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उदयपुर (राजस्थान). गहलोत सरकार देहदान को बढ़ावा देने के लिए राज्य के अस्पतालों और कॉलेजों में महर्षि दधीचि की अस्थिदान की कथा सुनाएगी। इसके लिए पूरे राज्य में जगह-जगह इससे जुड़े पोस्टर लगाए जाएंगे। इस बारे में चिकित्सा विभाग ने आदेश जारी किए हैं। सरकार ने 6 सितंबर को महर्षि दधीचि की जयंती पर कॉलेजों और अस्पतालों में सामूहिक प्रार्थना सभाएं करने को कहा है।
चिकित्सा विभाग ने आदेश में अस्पतालों में चयनित मरीजों के परिजनों को महर्षि दधीचि का वृत्तांत सुनाने को कहा है। ताकि लोग देहदान के महत्व को समझ सकें।
राज्य में 613 लोगों ने देहदान किया : प्रदेश में अभी तक सिर्फ 613 लोगों ने ही देहदान किया है। www.rnos.org पर करीब 300 ऐसे लोगों ने रजिस्टर किया है, जिन्हें किडनी या दूसरे अंगों की जरूरत है। इधर चिकित्सा जगत में इस आदेश की खूब चर्चा है, क्योंकि सनातन धर्म के प्रतीकों के इस तरह इस्तेमाल के आरोप अभी तक भाजपा सरकार पर ही लगाए जाते रहे हैं।
मानव देह से मेडिकल के छात्र कर सकेंगे अध्ययन
मानव देह का चिकित्सा क्षेत्र के छात्रों को लाभ मिलता है। इससे मेडिकल छात्र पढ़ाई कर डॉक्टर बनते हैं। एमबीबीएस करने वाले छात्रों को शरीर की संरचना की सूक्ष्म जानकारी करने के लिए पार्थिव शरीर की आवश्यकता होती है। इसके लिए मेडिकल विभाग और सरकारें देहदान करने के लिए जागरुक करती हैं।
10 छात्रों के लिए आवश्यक है एक बॉडी
मेडिकल पढ़ाई के लिए वैसे तो 10 विद्यार्थियों पर एक बॉडी की आवश्यकता होती है। लेकिन, देहदान करने में लोग संकोच करते हैं, इसलिए पर्याप्त बॉडी नहीं मिल पाती हैं। ऐसे में पढ़ाई के लिए छात्रों की संख्या दोगुना तक बढ़ाई भी जा सकती है।
2 वर्ष तक संरक्षित रहती है मानव देह
मानव देह पर छात्र दो साल तक अध्ययन कर सकते हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक, देह प्राप्त होते ही पहले इसे फॉर्मलिन केमिकल में छोड़ दिया जाता है। 1 माह बाद शव पूरी तरह से संरक्षित हो जाता है, जिसके बाद 2 साल तक छात्र इस पर रिसर्च करते हैं। देह की दोनों ओर की संरचना एक समान होती है। इसलिए आधी देह का प्रयोग प्रथम वर्ष और आधी का दूसरे वर्ष उपयोग किया जाता है। इसके बाद मांसपेशियां गल जाती हैं, तो शव को कब्रगाह में दफना दिया जाता है।
महर्षि दधीचि ने इंद्रलोक को बचाने के लिए देहदान की थी: महर्षि दधीचि के पिता एक महान ऋषि अथर्वा जी थे और माता का नाम शांति था। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिव की भक्ति में व्यतीत किया था। वे वेद-शास्त्रों के ज्ञाता, परोपकारी और बहुत दयालु थे। एक बार राक्षस वृत्रासुर ने देवलोक पर कब्जा कर लिया। इंद्र और देवताओं ने देवलोक को छोड़ दिया। तब ब्रह्मा ने उन्हें बताया कि वृत्रासुर का अंत महर्षि दधीचि की आस्थियों से बने अस्त्र से ही संभव है। इसलिए उनके पास जाकर उनकी अस्थियां मांगो। इससे इंद्र पसोपेश में पड़ गए। फिर इंद्र महर्षि दधीचि के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। महर्षि ने कहा कि लोकहित के लिए मैं तुम्हें अपना शरीर देता हूं। बाद में उनकी अस्थियों से बने वज्र से इंद्र ने वृत्रासुर को मार दिया।
