचाई विधि जल की खपत के साथ-साथ अन्य समस्याएं भी लेकर आता है, वहीं ड्रिप सिंचाई प्रणाली न सिर्फ पानी की बचत करती है, बल्कि उर्वरकों को सीधे पौधों तक पहुंचाकर अच्छा उत्पादन भी देती है। ड्रिप प्रणाली सिंचाई की उन्नत विधि है, जिसके प्रयोग से सिंचाई जल की पर्याप्त बचत की जा सकती है।
ये होता है फर्टिगेशन
विशेषज्ञों की माने तो ड्रिप सिंचाई में उर्वरीकरण (फर्टिगेशन) की अहम भूमिका होती है। फर्टिगेशन दो शब्दों फर्टिलाइजऱ अर्थात् उर्वरक और इरिगेशन अर्थात् सिंचाई से मिलकर बना है। ड्रिप सिंचाई में जल के साथ-साथ उर्वरकों को भी पौधों तक पहुंचाना फर्टिगेशन कहलाता है। ड्रिप सिंचाई में जिस प्रकार ड्रिपरों के द्वारा बूंद-बूंद कर के जल दिया जाता है, उसी प्रकार रासायनिक उर्वरकों को सिंचाई जल में मिश्रित करके उर्वरक ड्रिपरों द्वारा सीधे पौधों के पास पहुंचाया जा सकता है।
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कपास बीज मूल्य नियंत्रण आदेश 2015 के तहत केंद्र सरकार ने पहली बार 2016 में दरें कम की थी। दानों को 830-1030 रुपए से कम कर 800 रुपए कर दिया गया था। प्रति पैकेट 163 रुपए की कीमत में लगभग 70 फीसदी की कमी की गई थी।
जहां पानी की पर्याप्त व्यवस्था हो, वहां पर आखातीज से शुरू होती है कपास की बुआई
ड्रिप में लगाए कपास, अच्छा होगा अंकुरण; पानी कम होगा खर्च
मप्र में गर्मी के कपास की बुआई का श्रीगणेश आखातीज (अक्षय तृतीया) से शुरू हो जाएगा। कपास लंबे समय की फसल होती है, इस कारण इसे पांच से छह बार सिंचाई देने की जरूरत होती है। प्रदेश के ऐसे भी कई स्थान है, जहां पानी की उपलब्धता कम है, इस कारण वे कपास नहीं लगा सकते हैं। ऐसे में किसान ड्रिप तकनीक की बदौलत कपास की बुआई कर सकते हैं। ड्रिप सिंचाई की सहायता से पौधों को घुलनशील खाद एवं कीटनाशकों की आपूर्ति की जा सकती है। प्रत्येक पौधे को उचित ढंग से पर्याप्त जल व उर्वरक उपलब्ध होने के कारण पैदावार में बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा कपास के बीज का अंकुरण भी अच्छा होगा।
इसलिए अंकुरण जरूरी
यदि किसान कपास में बेहतर पैदावार चाहते हैं तो उनका अंकुरण होना जरूरी है। ड्रिप पद्धति से खेती करने पर नमी अपेक्षानुरूप मिलेगी। बीज अच्छा अंकुरित होगा, पौध संख्या भी अच्छी निकलेगी। पौधा सूखेगा नहीं। ऐसे में पैदावार भी बढ़ेगी। इसके अलावा अच्छे अंकुरण और विकास के लिए 10 किलोग्राम रुटोज+ 10 किलोग्राम धनजाएम गोल्ड या 16 किलोग्राम बायोविटा दानेदार प्रति एकड़ बुआई के समय आधारीय खाद के साथ दें।
फव्वारा सिंचाई से होगी खाद की बचत, दोगुना होगा उत्पादन
सिंचाई के लिए कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा पानी का प्रयोग किया जाता है, जिसके कारण लगातार भूजल स्तर गिरता जा रहा है। जहां सतही सिंचाई विधि जल की खपत के साथ-साथ अन्य समस्याएं भी लेकर आता है, वहीं ड्रिप सिंचाई प्रणाली न सिर्फ पानी की बचत करती है, बल्कि उर्वरकों को सीधे पौधों तक पहुंचाकर अच्छा उत्पादन भी देती है। ड्रिप प्रणाली सिंचाई की उन्नत विधि है, जिसके प्रयोग से सिंचाई जल की पर्याप्त बचत की जा सकती है।
ये होता है फर्टिगेशन
विशेषज्ञों की माने तो ड्रिप सिंचाई में उर्वरीकरण (फर्टिगेशन) की अहम भूमिका होती है। फर्टिगेशन दो शब्दों फर्टिलाइजऱ अर्थात् उर्वरक और इरिगेशन अर्थात् सिंचाई से मिलकर बना है। ड्रिप सिंचाई में जल के साथ-साथ उर्वरकों को भी पौधों तक पहुंचाना फर्टिगेशन कहलाता है। ड्रिप सिंचाई में जिस प्रकार ड्रिपरों के द्वारा बूंद-बूंद कर के जल दिया जाता है, उसी प्रकार रासायनिक उर्वरकों को सिंचाई जल में मिश्रित करके उर्वरक ड्रिपरों द्वारा सीधे पौधों के पास पहुंचाया जा सकता है।
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