चुनावी सरगर्मी शुरू हो चुकी है। ख़ासकर, मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में। इनमें भी राजस्थान की सक्रियता कुछ ज़्यादा ही है। आप और ओवेसी ने अभी से ताल ठोक दी है। ओवेसी बीस-तीस सीटों पर और आप पार्टी राजस्थान की सभी सीटों पर चुनाव लडने की योजना बना चुकी है।
दरअसल, ये दोनों ही पार्टी राजनीति में वोट कटुवा का काम करती हैं। इन्हें खुद को ज़्यादा कुछ नहीं मिलता। दूसरी बड़ी पार्टियों को ये अच्छा- ख़ासा नुक़सान और फ़ायदा करवाती हैं। अगर आप को याद हो तो गुजरात में यही हुआ था। ज़ोर- शोर से आप पार्टी गुजरात के चुनाव मैदान में उतरी थी। खूब हल्ला मचाया। खूब पब्लिसिटी पाई। आप पार्टी को आख़िरकार ज़्यादा कुछ नहीं मिला लेकिन कांग्रेस की खाट खड़ी हो गई और भाजपा की पौ बारह। इतिहास में गुजरात की किसी पार्टी को जितनी सीटें नहीं मिलीं, उतनी पर भाजपा की विजय हुई।
ये गुजरात वाला कॉम्बिनेशन शायद भारतीय राजनीति में लम्बा चलने वाला है। आप पार्टी अब लगता है हर प्रदेश के चुनाव में आ धमकेगी और कांग्रेस की बची- खुची सीटों को भी खा जाने का काम करेगी। दरअसल, आप पार्टी के आ जाने से चुनाव पेचीदा होता नहीं है, बनाया जाता है। बताया जाता है।
हवा इस तरह बनाई जाती है जैसे सरकार अब आप पार्टी की ही बनने वाली है। नजीजे जब आते हैं तो पता चलता है ज़्यादातर सीटों पर आप पार्टी के प्रत्याशियों की ज़मानत तक ज़ब्त हो गई है। तो फिर सवाल ये उठता है कि आप के होने से किसी का भारी नुक़सान या किसी का भारी फ़ायदा कैसे होता है?
वास्तव में हज़ार से कम वोटों से जिन सीटों पर हार या जीत होती है, उनके नतीजे प्रभावित करने में आप पार्टी माहिर है। उन कम अंतर की जीत या हार वाली सीटों का फ़ैसला आप पार्टी या ओवेसी की उपस्थिति के कारण बदल जाता है। मज़े की बात यह है कि इसका नुक़सान कांग्रेस के हिस्से में ही आता है। भाजपा को इससे कोई नुक़सान नहीं होता।
यही वजह है कि इन छोटी पार्टियों की उपस्थिति भाजपा के लिए हमेशा फ़ायदेमंद साबित होती है। राजनीति में अब यही खेल चल रहा है। कांग्रेस के पास चुनावी फ़ण्डे कम ही रह गए हैं। राजनीति के मैदान में ऐसे खिलाड़ी हैं ही नहीं जो अपनी उपस्थिति से भाजपा को गच्चा दे सकें। यह सब वोट बैंक की तासीर पर निर्भर करता है। कांग्रेस के वोट बैंक की तासीर आप और ओवेसी के वोट बैंक से काफ़ी मिलती है। इसलिए ये दोनों कांग्रेस के ही वोट काटती हैं। भाजपा के नहीं।
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