बड़े दिन बाद जम्मू-कश्मीर में बुलडोजर चल रहा है। क्या नेता, क्या अफ़सर, सब इस बुलडोजर के निशाने पर हैं। नेता भी किसी एक पार्टी के नहीं, नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस ही नहीं, भाजपा नेताओं और उनके रिश्तेदारों पर भी गाज गिर रही है। दरअसल, कश्मीर प्रशासन ने इन दिनों अतिक्रमण विरोधी मुहिम छेड़ रखी है। सरेआम अतिक्रमण पर बुलडोजर चल रहा है। हालाँकि जिनका अतिक्रमण हटाया जा रहा है, कुछ-कुछ बोल ज़रूर रहे हैं, लेकिन भारी विरोध करने की सूरत में क़तई नहीं हैं।
सालों हो गए, कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस का ही ज़्यादातर शासन रहा। मतलब, खुद ही सरकार, खुद की ही ज़मीन। बेनाप ज़मीनें हड़पीं। बेहिसाब अतिक्रमण किया। कोई कुछ बोलने वाला नहीं। कोई कुछ कहने वाला नहीं। आठ कनाल का एक एकड़ होता है। कहते हैं- अब तक 14 लाख कनाल अतिक्रमण हटाया जा चुका है। एक अफ़सर के मुताबिक़ श्रीनगर में 22 लाख कनाल ज़मीन भाई लोगों ने दबा रखी है।
वर्षों पहले, एक बार नेकां नेताओं के घर इनकम टैक्स वाले पहुँच गए थे। भाई लोगों ने आयकर वालों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा था। लेकिन इस बार प्रशासन झुकने वाला नहीं है। इस अतिक्रमण विरोधी मुहिम की गिरफ़्त में कुछ होटल्स, कुछ प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज भी आए हैं। कार्रवाई को एकतरफ़ा इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता कविंदर गुप्ता पर भी अतिक्रमण की गाज गिरी है। इन्होंने 23 कनाल ज़मीन हड़प रखी थी। प्रशासन ने इस ज़मीन को भी मुक्त करवा लिया है।
प्रशासन स्वतंत्र रूप से काम करे, निष्पक्षता बरते तो हर तरह के अन्याय से लड़ा जा सकता है और ग़रीबों, मजलूमों की मदद भी की जा सकती है। वर्ना जम्मू-कश्मीर में तो हमेशा से पक्षपात होता रहा है। महाराज हरिसिंह के शासन से लेकर शेख़ अब्दुल्ला और फ़ारुख अब्दुल्ला तक सभी की अलग-अलग कहानियाँ हैं।
शेख़ अब्दुल्ला के शासन के दौरान तो बाक़ायदा हिंदू अफ़सरों और कर्मचारियों को केवल इसलिए प्रताड़ित, अपमानित किया जाता था कि वे बहुसंख्यक नहीं थे। तमाम ज़िम्मेदार पदों पर एक धर्म विशेष के अफ़सर-कर्मचारियों को ही तैनात किया जाता था। यहाँ तक कि महाराज हरिसिंह को कश्मीर छोड़ मुंबई जाने तक को मजबूर कर दिया गया था।
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