एक ठग चार महीने से खुद को पीएमओ का एडिशनल सेक्रेटरी बताकर सरकार की सारी सुविधाएँ लेता रहा। जेड प्लस सुरक्षा भी पा गया। बुलेट प्रूफ़ एसयूवी भी हथिया ली और सरकारी अफ़सरों पर धौंस जमाता रहा। आख़िर पकड़ा गया। फ़िलहाल न्यायिक हिरासत में है। है गुजरात का और नाम है किरण पटेल।
सवाल यह उठता है कि चार महीने तक उससे किसी ने परिचय पत्र नहीं माँगा, आई कॉर्ड नहीं देखा और सब के सब उसकी बातें मानते गए, उसे तमाम सुविधाएँ भी उपलब्ध कराते गए, क्यों? अक्टूबर- नवम्बर 2022 से वह अफ़सर के तौर पर सक्रिय था, मार्च में पकड़ा गया। तब तक हमारा ख़ुफ़िया तंत्र क्या कर रहा था? क़द - काठी ठीक -ठाक थी और दिखने में भी रौबदार। लेकिन क्या किसी भी राज्य का प्रशासन, पुलिस, किसी को भी केवल क़द- काठी देखकर अफ़सर माने लेते हैं?
कश्मीर में वह ठग जाने कितने ख़ुफ़िया राज इकट्ठा कर गया होगा, कितनी सरकारी फ़ाइलें उसने देख ली होंगी, कोई नहीं जानता। जम्मू- कश्मीर में पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से उसने अफ़सरों के साथ कई मीटिंग्स भी कीं। तब भी भाई लोगों ने उसे पहचाना नहीं। उससे कोई पूछताछ नहीं की।
अगर वो सही में पाकिस्तान या किसी अन्य देश का जासूस होता तो क्या होता? कितनी संवेदनशील जानकारियाँ वो दूसरे देशों को भेज सकता था! वैसे तो हम बात करते हैं आंतरिक सुरक्षा की। सजग ख़ुफ़िया तंत्र की, लेकिन इस तरह की घटनाएँ जब सामने आती हैं तो पता चलता है, हमारे अफ़सर कितने सजग हैं, कितने सचेत हैं!
इतना ही नहीं, वह जब भी जम्मू- कश्मीर के दौरे पर जाता, अपने ट्विटर हैंडल पर वहाँ के वीडियो भी पोस्ट करता रहा। कई वीडियो पड़े हैं। उनसे भी किसी ने अंदाज़ा नहीं लगाया। आख़िर पीएमओ का अफ़सर ट्विटर हैंडल पर वीडियो क्यों डालेगा भला?
हालाँकि ख़ुफ़िया एजेंसियों ने ही इस ठग के बारे में जम्मू- कश्मीर पुलिस को अलर्ट भेजा और तब जाकर वहाँ की सीआईडी ने श्रीनगर एयरपोर्ट से गिरफ्तार किया। यह गिरफ़्तारी दस दिन पहले ही हो चुकी थी लेकिन इसे उजागर अब किया गया है। लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसी को अगर चार महीने बाद सुराग लगे तो फिर ऐसी एजेंसियों का मतलब ही क्या रह जाएगा? निश्चित तौर पर इस ठग ने सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियों की सारी पोल खोलकर रख दी है।
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