1979 का वक्त, लगातार एक हफ्ते हुई बारिश से मच्छू डैम टूट गया। इसके बाद मोरबी में चारों तरफ ऐसा सैलाब आया कि 2000 लोग डूब गए। इस हादसे का गवाह थीं 19 साल की मुमताज। उन्होंने अपने दुपट्टे से 4 लोगों की जान बचाई थी।
4 दिन पहले हुए मोरबी पुल हादसे के वक्त भी मुमताज मौजूद थीं, पर इस बार किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। मुमताज की जान चली गई। उनकी बहू और पोता भी डूब गए।मुमताज के बेटे ने उनकी बहादुरी और इंसानियत की कहानी बताई। डैम हादसे की वो यादें भी साझा कीं, जो अक्सर उनकी मां उन्हें बताती थीं।
बेटे की जुबानी मां के हौसले की कहानी...
मोरबी पुल हादसे में उनके बेटे तारिक, मुमताज के साथ-साथ अपनी पत्नी शबाना और बेटे अशहद को भी खो चुके हैं। ऑटो चलाना तारिक का पेशा है। वो कहते हैं- पुल हादसे में सबको खो दिया। इसका मुआवजा नहीं चाहिए। इंसाफ चाहिए। दोषियों को सजा दी जाए।
तारिक ने बताया, "11 अगस्त 1979 को मच्छू बांध टूटने से एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। मेरी मां मुमताज की नई-नई शादी हुई थी। लगातार बारिश होने से मच्छू डैम ओवरफ्लो हो गया था। दोपहर सवा तीन बजे डैम टूट गया और 15 मिनट में ही पूरा शहर पानी में डूब गया था। दो घंटे के अंदर मकान और इमारतें जमींदोज होने लगीं। लोगों को संभलने का मौका भी नहीं मिला था। मां ही मुझे इस हादसे की कहानियां सुनाया करती थीं। उन्होंने बताया कि डूब चुके शहर में उन्होंने अपने दुपट्टे से चार लोगों को बचाया था।"
मां की बहादुरी पर हर किसी को फख्र था
तारिक कहते हैं, "मां के रिश्तेदारों को उन पर फख्र था। उनकी बहादुरी के हर जगह चर्चे होते थे। जब डैम फूटा था तो मां और मेरे अब्बा हबीब घर की छत पर चढ़ गए। 3 दिन तक वहीं रुके और हालात संभलने का इंतजार करते रहे। जब नदी का पानी उतरा तब वे नीचे आए। इस हादसे ने उन्हें आर्थिक रूप से तोड़ दिया था। इससे उबरने में मां-बाप को बहुत लंबा समय लग गया था।"
मोरबी के जिस पुल के टूटने से मुमताज की जान गई, वह पुल 143 साल पहले मोरबी के राजा वाघजी राव ने 1879 में बनवाया था। ब्रिज की लंबाई 765 फुट और चौड़ाई 4 फुट थी। पुल का निर्माण मोरबी के राजा प्रजावत्सल वाघजी ठाकोर की रियासत के दौरान किया गया था। मोरबी ब्रिज के जरिए ही राजा राजमहल से राज राज दरबार तक जाते थे।
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