फर्जीवाड़ा रोकने के लिए नापतौल विभाग खुद बनाएगा प्लेट
वजन मशीनों पर लगने वाली प्लेटें अब नापतौल विभाग ही तैयार कराएगा। इन पर मप्र शासन का लोगो रहेगा। इसी से असली-नकली...
Bhaskar News Network | Last Modified - Apr 17, 2018, 03:40 AM IST
वजन मशीनों पर लगने वाली प्लेटें अब नापतौल विभाग ही तैयार कराएगा। इन पर मप्र शासन का लोगो रहेगा। इसी से असली-नकली सील की पहचान होगी। सील का पूरा रिकॉर्ड ऑनलाइन सॉफ्टवेयर में मेंटेन होगा। इससे कभी भी मशीन की पूरी कुंडली सामने आ सकेगी।
वजन मशीनों पर अब एक जैसी प्लेट और सील नजर आएगी। नापतौल विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। विभाग ऐसी प्लेटें बनवा रहा है, जिन पर मशीन का निर्माण वर्ष, मॉडल नंबर, मैन्यूफैक्चर का नाम, अधिकतम और न्यूनतम क्षमता और कैटेगरी का ब्योरा रहेगा।
प्लेट के नीचे फोन नंबर भी रहेगा, जिस पर वेरिफिकेशन से जुड़ी शिकायत की जा सकेगी। नई प्लेटें अगस्त से चलन में आएंगी। मौजूदा व्यवस्था में नापतौल विभाग वजन मशीनों के केवल सत्यापन प्रमाण-पत्र जारी करता है। प्लेट और उन पर सील लगाने का काम मशीन सुधारने वाले करते हैं। विभाग तक व्यापारियों से ऐसी जानकारी पहुंची है कि सील में फर्जीवाड़ा हो रहा है।
मशीन सुधारने वालों ने अपने नाम की प्लेटें बना ली हैं। उन पर नकली सील लगाकर विभाग को राजस्व की चपत लगाई जा रही है। इसीलिए अब विभाग ने खुद ही प्लेट बनाकर सील लगाने का फैसला किया है।
नाप-तौल में गड़बड़ी रोकने की कवायद, सील पर रहेगा मप्र का लोगो, पूरा रिकॉर्ड ऑनलाइन सॉफ्टवेयर से होगा मेंटेन
पकड़ में नहीं आता फर्जीवाड़ा
पहले मशीनों पर रांगे की प्लेट लगती थी। वह बाहर नहीं निकलती थी। फिर मशीन पर होल कर तार डालकर प्लेट लगाई जाने लगी। समय के साथ यह व्यवस्था भी बंद हो गई। अब मशीन सुधारने वाले खुद ही प्लेट बनाते हैं। उन पर ऐसी सील लगाई जाती है कि फर्जीवाड़ा पकड़ में नहीं आता है। इससे सरकारी राजस्व का नुकसान हो रहा है।
विभाग को लग रही है चपत
अफसरों के मुताबिक मशीन सुधारने वाले मशीनों की संख्या कम बताकर प्रमाण-पत्र जारी करा लेते हैं। बाकी मशीनों की सिर्फ प्लेट बेच दी जाती हैं। उदाहरण के लिए मशीन सुधारने वाले के पास पांच मशीनें वेरिफिकेशन के लिए आईं। उसने विभाग को चार मशीनें ही सत्यापन के लिए दीं। इस तरह सिर्फ चार मशीनों की फीस ही जमा कराई। पांचवीं मशीन पर प्लेट लगाकर व्यापारी से पैसा वसूल कर लिया, मगर उसके वेरिफिकेशन की राशि विभाग को नहीं मिली।
देना होगी बिल की स्कैन कॉपी
मशीन सुधारने वाले फिलहाल जानकारी हाथ से टाइप करते हैं। इसमें फर्जीवाड़ा होता है। सॉफ्टवेयर पर मनमाफिक आंकड़े भरे जाते हैं। इसीलिए अब विभाग बिलों की स्केंड कॉपी लेगा। यानी जो बिल व्यापारी को दिया गया है, वही विभागीय रिकॉर्ड में जमा कराना होगा।
हो सकेगी स्टाफ की पुष्टि
