जाेधपुर/नई दिल्ली. हाल ही में देश तब सकते में आ गया, जब जम्मू-कश्मीर पुलिस का डीएसपी देविंदर सिंह आतंकियों के साथ पकड़ा गया। उसके पुलवामा हमले तक में शामिल होने की बता कही जा रही है। भास्कर ने देविंदर जैसे अन्य वर्दीधारी गद्दारों की पड़ताल की, तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। 9 साल में 32 सैन्यकर्मी और बीएसएफ के जवान पाकिस्तान के लिए जासूसी करते पकड़े गए या पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के हनी ट्रैप में फंसे। इनमें से ज्यादातर मामले में ये जवान स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के चक्कर में हनी ट्रैप में फंसे हैं।
जासूसी के आरोप में पकड़े गए इन सर्विस पर्सनल में 15 आर्मी के, 7 नेवी के और 2 एयरफोर्स के हैं। इनके अलावा डीआरडीओ की नागपुर स्थित ब्रह्मोस मिसाइल यूनिट का इंजीनियर, सिविल डिफेंस का एक, बीएसएफ के 4 जवान और 3 एक्स सर्विसमैन शामिल हैं। इस बात पर चिंता जाहिर करते हुए सेना के रिटायर्ड ब्रिगेडियर रवींद्र कुमार बताते हैं कि रिक्रूटमेंट के समय से ही दुश्मनों की नजर जवानों पर रहती है।
सेना से ज्यादा गद्दार
कुछ लोग पहले से आतंकियों व आईएसआई के संपर्क में होते हैं। ये सेना में भर्ती हो जाते हैं, जिनका पता नहीं चलता। अब ज्यादातर लोग हनी ट्रैप के जरिए निशाना बनाए जाते हैं। पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स की बजाय सेना ही उनके टारगेट पर होती है, इसलिए ज्यादा गद्दार सेना से निकलते हैं।
ब्रिगेडियर रवींद्र कहते हैं कि कश्मीर व नक्सल प्रभावित जगहों पर पुलिस पर लोकल राजनीति का असर ज्यादा होता है और वे ही पैरामिलिट्री फोर्स में डेपुटेशन पर आते हैं। लेकिन आईएसआई के हनी ट्रैप में नादान सैनिक आसानी से फंस जाते हैं। हालांकि 15 लाख की फौज में गद्दारों की यह संख्या समुद्र में बूंद के समान है।
‘‘लेकिन जिस तरह एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है, जहर की एक बूंद भी आदमी को मार देती है। फौजी अदालतें इसलिए ही सख्त मानी जाती है। वहां ऐसे अपराधों में 100% सजा मिलती है, सिविल कोर्ट की तरह कानूनी पैंतरे ज्यादा नहीं चल पाते।’’
9 साल में किस फोर्स/संस्थान से कितने जासूस पकड़े
मिसाइल स्ट्रैटजी से लेकर युद्धाभ्यास तक सुरक्षित नहीं
सैन्य अदालतें 80% मामलों में दोषी ठहराती हैं
2010 से 18 तक पकड़े गए देश के गद्दारों में से 12 दोषियों को सजा हो चुकी है। बचे हुए 16 दोषी सेवा से बर्खास्त हो चुके हैं, वे जेलों में है। उनके केस अंडर ट्रायल है। ऐसे मामलों में सैन्य अदालतों की कन्वीक्शन रेट 100% है, जबकि औसत 80% इसलिए रहता है, क्योंकि छोटे-मोटे अपराध व एक्सीडेंट जैसे केस में ये बरी हो जाते हैं।
सोशल मीडिया बड़ा खतरा, इससे बढ़ रहे हनी ट्रैप केस
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