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सरकार ने कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने को मंजूरी दी, कन्हैया बोले- फास्टट्रैक कोर्ट में हो सुनवाई

3 वर्ष पहले
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कन्हैया कुमार पर 9 फरवरी 2016 को जेनएयू परिसर में देश विरोधी नारे लगाने का आरोप है। - Dainik Bhaskar
कन्हैया कुमार पर 9 फरवरी 2016 को जेनएयू परिसर में देश विरोधी नारे लगाने का आरोप है।
  • दिल्ली पुलिस अब 4 साल पुराने देशद्रोह के मामले में कार्रवाई कर सकेगी
  • कन्हैया ने कहा- ये स्पष्ट है कि यह मुद्दा सियासी फायदे के लिए खड़ा किया गया
  • देश विरोधी नारे लगाने के मामले में कन्हैया समेत जेनयू के 9 पूर्व छात्र आरोपी हैं

नई दिल्ली. दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को जेएनयू के पूर्व छात्र अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने को मंजूरी दे दी। कन्हैया के साथ ही इस मामले के 9 अन्य आरोपियों के खिलाफ भी मुकदमा चलाने को मंजूरी दी गई है। दिल्ली पुलिस अब 4 साल पुराने देशद्रोह के मामले में आगे की कार्रवाई कर सकेगी। इस मामले में पुलिस चार्जशीट पहले ही दायर कर चुकी है। आम आदमी पार्टी के विधायक और प्रवक्ता राघव चड्‌ढा ने कहा कि यह एक कानूनी प्रक्रिया है, ऐसे मामलों पर निर्णय लेना सरकार का काम नहीं है। मुकदमा चलाने की मंजूरी 20 फरवरी को ही दे दी गई थी।


जेएनयू परिसर में 9 फरवरी 2016 को कथित तौर पर देश विरोधी नारे लगाए गए थे। वीडियो सामने आने के बाद पुलिस ने इस मामले में कन्हैया, उमर खालिद और अनिर्बन भट्‌टाचार्य समेत 9 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। 

सियासी फायदे के लिए यह मुद्दा खड़ा किया गया: कन्हैया
इस मामले पर कन्हैया ने कहा, इस मामले में पहली चार्जशीट दाखिल हुई जब मैं चुनाव लड़ने वाला था। अब जबकि बिहार में दोबारा चुनाव होने वाले हैं, तो ये स्पष्ट है कि सियासी फायदे के लिए यह मुद्दा खड़ा किया गया और इसमें जानबूझ कर देरी की गई। मैं फास्टट्रैक कोर्ट में इस मामले को चलाने की मांग करता हूं, ताकि पूरा देश जान सके कि देशद्रोह के मामलों का दुरुपयोग हो रहा है।

हमारी सरकार ने किसी ऐसे मामले में दखल नहीं दिया: चड्‌ढा
चड्‌ढा ने कहा,  ‘‘नीतियों और सिद्धातों की बात करें तो दिल्ली सरकार ने ऐसे किसी भी मामले में दखल नहीं दिया है। पिछले पांच साल में हमारी सरकार ने ऐसा नहीं किया है। यह पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया है। सिर्फ और सिर्फ न्यायपालिका ही इस प्रकार के मामलों में निर्णय ले सकती है। इस प्रकार के मामलों में निर्णय लेना सरकार का काम नहीं है। यहां तक कि दिल्ली सरकार ने हमारे अपने विधायकों और पार्टी नेताओं से जुड़े मामलों में भी दखल नहीं दी।’’