1) राज्य में 613 लोगों ने ही देहदान किया है
प्रदेश में अभी तक सिर्फ 613 लोगों ने ही स्वैच्छिक देहदान किया है। प्रदेश में 300 मरीज तो किडनी व अंग प्रत्यारोपण की आस में जिंदगी के लिए जूझ रहे हैं, जो www.rnos.org पर रजिस्टर्ड हैं।
3) राज्य में 613 लोगों ने ही देहदान किया है
प्रदेश में अभी तक सिर्फ 613 लोगों ने ही स्वैच्छिक देहदान किया है। प्रदेश में 300 मरीज तो किडनी व अंग प्रत्यारोपण की आस में जिंदगी के लिए जूझ रहे हैं, जो www.rnos.org पर रजिस्टर्ड हैं।
एक व्यक्ति के अंगदान से पांच लोगों को नया जीवन मिल सकता है। रेटिना, कॉर्निया, लीवर, किडनी, हार्ट, पैंक्रियाज जैसे अंगों को प्रत्यारोपित कर दूसरे जरूरतमंद लोगों को नई जिंदगी दी जा सकती है। अंगदान ब्रेनडेड की स्थिति में ही किया जा सकता है। सामान्य मौत पर अंगदान संभव नहीं है।
एक व्यक्ति के अंगदान से पांच लोगों को नया जीवन मिल सकता है। रेटिना, कॉर्निया, लीवर, किडनी, हार्ट, पैंक्रियाज जैसे अंगों को प्रत्यारोपित कर दूसरे जरूरतमंद लोगों को नई जिंदगी दी जा सकती है। अंगदान ब्रेनडेड की स्थिति में ही किया जा सकता है। सामान्य मौत पर अंगदान संभव नहीं है।
चिकित्सा जगत में इस आदेश की चर्चा जोरशोर से हो रही है, क्योंकि सनातन धर्म के प्रतीकों के इस तरह इस्तेमाल के आरोप अभी तक भाजपा सरकार पर ही लगाए जाते रहे हैं। गहलोत सरकार प्रदेश भर में पोस्टर लगवाकर इसे राज्यव्यापी अभियान बना रही है।
चिकित्सा जगत में इस आदेश की चर्चा जोरशोर से हो रही है, क्योंकि सनातन धर्म के प्रतीकों के इस तरह इस्तेमाल के आरोप अभी तक भाजपा सरकार पर ही लगाए जाते रहे हैं। गहलोत सरकार प्रदेश भर में पोस्टर लगवाकर इसे राज्यव्यापी अभियान बना रही है।
सुखाड़िया विश्वविद्यालय में संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो. नीरज शर्मा बताते हैं कि महर्षि दधीचि के पिता ऋषि अथर्वा और मां शांति थीं। ऋषि दधीचि ने तपस्या से शरीर को कठोर बना लिया था। एक बार वृत्रासुर के भय से इन्द्र सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ मारे-मारे फिरने लगे। वे व्यथा बताने पहुंचे तो ब्रह्मा ने उन्हें ऋषि दधीचि के पास जाने की सलाह दी।
सुखाड़िया विश्वविद्यालय में संस्कृत के विभागाध्यक्ष प्रो. नीरज शर्मा बताते हैं कि महर्षि दधीचि के पिता ऋषि अथर्वा और मां शांति थीं। ऋषि दधीचि ने तपस्या से शरीर को कठोर बना लिया था। एक बार वृत्रासुर के भय से इन्द्र सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ मारे-मारे फिरने लगे। वे व्यथा बताने पहुंचे तो ब्रह्मा ने उन्हें ऋषि दधीचि के पास जाने की सलाह दी।
ऋषि की देह शिव के वरदान स्वरूप मजबूत थी। देवताओं की विनती पर महर्षि ने इंद्र को अपनी देहदान कर दी थी। महर्षि की हड्डियों से वज्र बनाकर इंद्र ने वृत्रासुर का वध कर विजय प्राप्त की थी।
ऋषि की देह शिव के वरदान स्वरूप मजबूत थी। देवताओं की विनती पर महर्षि ने इंद्र को अपनी देहदान कर दी थी। महर्षि की हड्डियों से वज्र बनाकर इंद्र ने वृत्रासुर का वध कर विजय प्राप्त की थी।
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