स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी पर प्रतिबंध लगा तो पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI बना लिया गया। लम्बी-चौड़ी धरपकड़ के बाद अब PFI पर प्रतिबंध लगा दिया गया है तो कल को हो सकता है कोई और फ्रंट वजूद में आ जाए। सरकार को चाहिए कि इस तरह की देश विरोधी, संप्रदाय विरोधी गतिविधियों को जड़ से खत्म करने की योजना बनाए।
इस बीच ताजा जाँच और कार्रवाई में कुछ खुलासे ऐसे हुए हैं, जो आँखें खोल देने वाले हैं। PFI की गतिविधियाँ और काम करने का ढंग सिमी से एकदम अलग रहा। कहते हैं PFI ने छोटे-छोटे लोगों को बड़ा पदाधिकारी बनाया। ये छोटे लोग वे थे जो झाड़ू लगाते हैं। इलेक्ट्रीशियन हैं। प्लंबर हैं। कबाड़ी या ड्राइवर हैं। कुल मिलाकर जिनकी घर-घर में पहुँच होती है, उन्हें पदाधिकारी बनाकर यह संगठन अपना उद्देश्य पूरा करने में लगा हुआ था।
हो सकता है पाँच साल के प्रतिबंध के कारण इसकी गतिविधियाँ कुछ कम पड़ जाएं, लेकिन रोकना मुश्किल जान पड़ता है। घरों में काम करने वालों को आखिर कोई कैसे रोक सकता है। कहा जाता है कि यह संगठन अपने पदाधिकारियों से एक ही काम करवाता था। मुस्लिम युवाओं, छात्र-छात्राओं और महिलाओं का ब्रेन वॉश करके उन्हें हिंदुओं के खिलाफ भड़काना। छापों में कुछ ऐसे पर्चे भी बरामद हुए हैं जिनमें संकेत है कि 2047 तक हिंदुस्तान को इस्लामिक राष्ट्र बनाना इस संगठन का उद्देश्य है।
इसका जाल हर जगह फैला हुआ था। दक्षिण के राज्यों से लेकर राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश का मालवा इसके गढ़ रह चुके हैं। सबसे ज्यादा गिरफ्तारियाँ यहीं से हुई हैं। निश्चित ही देश विरोधी गतिविधियों को सख्ती से कुचलना ही चाहिए। केंद्रीय खुफिया एजेंसियाँ यह काम कर भी रही हैं, लेकिन इस सब के बीच कोई निर्दोष नहीं पिसना चाहिए।
हिंसा और वैमनस्य फैलाने वाले लोग दरअसल किसी जाति, समाज या संप्रदाय के होते ही नहीं हैं। वे तो निपट अराजक तत्व ही होते हैं। उन्हें हर हाल में कड़ा सबक और कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए। हर हाल कानून का राज चलना चाहिए। चाहे ऐसे लोग किसी समुदाय, जाति या धर्म के क्यों न हों। फिलहाल एक-दो छापों के बाद जंगी प्रदर्शन करने वाले PFI के कार्यकर्ता या मददगार अब शांत हो गए हैं। उन्हें अच्छी तरह पता चल गया है कि सख्ती अब हर हाल में होगी। प्रदर्शन की राजनीति अब उनके काम नहीं आने वाली है।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.