अफसरों का कहना है कि प्लेट पर लिखे कार्यालय के फोन नंबर से व्यापारी यह पुष्टि कर पाएंगे कि मशीनों की जांच करने गए दल में सरकारी कर्मचारी-अफसर हैं या मशीन सुधारने वाले के लोग। ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें मशीन सुधारने वालों ने व्यापारियों को डरा-धमकाकर उनसे मोटी रकम वसूल कर ली।
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प्लेट के नीचे फोन नंबर भी रहेगा, जिस पर वेरिफिकेशन से जुड़ी शिकायत की जा सकेगी। नई प्लेटें अगस्त से चलन में आएंगी। मौजूदा व्यवस्था में नापतौल विभाग वजन मशीनों के केवल सत्यापन प्रमाण-पत्र जारी करता है। प्लेट और उन पर सील लगाने का काम मशीन सुधारने वाले करते हैं। विभाग तक व्यापारियों से ऐसी जानकारी पहुंची है कि सील में फर्जीवाड़ा हो रहा है।
मशीन सुधारने वालों ने अपने नाम की प्लेटें बना ली हैं। उन पर नकली सील लगाकर विभाग को राजस्व की चपत लगाई जा रही है। इसीलिए अब विभाग ने खुद ही प्लेट बनाकर सील लगाने का फैसला किया है।
नाप-तौल में गड़बड़ी रोकने की कवायद, सील पर रहेगा मप्र का लोगो, पूरा रिकॉर्ड ऑनलाइन सॉफ्टवेयर से होगा मेंटेन
पकड़ में नहीं आता फर्जीवाड़ा
पहले मशीनों पर रांगे की प्लेट लगती थी। वह बाहर नहीं निकलती थी। फिर मशीन पर होल कर तार डालकर प्लेट लगाई जाने लगी। समय के साथ यह व्यवस्था भी बंद हो गई। अब मशीन सुधारने वाले खुद ही प्लेट बनाते हैं। उन पर ऐसी सील लगाई जाती है कि फर्जीवाड़ा पकड़ में नहीं आता है। इससे सरकारी राजस्व का नुकसान हो रहा है।
विभाग को लग रही है चपत
अफसरों के मुताबिक मशीन सुधारने वाले मशीनों की संख्या कम बताकर प्रमाण-पत्र जारी करा लेते हैं। बाकी मशीनों की सिर्फ प्लेट बेच दी जाती हैं। उदाहरण के लिए मशीन सुधारने वाले के पास पांच मशीनें वेरिफिकेशन के लिए आईं। उसने विभाग को चार मशीनें ही सत्यापन के लिए दीं। इस तरह सिर्फ चार मशीनों की फीस ही जमा कराई। पांचवीं मशीन पर प्लेट लगाकर व्यापारी से पैसा वसूल कर लिया, मगर उसके वेरिफिकेशन की राशि विभाग को नहीं मिली।
देना होगी बिल की स्कैन कॉपी
मशीन सुधारने वाले फिलहाल जानकारी हाथ से टाइप करते हैं। इसमें फर्जीवाड़ा होता है। सॉफ्टवेयर पर मनमाफिक आंकड़े भरे जाते हैं। इसीलिए अब विभाग बिलों की स्केंड कॉपी लेगा। यानी जो बिल व्यापारी को दिया गया है, वही विभागीय रिकॉर्ड में जमा कराना होगा।
हो सकेगी स्टाफ की पुष्टि
अफसरों का कहना है कि प्लेट पर लिखे कार्यालय के फोन नंबर से व्यापारी यह पुष्टि कर पाएंगे कि मशीनों की जांच करने गए दल में सरकारी कर्मचारी-अफसर हैं या मशीन सुधारने वाले के लोग। ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें मशीन सुधारने वालों ने व्यापारियों को डरा-धमकाकर उनसे मोटी रकम वसूल कर ली।
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(News in Hindi from Dainik Bhaskar)
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