प्रदेश के विभिन्न कार्यालयों में पदस्थ अधिकारी जो लोकायुक्त की कार्रवाई होने के बावजूद पदों पर बने हुए हैं। ऐसे 282 अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन नहीं चलाने पर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के मप्र शासन के प्रमुख सचिव, सामान्य प्रशासन, विधि विभाग को नोटिस जारी कर 18 मार्च तक जवाब मांगा है। आरटीआई एक्टिविस्ट अभय चौपड़ा की याचिका पर हाईकोर्ट इंदौर से जारी नोटिस के बाद बुधवार को प्रेसवार्ता में चौपड़ा ने मामले की जानकारी देते हुए बताया याचिका की उन्होंने खुद पैरवी की है। उच्च न्यायालय की डबल बैंच के न्यायाधीश एस.सी. शर्मा व वीरेंद्रसिंह की खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत याचिका क्र. 2312/19 मंजूर की गई है।
सरकार के पास आय से अधिक संपत्ति के मामले में फंसे 230 और स्थानीय निकायों से जुड़े 50 से ज्यादा मामले लंबित हैं। लगभग दो दर्जन मामले तो ऐसे है, जिसमें आरोपी सालों पहले रिटायर भी हो चुके हैं। चौपड़ा के अनुसार लोकायुक्त ने पूर्व सरकार को पिछले 10 सालों में 321 भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करने के लिए चिट्ठी लिखी थी। 29 नवंबर 2018 को लोकायुक्त की रिपोर्ट के मुताबिक 170 भ्रष्ट कर्मचारियों-अफसरों के खिलाफ तत्कालीन सरकार ने कार्रवाई नहीं की। अनुशंसित 321 प्रकरणों में से मात्र 145 मामलों में ही कार्रवाई शुरू हो सकी। हालांकि उसमें भी कोई अंतिम निर्णय नहीं हुआ। इस मुद्दे पर सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा 450 पृष्ठों की फाइल आरटीआई में मांगी गई और इस आधार पर प्रस्तुत याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने शासन को नोटिस जारी कर 18 मार्च 2019 को जवाब प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं।
कई मामलों की 13 साल में नहीं मिली शासन से अनुमति
चौपड़ा ने बताया लोकायुक्त कार्रवाई में फंसे सरकारी कर्मचारियों की अभियोजन स्वीकृति सालों से राज्य सरकार द्वारा लंबित रखी जा रही है। वर्ष 2013 में सरकार ने अभियोजन स्वीकृति के लिए नया सर्कुलर जारी किया था, इसमें लाॅ डिपार्टमेंट संबंधित विभाग के साथ मत भिन्नता की स्थिति में कैबिनेट को भी प्रक्रिया में शामिल किया था। नए सर्कुलर के बाद 2013 से अभियोजन स्वीकृति के मामलों में फैसले ही नहीं हो पा रहे हैं। चौपड़ा ने न्यायालय को अवगत कराया कि लोकायुक्त मामलों में न्यायालय में चालान पेश करने के लिए अनुमति देने की प्रक्रिया 3 माह में पूरी करना होती है। लेकिन ऐसे कई मामले हैं, जिसमें 13 साल में भी शासन ने अनुमति नहीं दी।